अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस हर साल 29 अप्रैल को विशव स्तर पर मनाया जाता है। युनैसका की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय रंग मंच संस्था की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय नाच समिति ने इस दिन को जैन जॉर्ज नोवेरे (1727-1810) जो कि आधुनिक बैले का प्रमुख चेहरा है उनकी याद में इस दिवस को समर्पित किया गया है।
यह दिन दुनिया भर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों और त्योहारों के माध्यम से नृत्य में भागीदारी और शिक्षा को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है। यूनेस्को औपचारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आईटीआई) को इस कार्यक्रम के निर्माता और आयोजक के रूप में पहचानता है। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई।
मनाने का उद्देश्य
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाना था। साथ ही लोगों का ध्यान विश्वस्तर पर इस ओर आकर्षित करना था। जिससे लोगों में नृत्य के प्रति जागरुकता फैले। साथ ही सरकार द्वारा पूरे विश्व में नृत्य को शिक्षा की सभी प्रणालियों में एक उचित जगह उपलब्ध कराना था। सन 2005 में नृत्य दिवस को प्राथमिक शिक्षा के रूप में केंद्रित किया गया। विद्यालयों में बच्चों द्वारा नृत्य पर कई निबंध व चित्र भी बनाए गए। 2007 में नृत्य को बच्चों को समर्पित किया गया। भारतीय हिंदू परंपराओं के अनुसार कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया। जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया।
किसने चुना ये दिवस
साल 1982 में अंतरराष्ट्रीय नाट्य (Theatre) संस्थान (ITI) ने अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को मनाने का फैसला किया था. आईटीआई यूनेस्को के कला प्रदर्शन का सहयोगी थी. आईटीआई के बनते ही उसके साथ दुनिया के प्रसिद्ध नृतक और कोरियोग्राफर्स इसके साथ जुड़ते चले गए. हर बार इसमें देने वाले संदेश से नए लेकिन दुनिया के जान में नृतक या कोरियोग्राफर जुड़ते हैं।
29 अप्रैल ही क्यों
आईटीआई ने 29 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय नृत्व दिवस आधुनिक बैले के निर्माता जीन जोर्जेस नोवेरे को सम्मानित करने के लिहाज से चुना. 29 अप्रैल को उनका जन्मदिन है. इस दिन को दुनिया में सांस्कृतिक, राजनैतिक और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर नृत्य कला का प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है और नृत्य को एक साझा भाषा की तरह लोगों जोड़ना है।
दुनिया भर में भेजा जाता है संदेश
हर साल आईटीआई की इंटरनेशनल डांस कमेटी और आईटीआई की एक्जीक्यूटिव काउंसिल बेहतरीन कोरियोग्राफर या नृतक को चुनते हैं दुनिया भर में संदेश भेजते हैं. संदेश के लेखक का चयन यही समिति और काउंसिल करती है. इसके बाद संदेश का दुनिया की तमाम भाषाओं में अनुवाद होता है और इसे पूरी दुनिया में प्रसारित किया जाता है।
क्या कोविड-19 का है इस बार असर
इस साल कोविड-19 को असर भी अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस पड़ रहा है. दुनिया में लोग एक देश से दूसरे देश नहीं जा सकते हैं इसलिए इस दिवस को वर्चुअल मंच पर ही मनाने का फैसला किया गया है. लेकिन कोरोना महामारी के कराण इसके उत्साह में कमी नहीं आई है।
क्या है इस बार की थीम
इस बार इंटरनेशनल डांस डे की ऑनलाइन शुरुआत परिस के समयानुसार दोपहर दो बजे से लेकर शाम छह बजे तक होगी. इस बार की थीम “नृत्य का उद्देश्य” है. इसमें प्रमुख तौर पर एक डांस परफॉर्मेंस की वीडियो शामिल होगा जिसें आईटीआई सेंटर और दूसरे सदस्यों की डांस प्रस्तुतियां होंगी. इसमें पिछले साल के संदेशों को जारी करने वालों को इस बार भी अपने विचारों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया है।
सांस्कृतिक विविधता का मिश्रण
इन ऑनलाइन प्रस्तुतियों में दुनिया भर के अलग अलग महाद्वीपों की प्रस्तुतियां होगी जिसमें शास्त्रीय से लेकर समसामियक, एकल, पास जी ड्यूक्स एवं समूह, शामिल होंगे. ये प्रस्तुतियां मंच या फिर किसी भी जगह पर हो सकती हैं. इन सभी प्रस्तुतियों को मिलाकर सांस्कृतिक विविधता की एक बेहतरीन अभिव्यक्ति के रूप में संजोया जाएगा. इनके परिचय वीडियो में कहा गया है कि आइए अंधेरे में उजाला पैदा करे के लिए दुनिया के सभी कोने से आकर एक साथ नृत्य करें।
नृत्य से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
