हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. इस बार 9 सितंबर को मनाई जाने वाली हरतालिका तीज पर 14 वर्ष बाद रवियोग बन रहा है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस अद्भुत योग में व्रत और पूजन से सुहागिन महिलाओं की सभी मुरादें पूरी होगीं. हरतालिका तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।
हरतालिका तीज व्रत आज यानी 9 सितंबर, गुरुवार को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज भाद्रपद की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन निर्जला रहकर भोलेशंकर की आराधना करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का भी लाभ मिलता है। हरतालिका तीज, कजरी और हरियाली तीज के बाद आती है।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तारीख को पति की दीर्घायु के लिए हरतालिका तीज (Hartalika Teej) का व्रत हिंदू महिलाएं रखती है। इस बार का हरतालिका पर्व बेहद खास है क्योंकि कई सालों बार इस बार हरतालिका तीज पर दुर्लभ योग बन रहा है। तृतीया तारीख बुधवार 8 सितंबर तड़के 3 बजकर 59 मिनट से शुरू हो रहा है, 9 सितंबर की रात 2.14 मिनट तक रहेगा। इसके बाद गणेश चतुर्थी तिथि लग जाएगी। हरतालिका तीज 2021 तीन प्रमुख तीज त्योहारों में से एक महत्वपूर्ण त्योहार है। अन्य दो तीज हरियाली तीज (श्रवण मास) और कजरिया तीज (भाद्रपद) हैं। यह शुभ दिन भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दौरान आता है। इस वर्ष यह शुभ दिन 9 सितंबर 2021, गुरुवार को मनाया जाएगा। तीज शब्द की उत्पत्ति तृतीय शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है तीसरा। यह विशेष दिन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथा
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। श्री भविष्योत्तर पुराण नामक ग्रंथ में “हरितालिका तीज” की कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की थी। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से माता पार्वती के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती माता की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीजा का व्रत रखती हैं। इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
सुबह करें पूजा
हरतालिका तीज पर पूजा-अर्चना का समय सुबह माना जाता है। यह समय बहुत शुभ भी होता है। किन्हीं कारणों से अगर महिलाएं सुबह पूजा करने में असमर्थ हैं तो सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में पूजा-अर्जना कर सकती हैं।
शिव, पार्वती और गणेश की करें पूजा
महिलाएं रेत या काली मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा बनाकर पूजा करें तो अधिक लाभदायी होता है। पूजा के दौरान महिलाओं को चाहिए कि वे पूजा स्थल को खूबसूरत फूलों से सजाएं और एक चौकी भी रखें। फूल ताजे होने चाहिए और फूलों को अच्छी तरह धोने के बाद पूजा करें। पूजा करने से पूर्व महिलाएं केले के पत्ते बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, केले के पत्ते हर तरह की पूजा में शुभ माने जाते हैं।
हरतालिका तीज तिथि और शुभ मुहूर्त
शुभ तिथि प्रारंभ: 2:33 पूर्वाह्न, 9 सितंबर
9 सितंबर को लक्ष्मी योग में मनेगी हरतालिका तीज, हस्त नक्षत्र बुधवार दोपहर 3.55 से, बन रहा लाभ योग
शुभ तिथि समाप्त: 12:18 पूर्वाह्न, 10 सितंबर
हरतालिका तीज 2021: पूजा का समय
महिलाएं सुबह या शाम को पूजा कर सकती हैं। नीचे दिए गए समय की जाँच करें:
प्रथम काल पूजा मुहूर्त – सुबह 6:03 से 8:33 बजे तक
प्रदोष काल – शाम 6:33 से रात 8:51 बजे तक
हरतालिका तीज पर दुर्लभ संयोग
हरतालिका तीज माता पार्वती का भगवान शिव को प्राप्त करने का पर्व है। करीब 14 वर्ष बाद इस बार रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 10 मिनट से रात 7 बजकर 54 मिनट तक है। शाम 5.14 बजे से सभी प्रकार के दोषों को विनाश करने वाले रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। शास्त्रों में रवि योग को बेहद प्रभावशाली माना गया है। इसमें कई अशुभ योगों के प्रभाव कम हो जाते हैं। यह योग महिलाओं के लिए बेहद शुभ है। इस काल में पूजा करना बेहद लाभदायक है।
अखंड सौभाग्य का पर्व
हरतालिका तीज पर सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए व्रत रखती है। हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन होता है। इस दिन औरतें जल भी ग्रहण नहीं करती हैं।
हरतालिका तीज: व्रत विधि
महिलाएं व्रत रखती हैं जिसे निशिवासर निर्जला व्रत कहा जाता है। हरतालिका तीज की शाम को व्रत शुरू होता है। तभी महिलाएं एक साथ आती हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने के लिए भजन और गीत गाती हैं। उपवास अगले दिन जारी रहता है जहां वे पानी भी नहीं पीते हैं।
हरतालिका तीज: पूजा विधि
– उमा महेश्वर को प्रसन्न करने के लिए हरतालिका पूजा की जाती है।
– महिलाएं जल्दी स्नान करती हैं, नए, सुंदर कपड़े पहनती हैं।
– प्रात:काल पूजा करना शुभ होता है, लेकिन यदि ऐसा न हो तो प्रदोष काल में की जा सकती है
– शिव और पार्वती की मूर्तियां रेत से बनी हैं।
– संकल्प व्रत के लिए लिया जाता है
– सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है फिर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है।
– भगवान शिव और मां पार्वती की षोडशोपचार पूजा की जाती है।
– मां पार्वती की अंग पूजा की जाती है.
