मुंबई के लोनावला में एक डॉक्टर ने मरीज के पर्चे पर मराठी में लिखा है- जब तुम ठीक हो जाओगे तो एक पेड़ लगाना तो कभी ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। यूं तो डॉक्टर का ये सुझाव ऐसा है जो हम सब बचपन से पढ़ते आ रहे हैं और उसकी अहमियत भी जानते हैं। लेकिन डॉक्टर ने पर्ची पर ऐसा लिखकर मानो एक बार फिर लोगों को जगाने की कोशिश की है कि वक्त रहते संभल जाओ और प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर दो।
देशभर में कोरोना वायरस बड़ी ही तेजी के साथ लोगों को संक्रमित कर रहा है, लेकिन इस बार देश सिर्फ इस वायरस की वजह से परेशान नहीं है। बल्कि इस बार ऑक्सीजन की कमी भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिल पा रहे हैं, और जिन्हें बेड मिल भी रहे हैं तो उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आखिर जो ऑक्सीजन हमारे वातावरण में है, वो सिलेंडर के अंदर कहां से आती है? इसे तैयार कौन करता है और कैसे होती है? हमारे वातावरण में काफी मात्रा में ऑक्सीजन है, लेकिन आपको बताते हैं कि आखिर सिलेंडर के अंदर ऑक्सीजन कहां से आती है।
कैसे बनता है ऑक्सीजन
आपको बता दें कि गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस के जरिए ऑक्सीजन बनती है। इस प्रक्रिया में हवा को फिल्टर किया जाता है, ऐसा करने से धूल-मिट्टी इससे अलग हो जाती है।इसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेस यानी उस पर भारी दबाव डाला जाता है अब जरा सोचिए जिस ऑक्सीजन को बनाने में हवा की जरूरत लेनी पडे वो हवा भी तो शुद्ध होनी चाहिए, उसके लिए जरूरी है कि हम हवा प्रदूषण पर रोक लगाए वरना आज जिस हवा से हम ऑक्सीजन बनाते जा रहे है कल वो हवा भी ऑक्सीजन बनाने के लायक नही रहेगी। वही अगर पेड़ो की बात करे तो एक स्वस्थ पेड़ हर दिन लगभग 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे सात लोगों को प्राण वायु मिल पाती है। यदि हम इसके आसपास कचरा जलाते हैं तो इसकी ऑक्सीजन उत्सर्जित करने की क्षमता आधी हो जाती है। इस तरह हम तीन लोगों से उसकी जिंदगी छीन लेते हैं। आज पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। इसलिए पौधे लगाने के साथ-साथ हमें पेड़ों को बचाने की जरूरत है। इसके लिए हमें जागरूक होने की जरूरत है।
पेड़ों की अहमियत
आपको पता होना चाहिए कि केवल धरती है ऐसा ग्रह है, जहां पर ऑक्सीजन मौजूद है. ये ऑक्सीजन भी वह कीमती हवा है, जो ये हरे पेड़-पौधे अपनी सांस के रूप में छोड़ते हैं. मतलब समझते हैं इसका कि हम इंसान इन पेड़-पौधों की उस जूठन पर जिंदा हैं, जो ये बेचारे खुद की सांस के रूप में बाहर निकालते हैं पर हम इंसान भी न, जिंदगी देने वालों की ही कद्र नहीं कर रहे हैं।अपने आसपास पेड़ों को न कटनेे दें, उसका विरोध करें। उसके आसपास आग न लगाएं। इसके अलावा किसी भी स्थान पर 50 मीटर की दूरी पर एक पेड़ जरूर होना चाहिए। इससे वहां पर्याप्त मात्रा में शुद्ध हवा मिलेगी। और लोग स्वस्थ रहेंगे।