आज 27 फरवरी, शुक्रवार को देश भर में संत रविदास जयंती मनाई जाएगी। मध्यकालीन भारतीय संत परंपरा में संत रविदास का विशिष्ट स्थान है. संत रविदास को संत रैदास और भगत रविदास के नाम से भी संबोधित किया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरु रविदास का जन्म वर्ष 1398 में माघ महीने की पूर्णिमा के दिन हुआ था। हालांकि उनके जन्म को लेकर कई विद्वानों का मत है कि 1482 से 1527 ईस्वी के बीच उनका जन्म हुआ था।
कहा जाता है कि जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन रविवार था, इसलिए उनका नाम रविदास पड़ गया. गुरु रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था. यूं तो हर वर्ग की निष्ठा गुरु रविदास जी के साथ जुड़ी हुई है, लेकिन इनके अनुयायियों में चर्मकार एवं सिख समुदाय की संख्या ज्यादा होती है.
वर्ष 2021 में रविदास जयंती
वर्ष 2021 में माघ पूर्णिमा 27 फरवरी, शुक्रवार को है. अतः इस वर्ष गुरु रविदास जयंती 27 फरवरी को ही, खूब धूमधाम के साथ मनाई जाएगी. इस दौरान जयंती का समय अर्थात पूर्णिमा का समय 26 फरवरी, 15:51 से लेकर. 27 फरवरी 13: 458 तक है।
गुरु रविदास जी का जन्मस्थान
गुरु रविदास जी का जन्मस्थान, यूपी के काशी में हुआ था. माघ पूर्णिमा के दिन उनके जन्मस्थान पर, दुनियाभर से लाखों की संख्या में उनके भक्त व अनुयायी काशी पहुंचते हैं. यहां पर भव्य उत्सव मनाया जाता है।
कैसे मनाई जाती है रविदास जयंती?
देशभर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर संत रविदास का जन्म दिवस बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग कीर्तन जुलूस निकालते हैं। इस दौरान गीत- संगीत, गाने, दोहे सड़कों पर बने मंदिरों में गाए जाते हैं. संत रविदास के भक्त उनके जन्म दिवस के दिन घर या मंदिर में बनी उनकी छवि की पूजा करते हैं. संत रविदास का जन्म वाराणसी के पास के गांव में हुआ था. यही कारण है कि वाराणासी में संत रविदास का जन्म दिवस बेहद भव्य तरीके से मनाया जाता है. इसमें उनके भक्त सक्रिय रुप से भाग लेने के लिए वाराणसी आते हैं।
सिख धर्म के अनुयायी भी बड़ी श्रद्धा भावना से, गुरु रविदास जयंती पर गुरुद्वारों में आयोजित करते हैं. इस अवसर पर पूर्णिमा से दो दिन पूर्व, गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ रखा जाता है, और उस पाठ की समाप्ति पूर्णिमा के दिन होती है. इसके पश्चात कीर्तन दरबार होता है, जिसमें रागी जत्था गुरु रविदास जी की वाणियों का गायन करते हैं।
ऐसे गुजरा संत रविदास का जीवन
संत रविदास के पिता जूते बनाने का काम करते थे. रविदाज भी अपने पिता की जूते बनाने में मदद करते थे। इस कारण उन्हें जूते बनाने का काम पैतृक व्यवसाय के तौर पर मिला. उन्होंने इसे खुशी से अपनाया और पूरी लगने के साथ वह जूते बनाया करते थे। साधु-संतों के प्रति शुरुआत से ही संत रविदास का झुकाव रहा है. जब भी उनके दरबार पर कोई साधु- संत या फकीर बिना जूते चप्पल के आता था, तो वह उन्हें बिना पैसे लिए जूते चप्पल दे दिया करते थे।
समाज में फैले भेद-भाव, छुआछूत का वह जमकर विरोध करते थे. जीवनभर उन्होंने लोगों को अमीर-गरीब हर व्यक्ति के प्रति एक समान भावना रखने की सीख दी. उनका मानना था कि हर व्यक्ति को भगवान ने बनाया है, इसलिए सभी को एक समान ही समझा जाना चाहिए. वह लोगों को एक दूसरे से प्रेम और इज्जत करने की सीख दिया करते थे।
संत रविदास की एक खासियत ये थी कि वे बहुत दयालु थे. दूसरों की मदद करना उन्हें भाता था. कहीं साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे।
गुरु रविदास के विचार
भक्तिकालीन संत व कवि रविदास का जीवन व उनकी शिक्षाएं अत्यंत प्रेरक हैं। वे महान आध्यात्मिक समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा, मनोवांक्षित जन्म किसी के वश की बात नहीं है। जन्म ईश्वर के हाथ में है। सभी ईश्वर की संतान हैं अत: जन्म के आधार पर भेदभाव करना ईश्वर की व्यवस्था को नकारने जैसा है। वे कहते हैं- रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच। नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच।। मान्यता है कि संत रविदास ने तपोबल से सिद्धियां हासिल कीं, चमत्कार किए, लेकिन कभी अहंकार नहीं किया।
उन्होंने घृणा का प्रतिकार घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से किया। हिंसा का हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा और सद्भावना से किया। इसलिए वे प्रत्येक व्यक्ति के प्रेरणास्त्रोत बने। उन्होंने निर्भीकता से अपनी बात कही। समाज को नई राह दिखाई और कुरीतियों को दूर करने के लिए सच और साहस को आधार बनाया। संत रविदास को वेदों पर अटूट विश्वास था। वे सभी को वेद पढ़ने का उपदेश देते थे।
गुरु रविदास मानवीय एकता के प्रबल समर्थक एवं जातिगत भेदभाव के प्रबल विरोधी थें. गुरु रविदास ईश्वरीय शक्ति में पूर्ण यकीन और विश्वास रखते थें. उनकी वाणियों में उनके विचार स्पष्ट रुप से कहते हैं कि, इस धरती पर जन्मा कोई भी व्यक्ति अपनी जाति या जन्म की वजह से नहीं अपने कर्म के कारण ही ऊंचा या नीचा होता है. ये गुरु रविदास के ही विचार थें कि, “मन चंगा तो कठौती में गंगा!”, अर्थात मन शुद्ध हो तो घर की कठौती का जल ही गंगाजल समान पवित्र हो जाता है. गुरु रविदास ने संदेश दिया कि परमात्मा ने इंसान की रचना की है, न कि इंसान ने परमात्मा का सृजन किया है. अतः सभी मानवों के अधिकार समान है. गुरु रविदास की विचारधारा से ही प्रभावित होकर, तत्कालीन चित्तौड़ साम्राज्य के राजा और रानी भी, उनके शिष्य बन गए थे।