– विभिन्न वस्तुओं का प्रसाद चढ़ाकर उचित पूजा की जाती है।
– आरती की जाती है।
– हरतालिका व्रत कथा का पाठ किया जाता है।
– कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हरतालिका तीज को गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है। महिलाओं ने स्वर्ण गौरी व्रत का पालन किया।
– कठोर व्रत रखा जाता है जो अगले दिन समाप्त होता है।
हरतालिका तीज व्रत नियम-
1. हरितालिका तीज पर तृतीया तिथि में ही पूजन करना चाहिए। तृतीया तिथि में पूजा गोधली और प्रदोष काल में की जाती है। चतुर्थी तिथि में पूजा मान्य नहीं, चतुर्थी में पारण किया जाता है।
2. नवविवाहिताएं पहले इस तरह को जिस तरह रख लेंगी हमेशा उन्हें उसी प्रकार इस व्रत को करना होगा। इसलिए इस बात का ध्यान रखना है कि पहले व्रत से जो नियम आप उठाएं उनका पालन करें। अगर निर्जला ही व्रत रखा था तो फिर हमेशा निर्जला ही व्रत रखें। आप इस व्रत में बीच में पानी नहीं पी सकते।
3. तीज व्रत में अन्न, जल, फल 24 घंटे कुछ नहीं खाना होता। इसलिए इस व्रत का श्रद्धा पूर्वक पालन करना चाहिए।
4. तीज का व्रत एक बार आपने शुरू कर दिया है तो आपको इसे हर साल ही रखना होगा। अगर किसी साल बीमार हैं तो व्रत छोड़ नहीं सकते। ऐसे में आपको उदयापन करना होगा या अपनी सास, देवरानी को देना होगा।
5. इस व्रत में भूलकर भी सोना नहीं चाहिए। इस व्रत में सोने की मनाही है। व्रती महिलाओं को रातभर जागकर भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए। इस दिन व्रती महिलाओं को सोलह श्रृंगार करना चाहिए और साथ ही सुहाग का सामान सुहागिन महिलाओं को दान करना चाहिए।
6. चतुर्थी तिथि यानी अगले दिन व्रत को खोला जाता है। व्रत की पारण विधि के अनुसार ही व्रत का पारण करना चाहिए।
ब्राह्मणों को दान कर सकती हैं पूजा के दौरान कपड़े
महिलाएं पूरे श्रद्धा भाव से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार विधि से पूजन करें। मान्यता के मुताबिक, पूजा के दौरान पूरे भक्ति भाव से महिलाएं माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाएं और भगवान शिव को धोती और अंगोछा चढ़ाएं। आम तौर पर महिलाएं पूजा के बाद धोती और अंगोछा किसी ब्राह्मण को दान करती हैं। यह परंपरा सदियों बाद भी जारी है। वर्त की कड़ी में पूजा करने के बाद तीज की कथा सुननी चाहिए और रात भर जागरण करना चाहिए, धार्मिक मान्यता है कि व्रतधारी महिलाओं को किसी भी हाल में सोना नहीं चाहिए। इसके बाद महिलाए अगली सुबह स्नान आदि के बाद आरती करें और फिर माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं। आमतौ पर सुबह हलवे का भोग लगाकर व्रत खत्म किया जाता है। यह भी मान्यता है कि व्रत रखने वाली महिला श्रृंगार का सामान, वस्त्र, खाने की चीजें, फल, मिठाई आदि का दान करें तो बहुत शुभ माना जाता है।
हरतालिका तीज महत्व
हरतालिका संस्कृत के दो शब्दों हरात (अपहरण) और आलिका (मित्र) से मिलकर बनी है। अपहरण शब्द को शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि इसका गहरा अर्थ और उद्देश्य है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करना चाहती थीं, हालांकि, उनके पिता ने यह नहीं माना, बल्कि भगवान विष्णु के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। यह सुनकर देवी पार्वती ने घने जंगल में एक सुनसान जगह में छिपने के लिए अपनी सहेली की मदद मांगी। इस प्रकार, उसकी सहेली ने उसके बचाव में मदद की और अंततः, देवी पार्वती ने गहन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न करने में सक्षम थी। तब से, इस तिथि पर, विवाहित महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं और सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए उनका आशीर्वाद मांगती हैं। साथ ही इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां तैयार करती हैं।
साल में तीन बार तीज का त्योहार
साल में तीन बार तीज का त्योहार मनाया जाता है। हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज। सभी तीज में पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना के लिए महिलाएं व्रत और पूजा पाठ करती है। आइए जानते हैं कब-कब मनाई जाती है ये तीन तरह की तीज और इसमें क्या अंतर होता है।
