भारत में टीकाकरण अभियान के पहले चरण की शुरुआत 16 जनवरी 2021 से हुई थी. पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों यानी डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स और स्वास्थ्य से जुड़े लोगों को वैक्सीन दी गई थी. साथ ही फ़्रंटलाइन वर्कर्स यानी पुलिसकर्मियों, पैरामिलिट्री फ़ोर्सेज और सैन्यकर्मियों को भी टीका लगाया गया. 14 लाख लोगों को टीके की दूसरी डोज़ भी दी जा चुकी है।
दूसरे चरण में अब आम लोगों को वैक्सीन मिलेगी. सरकार का लक्ष्य जुलाई तक 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने का है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ वैक्सीनेशन के इस दूसरे चरण को बेहद महत्वपूर्ण बता रहे हैं. ख़ासतौर पर ऐसे समय में जब कुछ राज्यों में कोरोना वायरस मामले बढ़ रहे हैं. भारत में भी कोरोना वायरस के नए वैरिएंट के मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें ब्रिटेन, दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील में मिले वैरिएंट शामिल हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक़, वैक्सीन मृत्यु दर कम करने में मदद करेगी और ये बीमारी की गंभीरता को भी कम करेगी. साथ ही वैक्सीन से कोरोना संक्रमण के मामले भी कम होंगे. इसके ज़रिए कोरोना के नए स्ट्रेन से भी निपटा जा सकता है. जितना संक्रमण होगा, उतना ही नए स्ट्रेन को रोका जा सकेगा।
टीका कितने रुपये में लगेगा?
कोरोना वैक्सीन की एक डोज के लिए कॉस्ट-ब्रेकअप 150 रुपये है, जिसमें 100 रुपये सर्विस टैक्स के जुड़ेंगे. यानी प्राइवेट अस्पताल में वैक्सीनेशन के लिए आपसे 250 रुपये लिए जाएंगे. यह निर्णय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा लिया गया है. इस संबंध में सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों को सूचना भेजी जा रही है।
यहां कराना होगा रजिस्ट्रेशन
वैक्सीनेशन के लिए पहले लोगों को Co-WIN ऐप पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा. आप प्ले स्टोर या एपल स्टोर से इस ऐप को अपने फोन में डाउनलोड कर सकते हैं। या फिर आप www.cowin.gov.in पर जाकर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इसके लिए आपको आधार कार्ड, इलेक्टोरल फोटो आईडी कार्ड (EPIC) और ऑफिशियल आईडी कार्ड की जरूरत होगी. रजिस्ट्रेशन के बाद आपको एक डेट और टाइम मिलेगा, उसी दिन आपको वैक्सीन लगाई जाएगी. वैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद आपको मोबाइल ऐप पर एक QR कोड सर्टिफिकेट भी मिलेगा।
दूसरे चरण में किसे मिलेगी वैक्सीन
कोविड-19 टीकाकरण के दूसरे चरण में 60 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीन लगेगी. इसके अलावा 45 साल से अधिक उम्र के उन लोगों को भी वैक्सीन दी जाएगी जो किसी न किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं।
केंद्र सरकार के मुताबिक़, दूसरे चरण में क़रीब 10 करोड़ लोग 60 साल से ज़्यादा उम्र के हैं।
अभी इस पर भी स्पष्टता आनी बाक़ी है कि 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों में गंभीर बीमारियाँ किसे माना जाएगा।
“गंभीर बीमारियों में कौन-सी बीमारियाँ शामिल होंगी, इस पर एक समूह विचार कर रहा है. ख़ासतौर पर उन बीमारियों पर विचार हो रहा है, जिनमें कोविड-19 होने पर ज़्यादा तबीयत बिगड़ने या मृत्यु होने की आशंका होती है. जैसे डायबिटीज, दिल की बीमारी और कैंसर आदि.”
लेकिन, बीमारी का प्रमाण आप किस तरह देंगे इसे लेकर उन्होंने बताया, “अपनी बीमारी प्रमाणित करने के लिए आपको कोई टेस्ट कराने की ज़रूरत नहीं है. आपको पहले एक फ़ॉर्म भरना होगा, जिसमें अपनी बीमारी की जानकारी देनी होगी.”
