योग किसी खास धर्म, आस्था पद्धति या समुदाय के मुताबिक नहीं चलता है; इसे सदैव अंतरतम की सेहत के लिए कला के रूप में देखा गया है। जो कोई भी तल्लीनता के साथ योग करता है वह इसके लाभ प्राप्त कर सकता है, चाहे उसका धर्म, जाति या संस्कृति जो भी हो।
“रहना है निरोग, तो रोज़ करो योग”| भारत की संस्कृति में योग का महत्व प्राचीन काल से रहा है| और इस आधुनिक काल में भी यह विश्व भर में अपनी पहचान रखता है| विश्व में योगा डे (Yoga Day) मनाने के पीछे की जानकारी के लिए हमें ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं है|
आज से करीब 6 वर्ष पूर्व, 27 सितम्बर 2014 को भारत के नव निर्वाचित प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सयुंक्त राष्ट्र की सामान्य सभा में अपना भाषण देते हैं| अपने भाषण के दौरान वो योगा के सन्दर्भ में कहते हैं कि योग भारत की प्राचीन परम्परा का अमूल्य उपहार है, यह मन और शरीर की एकता का प्रतीक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है, यह व्यायम के बारे में ना होकर दुनिया और प्रकृति के साथ एकता की भावना की खोज करना है, यह कहकर वो योग दिवस मनाने की तरफ कदम बड़ाने का आह्वाहन करते हैं|
इसके बाद 14 अक्टूबर 2014 में ही, “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” (International Yoga Day) नामक मसौदा प्रस्ताव (draft resolution) पर सयुंक्त राष्ट्र सभा अनौपचारिक विचार विमर्श शुरू करती है और 11 दिसंबर 2014 को भारत के स्थाई प्रतिनिधि अशोक मुखर्जी सभा में यह मसौदा (ड्राफ्ट रेसोलुशन) पेश कर देते हैं जिसे अभूतपूर्व 177 सदस्य राज्यों का व्यापक समर्थन मिलता है| 21 जून की तारीख प्रस्तावित करते समय नरेंद्र मोदी ने कहा की यह तारीख उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लम्बा दिन है, और दुनिया के कई हिस्सों में इसका विशेष महत्व है| उनकी इसी बात के कारण 21 जून 2015 को इसे पहली बार मनाया गया|
योगा, आधुनिक काल में ध्यान और व्यायाम का लोकप्रिय रूप है, परन्तु ऐसा हमेशा नहीं था| प्राचीन समय में पुरुष योगी और महिला योगी (योगिनि) योग का अभ्यास करने के साथ अपने शिष्यों को यह कला सिखाते थे| करीब 2000 साल पुराना साधू पतंजलि द्वारा लिखा गया “योग सूत्र” सबसे पुराने लिखे गए दस्तावेजों में से एक है| योग से हमें अपने मन और भावनाओं को नियंत्रण में रखने की सहायता मिलती है| आजकल योग अपनी मुद्राओं (poses and postures) से ज्यादा जाना जाता है परन्तु यह उससे ज्यादा श्वास और मानसिक ध्यान करके आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करना है|
2021 अंतराष्ट्रीय योग दिवस का विषय
“Yoga at home and Yoga with Family”
इस कोरोना महामारी के कारण वर्तमान समय में लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में लॉकडाउन लगा हुआ है| ऐसी परिस्थिति में लोगों के लिए पिछले वर्षों की तरह खुली जगह पर योग करना मुश्किल है| आज के समय खुली जगह में इकट्ठा होकर साथ में योग करना खतरनाक साबित हो सकता है| इसी को ध्यान रखकर साल 2021 की थीम, लोगों को घर में रहकर अपने परिवार के साथ योग करने की सलाह देती है|
योग : इसकी उत्पित्ति, इतिहास एवं विकास
लेखक : डा. ईश्वर वी बासावरड्डी
मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के निदेशक हैं।