हरियाली तीज : हर वर्ष सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर तीज का त्योहार मनाया जाता है। इसे हरियाली तीज या श्रावणी तीज भी कहते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। हरियाली तीज के मौके पर सुहागिन महिलाएं श्रृंगार कर दिनभर व्रत रखते हुए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-आराधना और जाप करती हैं। हरियाली तीज का उपवास सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की कामना के साथ करती हैं। मान्यता है कि सावन महीने में भगवान शिव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करने का वर दिया था। सावन के मौसम में हर जगह हरियाली दिखने से इसे हरियाली तीज का नाम दिया गया है।
कजरी तीज : हरियाली तीज की तरह ही कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है। कजरी तीज भादो के महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाई जाती है। इसे भादो तीज भी कहा जाता है। इस व्रत में भी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु का कामना में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधिवत रूप से करती है।
हरितालिका तीज : यह व्रत भी विवाहित महिलाएं पति की दीर्घायु की मनोकामना के साथ रखती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। इस व्रत को तीजा भी कहते हैं। विवाहित महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह व्रत रखती है और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए भी इस व्रत को रखती हैं।
उत्तरी भारत में तीज त्योहार (‘छत्तीसगढ़ी में तीजा’) जानिए पौराणिक कथा और महत्व
मानसून के मौसम का स्वागत करने के लिए छत्तीसगढ़ और उत्तरी भारत में तीज त्योहार (‘छत्तीसगढ़ी में तीजा’) मनाया जाता है। पति की लंबी उम्र की कामना और परिवार की खुशहाली के लिए सभी विवाहित महिलाओं में निर्जला उपवास रखती है। और शाम को तीज माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा के बाद, वे पानी और भोजन लेती है। तीज के एक दिन पहले सभी महिलाये एक दूसरे के घर जाकर कड़वा भोजन (छत्तीसगढ़ी में ‘करू भात’) का सेवन करती है। करेले की सब्जी एवं अन्य व्यंजन बनाये जाते है। यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया (भादो की शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन) सामान्यतः अगस्त – सितम्बर को मनाया जाता है। बारिश के इस मौसम में वन-उपवन, खेत आदि हरियाली की चादर से लिपटे होते हैं। संपूर्ण प्रकृति हरे रंग के मनोरम दृश्य से मन को तृप्त करती है। इसलिए यह त्योहार हरियाली तीज भी कहलाता है।
सुहागन के साथ कुंवारी भी करती हैं तीजा
छत्तीसगढ़ का तीजा ऐसा फेस्टिवल है, जिसे अच्छे पति की कामना के साथ कुंवारी लड़की निर्जला व्रत रखती है। वहीं सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला तीजा का व्रत रखती है, साथ ही दीर्धायु के साथ पति को यश भी प्राप्त हो। और अगले 7 जन्म तक पति का साथ मिले। विधवा महिलाएं भी तीजा का व्रत रखती हैं, ताकि अगले जन्म में उन्हें अखंड सौभाग्य मिल सके। छत्तीसगढ़ में जब एक बार महिलाएं तीजा का व्रत रखना शुरू करती हैं तो वृद्धा अवस्था तक इस व्रत को रखती हैं। पुरानी बस्ती निवासी शैल शर्मा का कहना हैं कि एक बार व्रत करने के बाद जीवन भर महिलाएं तीजा रखती हैं।
सूर्योदय से तीजा की शुरुआत
सूर्योदय होने के साथ ही तीजा का व्रत रखने वाली महिलाएं उठ जाती है। तीजा की पूजा 4 पहर में की जाती है। सुबह के पहर में यानी सुबह 8 बजे के अंदर बालू, मिट्टी और रेत से निर्मित शिवलिंग बनाई जाती है। और फलेरा सजाया जाता है। इसे स्थापना पूजा कहते है। इसके बाद दोपहर 12 बजे मध्याहन पूजा की जाती है। शाम 6 से 7 बजे के बीच प्रदोष काल में संध्या पूजा की जाती है और रात 12 बजे श्यान पूजा की जाती है। 12 बजे के बाद महिलाएं भजन, कीर्तन करती हुई रात्रि जागरण करती है। रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। इसमें कंवारी लड़कियां अच्छे वर के लिए और सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए तीजा रखती हैं।