“फिर उस फ़ॉर्म और अगर आपके पास पहले से कोई रिकॉर्ड है, जो बीमारी के बारे में बताता है, तो दोनों को लेकर किसी सरकारी या प्राइवेट डॉक्टर के पास जाएँ और उनसे साइन व स्टैंप लगवा लें. तब आप गंभीर बीमारियों वाली सूची में मान लिए जाएँगे.”
कोविड-19 वैक्सीन इस बार भी क्या मुफ़्त मिलेगी?
पहले चरण में सिर्फ़ सरकारी केंद्रों पर वैक्सीन दी जा रही थी लेकिन, अब निजी अस्पतालों में भी वैक्सीन मिल पाएगी. इसके लिए लोगों को ख़ुद भुगतान करना होगा।
निजी अस्पतालों में वैक्सीन की क़ीमत कितनी होगी, इस संबंध में फ़िलहाल स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई घोषणा नहीं की है. लेकिन, क़रीब 20 हज़ार प्राइवेट सेंटर्स पर वैक्सीन लगवाई जा सकती है।
केंद्र सरकार ने बताया कि जो लोग प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन का टीका लगवाएँगे, उन्हें पैसे देने होंगे. स्वास्थ्य मंत्रालय जल्द ही वैक्सीन की क़ीमत भी बताएगा।
9 बजे से CoWIN पर होगा रजिस्ट्रेशन
सरकार ने कहा है कि CoWIN 2.0 पोर्टल पर पंजीकरण आज सुबह 9 बजे खुलेगा. जानकारी के लिए लोग cowin.gov.in देखें. आयुष्मान भारत PMJAY के तहत 10,000 से अधिक निजी अस्पतालों, सीजीएचएस के तहत 600 से अधिक अस्पतालों और अन्य निजी अस्पतालों को सरकारी योजनाओं के तहत टीकाकरण केंद्रों के रूप में सूचीबद्ध में किया गया है.
स्वास्थ्यकर्मियों और फ़्रंटलाइन वर्कर्स के पहले चरण में टीका लगाने की प्रक्रिया अलग थी. तब टीका लगवाने के लिए को-विन (Co-WIN) ऐप पर रजिस्टर नहीं कराना होता था.
अब कोरोना का टीका लगवाने के लिए आपको पहले को-विन ऐप पर रजिस्टर करना होगा. इस ऐप में जीपीएस की सुविधा भी होगी, जिससे लोग अपनी सुविधानुसार तारीख़ और स्थान चुन सकते हैं.
हालाँकि, ये इस पर निर्भर करेगा कि किसी वैक्सीनेशन सेंटर में कितने स्लॉट उपलब्ध हैं. साथ ही लोग ये भी पता कर सकेंगे कि उनका नज़दीकी वैक्सीनेशन सेंटर कौन-सा है, चाहे सरकारी या प्राइवेट.
कोविड-19 वैक्सीन के लिए आम लोगों को भारत सरकार द्वारा जारी को-विन ऐप (CoWIN App) पर अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. को-विन ऐप पर रजिस्ट्रेशन होने के बाद आपके मोबाइल पर एक मैसेज आएगा जिसमें वैक्सीन लगाने का समय, तारीख़ और केंद्र का पूरा ब्योरा होगा.
