देशभर में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्यौहार 21 जुलाई यानी आज मनाया जा रहा है। ईद-उल-अजहा बलिदान का त्योहार है और यह अल्लाह के प्रति समर्पण का उदाहरण है।यह त्योहार खुशियां बांटने और गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करने का भी एक अवसर है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में इस ‘बलिदान का पर्व,’ को अरबी में ईद-उल-अजहा कहा जाता है और भारतीय उपमहाद्वीप में बकरा-ईद कहा जाता है, क्योंकि इसमें में बकरी या बकरी की बलि देने की परंपरा है। दो ईद में से यह मुसलमानों की दूसरी ईद होती है जिसे कई परम्पराओं के साथ भारत और दुनियाभर में मनाया जाता है। पहली ईद अल-फ़ितर या रमज़ान ईद है। यह त्योहार रमजान या रमजान के नौवें महीने के अंत का प्रतीक है जब दुनिया भर में मुसलमान सुबह से शाम तक उपवास करते हैं। ईद-उल-अजहा प्रेम, निस्वार्थता और बलिदान की भावना के प्रति आभार व्यक्त करने और एक समावेशी समाज में एकता और भाईचारे के लिए मिलकर काम करने का त्योहार है।
मीठी ईद यानी ईद उल फितर के 70 दिन के बाद बकरीद का त्यौहार मनाते है। ईद उल ज़ुहा भारत और दुनिया भर में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। ईद उल जुहा के दौरान मुसलमान ईदगाह या मस्जिद में जमा होते हैं और जमात के साथ 2 रकात नमाज अदा करते हैं। यह नमाज अमूमन सुबह के समय आयोजित की जाती है। इस्लामी कैलेंडर में बारहवें और अंतिम महीने – बकरीद ‘धु अल हिजाह’ के दौरान मनाई जाती है। चूंकि त्योहार का सही दिन चांद के दिखने पर आधारित होता है, इसलिए, इस बात की संभावना है कि भिन्न-भिन्न देशों के बीच तिथि अलग हो सकती है। इस साल, त्योहार जुलाई के महीने में मनाया जाएगा।
भारत में बकरीद कब है?
सऊदी अरब द्वारा घोषित तारीख के अनुसार यह जश्न, 20 जुलाई, 2021 को पूरी दुनिया में शुरू होगा। लेकिन भारत में, यह अगले दिन 21 जुलाई को मनाया जाएगा। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम के अनुसार, ईद अल-अधा का त्यौहार 21 जुलाई, 2021 को भारत में चंद्रमा के दिखने पर मनाया जाएगा।
ज़ु अल-क़ादा महीना 29 दिनों का होने पर इस्लामिक
इस्लामिक तारीख अंग्रेजी तारीख
1 ज़ु अल-हज्जा 12 जुलाई
2 ज़ु अल-हज्जा 13 जुलाई
3 ज़ु अल-हज्जा 14 जुलाई
4 ज़ु अल-हज्जा 15 जुलाई
5 ज़ु अल-हज्जा 16 जुलाई
6 ज़ु अल-हज्जा 17 जुलाई
7 ज़ु अल-हज्जा 18 जुलाई
8 ज़ु अल-हज्जा 19 जुलाई
9 ज़ु अल-हज्जा 20 जुलाई
10 ज़ु अल-हज्जा 21 जुलाई
ज़ु अल-हज्जा 21 जुलाई
कैसे शुरू हुई प्रथा?
इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें. हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे। अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई. बता दें, हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी. जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए आंख बंद करके अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी. लेकिन जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है. जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई।
बकरीद पर क्या होता है?
बकरा ईद के मौके पर सबसे पहले मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और सगे संबंधियों को दिया जाता है। वहीं, तीसरे हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
ऐसे दी जाती है कुर्बानी
बकरीद को कुर्बानी का त्योहार कहा जाता है। हालांकि इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है।
इस दिन इस्लाम को मानने वाले अपने प्यारे जानवर की कुर्बानी करते हैं और कुर्बानी के गोश्त को रिश्तेदारों और जरूरतमंदों में बटा देते हैं। इस दिन लोग बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी देते हैं। लेकिन बीमार, अपाहिज या कमजोर जानवर की कुर्बानी नहीं करते हैं। माना जाता है कि बकरीद पर उस जानवर की कुर्बानी देनी चाहिए, जिसे आपने अपने बच्चे की तरह पाला हो।
मीठी ईद और बकरीद में क्या अंतर है?
मीठी ईद की तरह बकरीद भी खुशी के साथ मनाई जाती है बस ईद-उल-फितर और बकरीद में में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है रमजान के तोहफे के तौर पर मनाई जाती है और eid-ul-adha यानी की बकरीद गरीब और मुस्लिमों के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है । कुर्बानी का जो कांसेप्ट है उसका भी यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में तक्सीम करें ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों के उसे साझा करते हैं।
बकरा ईद का महत्व क्या है
मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है। बकरा ईद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईद-उल-अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो खुदा ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की कुर्बानी को दुंबे की कुर्बानी में परिवर्तित कर दिया।
बकरीद कितने दिनों का त्यौहार है?
ईद उल-अज़हा 3 दिनों का त्यौहार है. ईद उल-अज़हा को ही भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में बकरीद कहा जाता है. 3 दिन के दौरान हज के सभी अरकानों को पूरा किया जाता है।
हैप्पी बकरी या बकरीद मुबारक कहना, क्या सही है?
बकरीद बलिदान का त्यौहार है. मुसलमान अल्लाह के नाम पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं. ऐसे में इस त्यौहार का थीम कुर्बानी यानी बलिदान है. इसीलिए हमें कुर्बानी कबूल होने की अल्लाह से दुआ करनी चाहिए यही नहीं हमें दूसरों के लिए भी यही दुआ करनी चाहिए।
अगर आप किसी को कहते हैं कि आप की कुर्बानी कबूल हो यह ज्यादा बेहतर तरीका है. इससे अल्लाह आपको सवाब देगा और सामने वाला भी ज्यादा खुश होगा।
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