पेड़ लगाने से 5 फायदे होते हैं। पहला यह ऑक्सीजन के जरिए मानव जीवन को बचाती है। दूसरे यह मिट्टी के क्षरण यानी उसे धूल बनने से रोकता है। जमीन से उसे बांध रखता है। भू जल स्तर को बढ़ाने में सबसे ज्यादा मदद करता है। इसके अलावा यह वायु मंडल के तापक्रम को कम करता है। पेड़ों से ढकी हुई जगह पर दूसरी जगहों की अपेक्षा 3 से 4 डिग्री तक तापमान कम होता है। इसलिए अपने आसपास ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं। ताकि मानव जाति को बचाया जा सके। एक पेड़ औसतन दिनभर में करीब 227 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है वही एक इंसान दिनभर में करीब 550 लीटर ऑक्सीजन लेता है तो आप समझ सकते है कि पेड़ो का महत्व इंसान के जीवन में कितना है और जानवरों को भी इसकी कितनी आवश्यकता है वही कुछ लोग ऐसे भी है जो मुनाफे के लिए जंगलो का अवैध कटान करने से भी बाज़ नही आते और अच्छे खासे हजारों स्वस्थ पेड़ो को काट डालते है।
आपको बात दे कि पिछले कुछ समय मे देश में जंगल के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है ये 6,778 वर्ग किलोमीटर बड़ा है वही बढ़ोतरी दर 1 प्रतिशत आंकी गई है इसलिए जरूरी है कि वृक्षारोपण पर ध्यान दिया जाये और भविष्य में ऐसी किसी भी परिस्तिथि का सामना न करना पड़े जिसकी वजह से मानवजाति ऑक्सीजन की वजह से खतरे में पड़ जाये।
सब भूल गए बचपन के उस पाठ को
आपको याद है कि बचपन की किताबों में एक न एक पाठ जरूर ऐसा होता था, जिसमें हमें ऑक्सीजन की अहमियत बताई जाती थी. बताया जाता था कि ऑक्सीजन नहीं तो इंसान भी नहीं. जितने ज्यादा धरती पर पेड़-पौधे होंगे, उतना ज्यादा ऑक्सीजन बनेगी. लोगों को सांस से जुड़ी तकलीफों के सामना नहीं करना पड़ेगा पर हुआ क्या? किताबी बातें थीं तो भूल गए सब।
पेड़ रहेंगे तभी ऑक्सीजन रहेगी
कहते हैं कि जब धरती शुरू हुई थी तब इतनी हरियाली थी कि बीमारी का कोई नामो-निशां ही नहीं था. इतना शुद्ध वातावरण था कि ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा मिलने के चलते लोग सालों-साल जीते थे. नदियों का पानी इतना साफ था कि राह चलते किसी को प्यास लग जाती थी तो नल या मिनरल वॉटर को ढूंढने की कोई जरूरत नहीं पड़ती थी. उस जमाने के लोग बहती नदी के पानी से आराम से प्यास बुझा लेते थे. पर जब से इंसानों की संख्या बढ़ी है, नदियों के आंचल को तो मैला किया ही है, पेड़ों को तो इस बेरहमी से काट दिया जाता है कि मानों उनका धरती के लिए कोई अस्तित्व ही नहीं है।
ऑक्सीजन खरीद कर जिंदगी जीनी होगी
इंसान खुद के विकास में इतना अंधा हो गया कि उसने पेड़ों को अंधाधुंध काटना शुरू कर दिया. शहर तो शहर, आज गांवों में भी पेड़ों की संख्या काफी कम हो गई है. अपने स्वार्थ के लिए उसने धरती से उसके हरे-भरे साथियों को ही छीन लिया. पेड़ों ने हर तरह से इंसानों को इतना सब कुछ दिया कि वह कभी इसका मूल्य नहीं लगा सकता पर अगर इंसान एक पेड़ लगा दे तो वह एक ‘जीवन’ को जरूर बचा सकता है. बता दें कि पेड़-पौधे हवा को शुद्ध करने, कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने और ग्रीन हाउस प्रभाव वाली गैसों के प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं. जिस तरह से आज पूरी दुनिया में मशीनीकरण बढ़ा है, वह दिन दूर नहीं, जब लोगों को पानी की तरह ही ऑक्सीजन खरीद कर जिंदगी जीनी होगी।
इंसान की एक-एक सांस पेड़ों की कर्जदार