योग तत्वत: बहुत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मि विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान देता है। यह स्वस्थ जीवन – यापन की कला एवं विज्ञान है। योग शब्द संस्कृत की युज धातु से बना है जिसका अर्थ जुड़ना या एकजुट होना या शामिल होना है। योग से जुड़े ग्रंथों के अनुसार योग करने से व्यक्ति की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है जो मन एवं शरीर, मानव एवं प्रकृति के बीच परिपूर्ण सामंजस्य का द्योतक है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की हर चीज उसी परिमाण नभ की अभिव्यक्ति मात्र है। जो भी अस्तित्व की इस एकता को महसूस कर लेता है उसे योग में स्थित कहा जाता है और उसे योगी के रूप में पुकारा जाता है जिसने मुक्त अवस्था प्राप्त कर ली है जिसे मुक्ति, निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है। इस प्रकार, योग का लक्ष्य आत्म-अनुभूति, सभी प्रकार के कष्टों से निजात पाना है जिससे मोक्ष की अवस्था या कैवल्य की अवस्था प्राप्त होती है। जीवन के हर क्षेत्र में आजादी के साथ जीवन – यापन करना, स्वास्थ्य एवं सामंजस्य योग करने के प्रमुख उद्देश्य होंगे। योग का अभिप्राय एक आंतरिक विज्ञान से भी है जिसमें कई तरह की विधियां शामिल होती हैं जिनके माध्यम से मानव इस एकता को साकार कर सकता है और अपनी नियति को अपने वश में कर सकता है। चूंकि योग को बड़े पैमाने पर सिंधु – सरस्वती घाटी सभ्यता, जिसका इतिहास 2700 ईसा पूर्व से है, के अमर सांस्कृतिक परिणाम के रूप में बड़े पैमाने पर माना जाता है, इसलिए इसने साबित किया है कि यह मानवता के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह के उत्थान को संभव बनाता है। बुनियादी मानवीय मूल्य योग साधना की पहचान हैं।
योग का संक्षिप्त इतिहास एवं विकास:
ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग के विज्ञान की उत्पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्था के जन्म लेने से काफी पहले हुई थी। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है।
कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में कांति सरोवर झील के तटों पर आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्तऋषि को प्रदान किया था। सत्पऋषियों ने योग के इस ताकतवर विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका एवं दक्षिण अमरीका सहित विश्व के भिन्न – भिन्न भागों में पहुंचाया। रोचक बात यह है कि आधुनिक विद्वानों ने पूरी दुनिया में प्राचीन संस्कृतियों के बीच पाए गए घनिष्ठ समानांतर को नोट किया है। तथापि, भारत में ही योग ने अपनी सबसे पूर्ण अभिव्यक्ति प्राप्त की। अगस्त नामक सप्तऋषि, जिन्होंने पूरे भारतीय उप महाद्वीप का दौरा किया, ने यौगिक तरीके से जीवन जीने के इर्द-गिर्द इस संस्कृति को गढ़ा।
योग करते हुए पित्रों के साथ सिंधु – सरस्वती घाटी सभ्यता के अनेक जीवाश्म अवशेष एवं मुहरें भारत में योग की मौजूदगी का संकेत देती हैं।योग करते हुए पित्रों के साथ सिंधु – सरस्वती घाटी सभ्यता के अनेक जीवाश्म अवशेष एवं मुहरें भारत में योग की मौजूदगी का आभास देती हैं। देवी मां की मूर्तियों की मुहरें, लैंगिक प्रतीक तंत्र योग का सुझाव देते हैं। लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक एवं उपनिषद की विरासत, बौद्ध एवं जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत एवं रामायण नामक महाकाव्यों, शैवों, वैष्णवों की आस्तिक परंपराओं एवं तांत्रिक परंपराओं में योग की मौजूदगी है। इसके अलावा, एक आदि या शुद्ध योग था जो दक्षिण एशिया की रहस्यवादी परंपराओं में अभिव्यक्त हुआ है। यह समय ऐसा था जब योग गुरू के सीधे मार्गदर्शन में किया जाता था तथा इसके आध्यात्मिक मूल्य को विशेष महत्व दिया जाता था। यह उपासना का अंग था तथा योग साधना उनके