दशहरा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। विजय दशमी (2021) तिथि 14 अक्टूबर को 6 बजकर 52 मिनट से प्रारंभ हो चुकी है. जो कि आज 15 अक्टूबर 2021 को शाम 6 बजकर 2 मिनट तक रहेगी विजय दशमी पर दोपहर 2 बजकर 1 मिनट से 2 बजकर 47 मिनट तक विजय मुहूर्त है। इस मुहूर्त की कुल अवधि सिर्फ 46 मिनट की है।
दशहरा का पर्व हर वर्ष आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है। पचांग के अनुसार इस वर्ष दशहरा का पर्व 15 अक्टूबर 2021 को मनाया जाएगा। इस दिन चंद्रमा मकर राशि और श्रवण नक्षत्र रहेगा. दशहरा का पर्व दिवाली से ठीक 20 दिन पहले आता है. बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में विजया दशमी मनाया जाता। पूरे देश में विजयादशमी के दिन रावण के पुतले को फूंकने की परंपरा है। इस दिन शस्त्र पूजन भी किया जाता है।
आइए जानते हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। जानिए दशहरा पर्व की पूजा का कौन सा मुहूर्त रहेगा शुभ और क्या है पूजा विधि?
क्यों मनाया जाता है दशहरा
पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने भगवान श्री राम के 14 वर्ष के वनवास के दौरान मां सीता का हरण कर लिया गया था। भगवान श्री राम ने अधर्मी रावण का नाश करने के लिए उससे कई दिनों तक युद्ध किया था। मान्यताओं अनुसार रावण से इस युद्ध के दौरान भगवान श्री राम ने अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में लगातार नौ दिनों तक मां दुर्गा की अराधना की थी। मां दुर्गा के आशीर्वाद से भगवान श्री राम ने दसवें दिन रावण का वध कर दिया था। कहा जाता है जिस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था उस दिन अश्विन मास की दशमी तिथि थी जिसे हर साल विजयादशमी यानी दशहरा के रूप में मनाया जाता है। दशहरा के दिन रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण को बुराई का प्रतीक मानकर उनके पुतले जलाए जाने की परंपरा है।
विजय दशमी धार्मिक महत्व
मान्यता के अनुसार, दशहरा के दिन प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया था. एक और मान्यता के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध भी किया था. विजय के प्रतीक दशहरा वाले दिन देश भर में अस्त्र-शस्त्र की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है, उसका शुभ लाभ अवश्य प्राप्त होता है.
दशहरा पूजा मुहूर्त
विजयादशमी पूजा का मुहूर्त दोपहर 01:16 से 03:34 बजे तक रहेगा। सबसे शुभ मुहूर्त यानी विजय मुहूर्त की बात करें तो वो दोपहर 02:02 बजे से 02:48 बजे तक रहेगा। दशमी तिथि की शुरुआत 14 अक्टूबर को शाम 06:52 बजे से हो जाएगी और इसकी समाप्ति 15 अक्टूबर को शाम 06:02 बजे पर होगी।
पंचांग
विजय दशमी तिथि – 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
दशमी तिथि प्रारम्भ – 14 अक्टूबर, 2021 को शाम 06 बजकर 52 मिनट
दशमी तिथि समाप्त – 15 अक्टूबर, 2021 को शाम 06 बजकर 02 मिनट
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ – 14 अक्टूबर, 2021 को प्रातः 09 बजकर 36 मिनट
श्रवण नक्षत्र समाप्त – 15 अक्टूबर, 2021 को प्रातः 09
बजकर 16 मिनट
दशहरा पूजा विधि
-दशहरा की पूजा अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
-इस पूजा को करने के लिए घर की पूर्व दिशा और ईशान कोण सबसे शुभ माना गया है।
-जिस स्थान पर पूजा करनी है उसे साफ करके चंदन के लेप के साथ 8 कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र बनाएं।
-अब संकल्प करते हुए देवी अपराजिता से परिवार की सुख और समृद्धि की कामना करें।
-अब अष्टदल चक्र के मध्य में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र के साथ मां देवी की प्रतिमा विराजमान कर उनका आह्वान करें।
-अब मां जया को दाईं तरफ और मां विजया को बाईं तरफ विराजमान करके उनके मंत्र क्रियाशक्त्यै नमः और उमायै नमः से उनका आह्वान करें।