इंसान जब से पैदा होता है, उस दिन से वह इस धरती के हर पेड़-पौधे का कर्जदार होना शुरू हो जाता है. उसकी एक-एक सांस उसे प्रकति का कर्जदार बनाती है. कभी आपने सोचा है कि अगर जरा सी देर के लिए भी ऑक्सीजन पूरी तरह से धरती पर खत्म हो जाए तो क्या होगा? तो जानिए अगर ऑक्सीजन कुछ सेकेंड्स के लिए पूरी तरह से धरती पर खत्म हो जाए तो सूरज की रोशनी परावर्तित नहीं होगी. नीला दिखने वाला आसमान काला हो जाएगा. ऑक्सीजन की कमी में हमारे कान के पर्दें फट जाएंगे. सैकड़ों तरह की बीमारियां इंसानों पर इस तरह हमला कर देंगी कि मानों वह सेना के साथ तैयार ही बैठी थीं।
अभी भी वक्त है, संभल जाइए, एक पेड़ जरूर लगाइए
ऑक्सीजन की अहमियत को भूले हुए बहुत देर नहीं हुई है. अगर अब भी आप पेड़ों की अहमियत नहीं समझ पा रहे हैं, तो जरा एक बार अखबार पढ़ लीजिए या फिर टीवी देख लीजिए. जिस तरह से सरकारी से लेकर प्राइवेट अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए मारामारी बनी हुई है, उसे देखकर आपकी रूह कांप जाएगी. जो ऑक्सीजन सिलेंडर अब तक 300-400 रुपये में मिलता था, कोरोना काल में उसकी कीमत 2000 तक पहुंच गई है. अपने परिजनों को बचाने के लिए लोग घंटों लाइनों में लगकर ऑक्सीजन सिलेंडर की दोगुनी कीमत चुका रहे हैं। गुज़ारिश यो यह है कि जिस एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए आप हजारों-लाखों खर्च करने के लिए तैयार हैं, तो क्या वैसे ही सैकड़ों सिलेंडर भर ऑक्सीजन देने वाला पेड़ लगाने में कोई हर्ज है? अभी भी देर नहीं हुई है, आपका लगाया एक पेड़ आपकी आने वाली पीढ़ी को नया जीवन दे सकता है. आपका लगाया उस बच्चे के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है, जो सांस की बीमारी से जूझ रहा है. फैसला आपको करना है 400 का ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदना है या 1 पेड़ लगाकर 7 जिंदगियां बचानी हैं?
ऐसे बना सकते हैं काम आसान
मई का महीना चल रहा है, कुछ ही दिनों में मानसून आने वाला है ऐसे में संभव हो तो आप जब भी घर से निकले तो साथ में नीम के फल यानी निबौरी, आम की गुठलियां, जामुन की गुठलियां या ऐसे ही कुछ बीज अपने साथ ले जाएं। जहां खाली मिट्टी दिखे, वहां इन्हें फेंक दें। जैसे ही बारिश आएगी, उनमें से पौधा खुद निकल आएगा।
जानिए पेड़ के फायदे
— 1 बड़ा पेड़ 3 किलो कार्बन डाई आक्साइड सोखता है।
— 1 पेड़ 50 साल में 41 लाख रुपए के पानी की रीसाइक्लिंग करता है।
— 1 पेड़ 50 साल में 17.50 लाख रुपए की आक्सीजन का उत्पादन करता है।
— 1 पेड़ तापमान में लगभग 3 प्रतिशत की कमी करने में मददगार होता है। इनकी पत्तियों से पानी का वाष्पीकरण होता है। यह प्रक्रिया तापक्रम को बढ़ने से रोकती है।
— एक वयस्क व्यक्ति द्वारा जीवनभर के फैलाए प्रदूषण को 300 पेड़ मिलकर आसानी से खत्म कर सकते हैं।
— वातावरण को शुद्ध रखते हैं, कार्बन डाई ऑक्साइड को प्राण वायु ऑक्सीजन में बदलते हैं। साथ ही छाया भी देते हैं।
— पेड़ की पत्तियां हवा के वेग को रोकने का काम करती हैं जिससे आंधी-तूफान नियंत्रित होते हैं।
सिर्फ एक ऐसा पौधा खुद लगाने का संकल्प लें जो आगे चलकर बड़ा वृक्ष बने तो एक एक करके पेड़ों की संख्या करोड़ों में पहुंच सकती है। लेकिन सिर्फ पेड़ लगाने से ही काम नहीं चलेगा, इनकी देखभाल भी करनी होगी और इन्हें बचाने के लिए भी प्रयास करने होंगे।