रजिस्ट्रेशन के लिए आपको अपना कोई एक फ़ोटो आईडी दर्ज करना होगा जिसमें से आप आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, पासपोर्ट, मनरेगा जॉब कार्ड, बैंक या पोस्ट ऑफिस खाते की पासबुक, MP/MLA/MLC द्वारा जारी किया गया कोई पहचान पत्र या फिर पेंशन कार्ड या एम्पलॉयर द्वारा जारी किया गया पहचान पत्र या फिर वोटर आईकार्ड भी जमा करवा सकते हैं।
भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने में सक्षम नहीं हैं. ऐसे में वो सीधे वैक्सीनेशन सेंटर भी जा सकते हैं. उन्हें अपने साथ कोई पहचान प्रमाण पत्र ले जाना होगा, जैसे मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस आदि. वैक्सीनेशन सेंटर पर मौजूद वॉलिंटियर्स उन्हें ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने में मदद करेंगे।
आप उस राज्य के वैक्सीनेशन सेंटर पर भी जा सकते हैं, जहाँ आप मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं. जैसे कि अगर आप दिल्ली के निवासी हैं और मातदाता सूची में आपका नाम दर्ज है, लेकिन आप मुंबई रहते हैं, तब भी आप मुंबई में वैक्सीन लगवा सकते हैं।
अगर आप यात्रा कर रहे हैं या अन्य ज़रूरी काम होने की स्थिति में आप वैक्सीन की दोनों डोज़ अलग-अलग सेंटर्स पर भी लगवा सकते हैं. बशर्ते कि उस सेंटर पर आपकी दूसरी डोज़ की तारीख़ पर वैक्सीन की दूसरी डोज़ उपलब्ध हो।
वैक्सीन लगाने के बाद आपको वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी जारी किया जाएगा. इसे आप आरोग्य सेतु ऐप से डाउनलोड कर सकते हैं. इसके लिए वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ लेनी ज़रूरी होगी. साथ ही 14 अंकों का बेनिफिशियरी रेफरेंस आईडी भी दर्ज करना होगा।
भारत में कौन सी कोविड 19 वैक्सीन स्वीकृत हैं?
भारत में कोविड-19 से बचाव के लिए दो वैक्सीन लगाई जा रही है, जिन्हें ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ने अनुमति दी है. ये दो वैक्सीन हैं – कोविशील्ड और कोवैक्सीन।
कोविशील्ड जहां असल में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका का संस्करण है वहीं कोवैक्सीन पूरी तरह भारत की अपनी वैक्सीन है जिसे ‘स्वदेशी वैक्सीन’ भी कहा जा रहा है. कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया कंपनी ने बनाया है।
वहीं, कोवैक्सीन को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर बनाया है.
क्या कोविड-19 वैक्सीन सेफ़ है?
ज़्यादातर विशेषज्ञों की राय है कि कोरोना से लड़ने के लिए बनी अब तक की लगभग सभी वैक्सीनों की सुरक्षा संबधी रिपोर्ट ठीक रही है.
हो सकता है वैक्सिनेशन के चलते मामूली बुखार आ जाए या फिर सिरदर्द या इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर दर्द होने लगे.
डॉक्टरों का कहना है कि अगर कोई वैक्सीन 50 फीसदी तक प्रभावी होती है, तो उसे सफल वैक्सीन की श्रेणी में रखा जाता है.
डॉक्टरों का ये भी कहना है कि वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य में होने वाले किसी भी मामूली बदलाव पर पूरी नज़र बनाए रखनी होगी और किसी भी बदलाव को तुरंत किसी चिकित्सक से शेयर करना होगा।
कोविड 19 वैक्सीन क्या बच्चों के लिए सेफ़ है?
भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन को 12 साल से बड़ी उम्र के बच्चों के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिल हुई है।
साथ ही भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने इस वैक्सीन को 18 साल से कम उम्र के टीनेजर्स पर क्लीनिकल ट्रायलस करने की अनुमति दी है. इसके तहत जिन भी बच्चों को ये वैक्सीन दी जाएगी उनके स्वास्थ्य लक्षणों की निरंतर मॉनिटरिंग की जाएगी।
कोविशील्ड और कोवैक्सीन असर कैसे करेंगे?
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन भारत के अलावा ब्रिटेन, अर्जेंटीना और अल सल्वाडोर समेत कई देशों में इस्तेमाल हो रही है।
इस वैक्सीन का विकास कॉमन कोल्ड एडेनेवायरस से किया गया है. चिम्पांज़ी को संक्रमित करने वाले इस वायरस में बदलाव किए गए हैं, ताकि मनुष्यों को संक्रमित न कर सके. साथ ही वैक्सीन का 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 23,745 लोगों पर परीक्षण किया गया है।
जबकि कोवैक्सीन का विकास भारतीय चिकित्सा परिषद (आइसीएमआर) और हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने संयुक्त रूप से किया है।
इसके निर्माण में मृत कोरोना वायरस का इस्तेमाल किया गया है, ताकि वह लोगों को नुकसान न पहुंचाए. जानकारों के मुताबिक़ यह वैक्सीन शरीर में प्रवेश करने के बाद कोरोना संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा करती है. इस वैक्सीन का असर होने के लिए दो खुराक लेना अनिवार्य है।
वैक्सीन कैसे बनती है और उसे ओके कौन करता है?