-अब तीनों माताओं की विधि विधान पूजा-अर्चना करें। इसमें 1. पाद्य 2. अर्घ्य 3. आचमन 4. स्नान 5. वस्त्र 6. आभूषण 7. गन्ध 8. पुष्प 9. धूप 10. दीप 11. नैवेद्य 12. आचमन 13. ताम्बूल 14. स्तवन पाठ 15. तर्पण 16. नमस्कार शामिल है।
-देवी की पूजा के बाद भगवान श्रीराम और हनुमानजी की पूजा भी करें।
-अंत में माता की आरती उतारकर सभी को प्रसाद बांटें।
-अब प्रार्थना करें- हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार की है। कृपया मेरी यह पूजा स्वीकार करें। पूजा संपन्न होने के बाद मां को प्रणाम करें।
-हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
-इसके बाद रावण दहन के लिए बाहर जाएं।
-रावण दहन के बाद शमी की पूजा करें और घर-परिवार में सभी को शमी के पत्ते बांटने के बाद बच्चों को दशहरी दें।
-इस दिन माता की पूजा के बाद सैनिक या योद्धा लोग शस्त्रों की पूजा भी करते हैं। इसके साथ ही पूजा पाठ करने वाले पंडितजन मां सरस्वती और ग्रंथों की पूजा करते हैं। वहीं व्यापारी लोग इस दिन अपने बहीखाते और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
दशहरे के दिन होती है शस्त्र पूजा
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा का विधान है. सनातन परंपरा में शस्त्र और शास्त्र दोनों का बहुत महत्व है. शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए धर्मसम्म्त तरीके से शस्त्र का प्रयोग होता रहा है. प्राचीनकाल में क्षत्रिय शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इसी दिन का चुनाव युद्ध के लिए किया करते थे. पूर्व की भांति आज भी शस्त्र पूजन की परंपरा कायम है और देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में आज भी शस्त्र पूजा बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है।
शस्त्रों की पूजा विधि
1. दशहरे के दिन शस्त्र पूजा के विशेष महत्व दिया जाता है। इसलिए इस दिन श्रत्रिय लोग शस्त्र पूजा करते हैं।
2. इस दिन शस्त्रों के पूजा से पहले इन्हें पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर रख दिया जाता है और उसके बाद सभी शस्त्रों पर गंगाजल छिड़का जाता है।
3. गंगाजल छिड़कने के बाद शस्त्रों पर हल्दी और कुमकुम का तिलक किया जाता है और उन पर फूल अर्पित किए जाते हैं।
4. इसके बाद शस्त्रों पर शमी के पत्तों को अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि दशहरे के दिन शमी के पत्ते शस्त्रों पर अर्पित करना बहुत ही शुभ होता है।
5. पूजा के बाद शस्त्रों को प्रणाम करें और भगवान श्री राम का ध्यान करें। इसके बाद शस्त्रों को अपने स्थान पर ही रख दें और शमी के पेड़ की पूजा अवश्य करें।
मां दुर्गा, भगवान राम तथा अस्त्र-शस्त्र की पूजा का जानें महत्व
सनातन धर्म में दशहरा तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। इस दिन भगवान श्रीराम तथा महिषासुर मर्दिनि मां दुर्गा की पूजा करने से अद्भुत लाभ की प्राप्ति होती है। मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा की पूजा करने से कष्ट, दरिद्रता एवं कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। इस दिन श्री राम की पूजा करने से धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। अस्त्र-शस्त्र की पूजा करना भी फायदेमंद माना गया है। दशहरा पर पूजा करने से नवग्रह भी नियंत्रित रहते हैं।
पूजा के बाद घर में लाएं पौधा
दशहरा के दिन पूजा के बाद कोई भी पौधा घर लेकर आएं और उसकी नियमित तौर पर देखभाल करें। माना जाता है कि उस पौधे के साथ अपने मन की तकलीफ या उलझन को शेयर करने से मन हल्का होता है। साथ ही जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, उसी तरह आपकी तकलीफ भी कम होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
क्यों कहते हैं दशहरा को विजयादशमी
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरे का पर्व मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है
दशहरा पर कैसे करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न?