शरीर को रोगों से दूर रखने के लिये नृत्यकला का प्रयोग किया जाता है. श्रीमदभागवत महापुराण, शिव पुराण तथा कूर्म पुराण में भी नृत्य का उल्लेख कई विवरणों में मिला है. रामायण और महाभारत में भी नृत्य का उल्लेख है. इस युग में आकर नृत्त- नृत्य- नाट्य तीनों का विकास हो चुका था. आज भी हमारे समाज में नृत्य- संगीत को उतना ही महत्व दिया जाता है कि हमारे कोई भी समारोह नृत्य के बिना संपूर्ण नहीं होते. भरत के नाट्य शास्त्र के समय तक भारतीय समाज में कई प्रकार की कलाओं का पूर्ण रूप से विकास हो चुका था. इसके बाद संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों जैसे कालिदास के शाकुंतलम- मेघदूतम, वात्स्यायन की कामसूत्र तथा मृच्छकटिकम आदि ग्रंथों में इन नृत्य का विवरण हमारी भारतीय संस्कृति की कलाप्रियता को दर्शाता है. भारत के विविध शास्त्रीय नृत्यों की अनवरत परंपराएँ हमारी इस सांस्कृतिक विरासत की धारा को लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित करती रहेंगी।
भारत में प्रमुख नृत्य कलाएं
कथकली :- कथकली नृत्य 17 वीं शताब्दी में केरल राज्य से आया। इस नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, इशारों व शारीरिक थिरकन से पूरी एक कहानी को दर्शाया जाता है। इस नृत्य में कलाकार का गहरे रंग का श्रृंगार किया जाता है, जिससे उसके चेहरे की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे सके।
मोहिनीअट्टम:- मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है। इसमें नृत्यांगना सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद सा़ड़ी पहनकर नृत्य करती है, साथ ही गहने भी काफी भारी-भरकम पहने जाते हैं। इसमें सादा श्रृंगार किया जाता है।
ओडिसी:- उ़ड़ीसा राज्य का यह प्रमुख नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है। इस नृत्य में सिर, छाती व श्रोणि का स्वतंत्र आंदोलन होता है। भुवनेश्वर स्थित उदयगिरि की पहा़ड़ियों में इसकी छवि दिखती है। इस नृत्य की कलाकृतियाँ उड़ीसा में बने भगवान जगन्नाथ के मंदिर पुरी व सूर्य मंदिर कोणार्क पर बनी हुई हैं।
कथक:- इस नृत्य की उत्पत्ति उत्तरप्रदेश से की गई, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है। कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व कथार्थ से प्राप्त होता है। मुगलराज आने के बाद जब यह नृत्य मुस्लिम दरबार में किया जाने लगा तो इस नृत्य पर मनोरंजन हावी हो गया।
भरतनाट्यम:- यह शास्त्रीय नृत्य तमिलनाडु राज्य का है। पुराने समय में मुख्यतः मंदिरों में नृत्यांगनाओं द्वारा इस नृत्य को किया जाता था। जिन्हें देवदासी कहा जाता था। इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है। यह पारंपरिक नृत्य पूरे विश्व में लोकप्रिय माना जाता है।
कुचिपुड़ी:- आंध्रप्रदेश राज्य के इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में गीत, चरित्र की मनोदशा एक नाटक से शुरू होती है। इसमें खासतौर से कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है। साथ में ही वायलिन, मृदंगम, बांसुरी की संगत होती है। कलाकारों द्वारा पहने गए गहने ‘बेरुगू’ बहुत हल्के लक़ड़ी के बने होते हैं।
मणिपुरी:- मणिपुरी राज्य का यह नृत्य शास्त्रीय नृत्यरूपों में से एक है। इस नृत्य की शैली को जोगाई कहा जाता है। प्राचीन समय में इस नृत्य को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की संज्ञा दी गई है। एक समय जब भगवान कृष्ण, राधा व गोपियाँ रासलीला कर रहे थे तो भगवान शिव ने वहाँ किसी के भी जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन माँ पार्वती द्वारा इच्छा जाहिर करने पर भगवान शिव ने मणिपुर में यह नृत्य करवाया।
नृत्य एक सशक्त अभिव्यक्ति है जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है। हमारी खुशी हमारे भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है। नृत्य अमूर्त है फिर भी जन के मन के संज्ञान और बोध को परिलक्षित करता है। मनोदशाओं को और चरित्र को दर्शाता है। संसार की बहुत सी संस्कृतियों की तरह ताइवान के मूल निवासी वृत्त में नृत्य करते हैं। उनके पूर्वजों का विश्वास था कि बुरा और अशुभ वृत्त के बाहर ही रहेगा। हाथों की श्रंखला बनाकर वो एक दूसरे के स्नेह और जोश को महसूस करते हैं, आपस में बांटते हैं और सामूहिक लय पर गतिमान होते हैं। और नृत्य समानांतर रेखाओं के उस बिंदु पर होता है जहाँ रेखाएं एक-दूसरे से मिलती हुई प्रतीत होती हैं। गति और संचालन से भाव-भंगिमाओं का सृजन और ओझल होना एक ही पल में होता रहता है। नृत्य केवल उसी क्षणिक पल में अस्तित्व में आता है। यह बहुमूल्य है। यह जीवन का लक्षण है। आधुनिक युग में, भाव-भंगिमाओं की छवियाँ लाखों रूप ले लेती हैं। वो आकर्षक होती है। परन्तु ये नृत्य का स्थान नहीं ले सकतीं क्योंकि छवियाँ सांस नहीं लेती। नृत्य जीवन का उत्सव है।
राज्यों के प्रमुख नृत्य
महाराष्ट में लावणी, कोली
पंजाब में भांगड़ा, गिद्दा
राजस्थान में घूमर,चरी
मध्य प्रदेश में राई, बधाई, मटकी, गणगौर
तमिल नाडु में भरतनाट्यम
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में कथक
केरल में मोहिनीअट्टम
आंध्र प्रदेश में कुचिपुड़ी
मणिपुर में मणिपुरी
असम में सात्रिय
ओडिसा में ओडिया
“खुद को व्यक्त करने और नृत्य की तुलना में खुद को महसूस करने का कोई अन्य तरीका नहीं है।” तो नाचो जैसे कल नहीं है…। हैप्पी इंटरनेशनल डांस डे 2021। “