संस्कारों में रचा-बसा था। वैदिक काल के दौरान सूर्य को सबसे अधिक महत्व दिया गया। हो सकता है कि इस प्रभाव की वजह से आगे चलकर ‘सूर्य नमस्कार’ की प्रथा का आविष्कार किया गया हो। प्राणायाम दैनिक संस्कार का हिस्सा था तथा यह समर्पण के लिए किया जाता था। हालांकि पूर्व वैदिक काल में योग किया जाता था, महान संत महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं, इसके आशय एवं इससे संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित एवं कूटबद्ध किया। पतंजलि के बाद, अनेक ऋषियों एवं योगाचार्यों ने अच्छी तरह प्रलेखित अपनी प्रथाओं एवं साहित्य के माध्यम से योग के परिरक्षण एवं विकास में काफी योगदान दिया।
सूर्य नमस्कारपूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) में एवं इसके बाद पतंजलि काल तक योग की मौजूदगी के ऐतिहासिक साक्ष्य देखे गए। मुख्य स्रोत, जिनसे हम इस अवधि के दौरान योग की प्रथाओं तथा संबंधित साहित्य के बारे में सूचना प्राप्त करते हैं, वेदों (4), उपनिषदों (18), स्मृतियों, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पाणिनी, महाकाव्यों (2) के उपदेशों, पुराणों (18) आदि में उपलब्ध हैं।
अनंतिम रूप से 500 ईसा पूर्व – 800 ईस्वी वर्ष के बीच की अवधि को श्रेष्ठ अवधि के रूप में माना जाता है जिसे योग के इतिहास एवं विकास में सबसे उर्वर एवं महत्वपूर्ण अवधि के रूप में भी माना जाता है। इस अवधि के दौरान, योग सूत्रों एवं भागवद्गीता आदि पर व्यास के टीकाएं अस्तित्व में आईं। इस अवधि को मुख्य रूप से भारत के दो महान धार्मिक उपदेशकों – महावीर एवं बुद्ध को समर्पित किया जा सकता है। महावीर द्वारा पांच महान व्रतों – पंच महाव्रतों एवं बुद्ध द्वारा अष्ठ मग्गा या आठ पथ की संकल्पना – को योग साधना की शुरूआती प्रकृति के रूप में माना जा सकता है। हमें भागवद्गीता में इसका अधिक स्पष्ट स्पष्टीकरण प्राप्त होता है जिसमें ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग की संकल्पना को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। तीन प्रकार के ये योग आज भी मानव की बुद्धिमत्ता के सर्वोच्च उदाहरण हैं तथा आज भी गीता में प्रदर्शित विधियों का अनुसरण करके लागों को शांति मिलती है। पतंजलि के योग सूत्र में न केवल योग के विभिन्न घटक हैं, अपितु मुख्य रूप से इसकी पहचान योग के आठ मार्गों से होती है। व्यास द्वारा योग सूत्र पर बहुत महत्वपूर्ण टीका भी लिखी गई। इसी अवधि के दौरान मन को महत्व दिया गया तथा योग साधना के माध्यम से स्पष्टता से बताया गया कि समभाव का अनुभव करने के लिए मन एवं शरीर दोनों को नियंत्रित किया जा सकता है। 800 ईसवी – 1700 ईसवी के बीच की अवधि को उत्कृष्ट अवधि के बाद की अवधि के रूप में माना जाता है जिसमें महन आचार्यत्रयों – आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और माधवाचार्य – के उपदेश इस अवधि के दौरान प्रमुख थे। इस अवधि के दौरान सुदर्शन, तुलसी दास, पुरंदर दास, मीराबाई के उपदेशों ने महान योगदान दिया। हठयोग परंपरा के नाथ योगी जैसे कि मत्स्येंद्र नाथ, गोरख नाथ, गौरांगी नाथ, स्वात्माराम सूरी, घेरांडा, श्रीनिवास भट्ट ऐसी कुछ महान हस्तियां हैं जिन्होंने इस अवधि के दौरान हठ योग की परंपरा को लोकप्रिय बनाया।
1700 – 1900 ईसवी के बीच की अवधि को आधुनिक काल के रूप में माना जाता है जिसमें महान योगाचार्यों – रमन महर्षि, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद, विवेकानंद आदि ने राज योग के विकास में योगदान दिया है। यह ऐसी अवधि है जिसमें वेदांत, भक्ति योग, नाथ योग या हठ योग फला – फूला। शादंगा – गोरक्ष शतकम का योग, चतुरंगा – हठयोग प्रदीपिका का योग, सप्तंगा – घेरांडा संहिता का योग – हठ योग के मुख्य जड़सूत्र थे।