दशहरा या विजय दशमी पर घर के ईशान कोण में अष्टकमल बनाना चाहिए। इस दिन ईशान कोण में लाल रंग के फूल, कुमकुम या रोली से रंगोली भी बनानी चाहिए। यह उपाय करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है तथा घर में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है।
भाग्योदय के लिए दशहरा पर करें यह उपाय
भाग्योदय के लिए दशहरा पर किसी सुनसान जगह पर फिटकरी ले जाएं और अपने ऊपर सात बार उबारकर कर अपने पीछे की दिशा में फेंक दें। फेंकने के बाद सीधा अपने घर आ जाएं और मंदिर में दिया जलाएं। याद रहे फिटकरी फेंकने के बाद पीछे मुड़कर ना देखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि यह उपाय करते समय आप अकेले रहें और कोई भी आपको ना देखे।
गायत्री मंत्र का 108 बार करें जप
विजयादशमी यानि दशहरा के दिन गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करना शुरू करते हैं, तो बुद्धि-शुद्धि एवं निर्मल होगी। इससे मनुष्य का ह्रदय बल एवं आत्मबल भी बढ़ता है और उसे सभी समष्याओं का सामना करने का सामर्थ्य मिलता है।
करें शमी के वृक्ष की पूजा, मिलेगी हर काम में सफलता
विजय दशमी के दिन शमी के वृक्ष की करके किसी भी नए काम या व्यवसाय आदि की शुरुात की जाए तो उसमें जरूर सफलता मिलती है। पुराणों के मुताबिक जब भगवान श्रीलंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे तो उन्होंने शमी के वृक्ष के सामने अपना शीश झुकाया था और लंका पर विजय की कामना की थी।
अपराजिता फूल, पान, जलेबी महत्व
दशहरे में पान और जलेबी खाने का विशेष रिवाज होता है. पान को विजय का सूचक माना जाता है. इसे शस्त्र पूजा की भी है विशेष परंपरा होती है. साथ ही साथ अपराजिता फूल का भी इस दौरान विशेष महत्व होता है. आइये जानते हैं इन विशेष तत्वों के बारे में जिसके बिना आपका दशहरा हो सकता है अधूरा
पान है विजय का सूचक
दशहरे पर कई जगह रावण दहन से पहले हनुमान जी को पान चढ़ाने और फिर उस पान को खाने का विशेष रिवाज है. पान को विजय का सूचक मानते हैं और पान का ‘बीड़ा’ उठाने से तात्पर्य सत्य की राह पर चलने से है. नवरात्रि के दौरान व्रत रखने पर पाचन क्रिया प्रभावित होती है. अत: पान पाचन क्रिया को सामान्य बनाता है. चूंकि ऋतु संधियों में अक्सर रोग-बीमारियां बढ़ती हैं, ऐसे में पान का सेवन रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. विद्वान पान को मान-सम्मान के प्रतीक के तौर पर भी देखते हैं.
जलेबी खाकर मनाते हैं खुशी
पान के साथ ही दशहरे पर जलेबी खाने की भी परंपरा रही है. यही वजह है कि दशहरे के मेले में जलेबी के बहुत से स्टॉल लगे होते हैं. कहते हैं कि राम को शश्कुली नामक मिठाई बहुत पसंद थी. शश्कुली को ही आज जलेबी के नाम से जाना जाता है. इसलिए विजयादशमी पर्व पर लोग जलेबी खाकर खुशी मनाते हैं.
अपराजिता फूल के बिना विजयादशमी अधूरी
अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं. विजयादशमी काे माताओं को विदाई देने से पहले अपराजिता के नीले फूल से पूजा कर अभय दान मांगा जाता है. मान्यता है कि अपराजिता पूजन करने से कभी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है. विजयादशमी के दिन अपराजिता देवी के पूजन का विशेष विधान है।
अजेय रखेगा यह विशेष मंत्र
अपराजिता देवी की साधना और अराधना के संबंध में ‘धर्म सिन्धु’ में बड़ा ही सुंदर वर्णन किया गया है. कहा गया है कि जातक जब भटकाव की स्थिति में हो, मंत्रों के संसार को समझ न पा रहा हो, तो सबसे आसान उपाय कि उस देवता या देवी के लिए गायत्री मंत्र का प्रयोग करे, यथा –
ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे शक्तिः धीमहि अपराजितायै प्रचोदयात।
सामर्थ्य के अनुसार उपरोक्त गायत्री का जप करें. देवी अपराजिता का वरद हस्त प्राप्त करने से जीवन में सदा अजेय और संपन्न होंगे।
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