भारत वैक्सीन बनाने का पावर हाउस है जहाँ दुनिया भर की 60 प्रतिशत वैक्सीन का उत्पादन होता है।
दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन प्रोग्राम भी भारत में चलता है जिसके तहत सालाना 5.5 करोड़ महिलाओं और नवजात को 39 करोड़ वैक्सीन दिए जाते हैं।
सबसे पहले किसी भी वैक्सीन के प्रयोगशाला में टेस्ट होते हैं. फिर इनको जानवरों पर टेस्ट किया जाता है।
इसके बाद अलग-अलग चरणों में इनका परीक्षण इंसानों पर किया जाता है. फिर अध्ययन करते हैं कि क्या ये सुरक्षित हैं, इनसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है और क्या ये प्रायोगिक रूप से काम कर रही हैं।
सबसे ज़्यादा बनने वाली 3 वैक्सीनें ये हैं
लाइव वैक्सीन
लाइव वैक्सीन की शुरुआत एक वायरस से होती है लेकिन ये वायरस हानिकारक नहीं होते हैं. इनसे बीमारियां नहीं होती हैं लेकिन शरीर की कोशिकाओं के साथ अपनी संख्या को बढ़ाते हैं. इससे शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है.
इस तरह की वैक्सीन में बीमारी वाले वायरस से मिलते जुलते जेनिटिक कोड और उस तरह के सतह वाले प्रोटीन वाले वायरस होते हैं जो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
जब किसी व्यक्ति को इस तरह की वैक्सीन दी जाती है तो इन ‘अच्छे’ वायरसों के चलते बुरे वायरसों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है. ऐसे में जब बुरा वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र के चलते वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता है।
इनएक्टिवेटेड वैक्सीन
इस तरह की वैक्सीन में कई सारे वायरल प्रोटीन और इनएक्टिवेटेड वायरस होते हैं. बीमार करने वाले वायरसों को पैथोजन या रोगजनक कहा जाता है।
इनएक्टिवेटेड वैक्सीन में मृत रोगजनक होते हैं. ये मृत रोगजनक शरीर में जाकर अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकते लेकिन शरीर इनको बाहरी आक्रमण ही मानता है और इसके विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने लगते हैं।
इनएक्टिवेटेड वायरस से बीमारी का कोई खतरा नहीं होता. ऐसे में शरीर में विकसित हुए एंटीबॉडी में असल वायरस आने पर भी बीमारी नहीं फैलती और ये एक बहुत ही भरोसेमंद तरीका बताया गया है.
जीन बेस्ड वैक्सीन
इनएक्टिवेटेड वैक्सीन की तुलना में जीन बेस्ड वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इनका उत्पादन तेजी से किया जा सकता है. ज़ाहिर है, कोरोना वायरस की वैक्सीन की करोड़ों डोज़ की एक साथ जरूरत होगी. जीन बेस्ड वैक्सीन में कोरोना वायरस के डीएनए या एम-आरएनए की पूरी जेनेटिक सरंचना मौजूद होगी।
इन पैथोजन में से जेनेटिक जानकारी की महत्वपूर्ण संरचनाएं नैनोपार्टिकल्स में पैक कर कोशिकाओं तक पहुंचाई जाती हैं. ये शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होती है और जब ये जेनेटिक जानकारी कोशिकाओं को मिलती है तो वह शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय कर देती हैं. जिससे बीमारी को खत्म किया जाता है।
भारत में किसी भी वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के आधार ही होती है जिसकी सभी चरणों की समीक्षा ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ नामक सरकारी संस्था करती है।
डीजीसीआई से हरी झंडी मिलने के बाद ही किसी वैक्सीन के बल्क निर्माण की अनुमति मिलती है।
गुणवत्ता नियंत्रण यानी क्वॉलिटी कंट्रोल को ध्यान में रखते हुए वैक्सीन के बल्क निर्माण के मानक तैयार किए जाते हैं और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए समय-समय पर वैज्ञानिकों तथा विनियामक प्राधिकरणों के माध्यम से चेकिंग होती रहती है।