सोलह श्रृंगार करेंगी सुहागिनें
सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप आकर्षक परिधानों से सोलह श्रृंगार करती हैं। हाथों में बेहद आकर्षक मेहंदी लगाती हैं। तीज के मौके पर यदि कन्या ससुराल में है, तो मायके से तथा यदि मायके में है तो ससुराल से मिष्ठान, कपड़े आदि भेजने की परम्परा है। मायके से भेंट में मिले नए वस्त्र-आभूषण से सुसज्जित हो कर माता पार्वती की उपासना करती हैं। शाम को शृंगार कर कर ग्रुप में महिलाएं उत्सव मनाती हैं। रातभर भक्ति के साथ रात जागरण करती है। इस दौरान भजन-कीर्तन के साथ आस-पड़ोस की महिलाएं भी रतजगा में जुटती हैं।
इसलिए नाम पड़ा हरतालिका
तीज उपवास पौराणिक काल से हमारी परंपरा में चलन में है। पार्वती के उपवास रहने की जानकारी पौराणिक साहित्यों में मिलती है। जब मां पार्वती अविवाहित थीं, तब वे भोलेनाथ को अपने पति के रूप में पाने के लिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए यह उपवास करती हैं। इस समय पार्वती की सहेलियों ने अगवा कर लिया था। इस कारण व्रत को हरितालिका भी कहा गया है, क्योंकि “हरत” मतलब अगवा करना और “तालिका” मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अगवा करना ही हरितालिका कहलाता है।
पूजा की विधि
तीज के तेरह चलन
तीज का व्रत निर्जला किया जाता है अर्थात पूरे दिन और रात अगले सूर्योदय तक कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता।
वृद्ध या बीमार महिलाओं को निर्जला व्रत रखने से छूट दी जाती है।
तीज का व्रत कुंवारी कन्याएं और सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा किया जाता है।
इस व्रत का नियम है कि इसे एक बार शुरू करने के बाद बीच में नहीं छोड़ा जा सकता।
इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनकर नाच-गान व भजन के साथ रतजगा करती हैं।
पूजन प्रदोषकाल में किया जाता है, यानी दिन और रात के मिलने के समय में।
तीज के पूजन हेतु शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत या काली मिट्टी से बनाई जाती है।
फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता है। उसके अंदर रंगोली से चौक डालकर उस पर पटा या चौकी रखी जाती है। चौकी पर एक थाल के ऊपर केले का पत्ता रखकर उस पर मूर्तियां स्थापित की जाती हैं।
एक कलश बनाया जाता है। इस पर श्रीफल रखते हैं या एक दीपक जलाकर रखा जाता है।
सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है फिर शिव जी की और फिर पार्वती की पूजा की जाती है।
इसके बाद हरितालिका व्रत की कथा पढ़ी और सुनी जाती है।
ककड़ी और हलवे का भोग लगाया जाता है और इसी भोग से महिलाएं अपना उपवास तोड़ती हैं।
अंत में सभी वस्तुएं एकत्र कर नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है।
विशेष रस्म: सात पर्री भरना
शादी के बाद जिनकी पहली तीजा होती है, उनके लिए तीजा काफी खास होता है। पूजा के वक्त बांस की 7 पर्री में सुहाग का सामान रखकर पूजा की जाती है। इसे शिव-पार्वती को चढ़ाया जाता है। फिर सात सुहागन महिलाओं में बांट दिया जाता है।
इस पर्व पर प्रायः नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है।
यदि कन्या ससुराल में है, तो मायके से तथा यदि मायके में है, तो ससुराल से मिष्ठान, कपड़े आदि भेजने की परम्परा है। इसे स्थानीय भाषा में ‘तीज’ की भेंट कहा जाता है।
इसमें अनेक भेंट वस्तुएँ होती हैं, जिसमें वस्त्र व मिष्ठान होते हैं। इसे माँ अपनी विवाहित पुत्री को भेजती है। पूजा के बाद इसको सास को सुपुर्द कर दिया जाता है।
सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सायंकाल बन-ठनकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और उद्यानों में झूला झूलते हुए पारंपरिक गीत गाती हैं।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पौराणिक कथाओं, मान्यताओं और विभिन्न माध्यमों से संकलित की गई है। हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।