अब समकालीन युग में स्वास्थ्य के परिरक्षण, अनुरक्षण और संवर्धन के लिए योग में हर किसी की आस्था है। स्वमी विवेकानंद, टी कृष्णमचार्य, स्वामी कुवालयनंदा, योगेंद्र, स्वामी राम, अरविंदो, महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश, पट्टाभिजोइस, बी के एस आयंगर, स्वामी सत्येंद्र सरस्वती आदि जैसी महान हस्तियों के उपदेशों से आज योग पूरी दुनिया में फैल गया है।
बी के एस आयंगर ”आयंगर योग” के नाम से विख्यात योग शैली के संस्थापक थे तथा उनको दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योग शिक्षकों में से एक के रूप में माना जाता है।
भ्रातियों को दूर करना :
कई लोगों के लिए योग का अर्थ हठ योग एवं आसनों तक सीमित है। तथापि, योग सूत्रों में केवल तीन सूत्रों में आसनों का वर्णन आता है। मौलिक रूप से हठ योग तैयारी प्रक्रिया है जिससे कि शरीर ऊर्जा के उच्च स्तर को बर्दाश्त कर सके। प्रक्रिया शरीर से शुरू होती है फिर श्वसन, मन और अंतरतम की बारी आती है।
आम तौर पर योग को स्वास्थ्य एवं फिटनेस के लिए थिरेपी या व्यायाम की पद्धति के रूप में समझा जाता है। हालांकि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य योग के स्वाभाविक परिणाम हैं, परंतु योग का लक्ष्य अधिक दूरगामी है। ”योग ब्रह्माण्ड से स्वयं का सामंजस्य स्थापित करने के बारे में है। यह सर्वोच्च स्तर की अनुभूति एवं सामंजस्य प्राप्त करने के लिए ब्रह्माण्ड से स्वयं की ज्यामिती को संरेखित करने की कला है।
योग किसी खास धर्म, आस्था पद्धति या समुदाय के मुताबिक नहीं चलता है; इसे सदैव अंतरतम की सेहत के लिए कला के रूप में देखा गया है। जो कोई भी तल्लीनता के साथ योग करता है वह इसके लाभ प्राप्त कर सकता है, उसका धर्म, जाति या संस्कृति जो भी हो।
योग की परंपरागत शैलियां :
योग के ये भिन्न – भिन्न दर्शन, परंपराएं, वंशावली तथा गुरू – शिष्य परंपराएं योग की ये भिन्न – भिन्न परंपरागत शैलियों के उद्भव का मार्ग प्रशस्त करती हैं, उदाहरण के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, पतंजलि योग, कुंडलिनी योग, हठ योग, मंत्र योग, लय योग, राज योग, जैन योग, बुद्ध योग आदि। हर शैली के अपने स्वयं के सिद्धांत एवं पद्धतियां हैं जो योग के परम लक्ष्य एवं उद्देश्यों की ओर ले जाती हैं।
स्वास्थ्य एवं तंदरूस्ती के लिए योग की पद्धतियां :
वड़े पैमाने पर की जाने वाली योग साधनाएं इस प्रकार हैं : यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि / साम्यामा, बंध एवं मुद्राएं, षटकर्म, युक्त आहार, युक्त कर्म, मंत्र जप आदि।
यम : अंकुश हैं तथा नियम आचार हैं। इनको योग साधना के लिए पहली आवश्यकता के रूप में माना जाता है।
आसन : शरीर एवं मन की स्थिरता लाने में सक्षम ‘कुर्यात तद आसनं स्थैर्यम…’ के तहत काफी लंबी अवधि तक शरीर (मानसिक – शारीरिक) के विभिन्न पैटर्न को अपनाना, शरीर की मुद्रा बनाए रखने की सामर्थ्य प्रदान करना (अपने संरचनात्मक अस्तित्व की स्थिर चेतना) शामिल है।
प्राणायाम की विभिन्न मुद्राएं :
प्राणायाम के तहत अपने श्वसन की जागरूकता पैदा करना और अपने अस्तित्व के प्रकार्यात्मक या महत्वपूर्ण आधार के रूप में श्वसन को अपनी इच्छा से विनियमित करना शामिल है। यह अपने मन की चेतना को विकसित करने में मदद करता है तथा मन पर नियंत्रण रखने में भी मदद करता है। शुरूआती चरणों में, यह नासिकाओं, मुंह तथा शरीर के अन्य द्वारों, इसके आंतरिक एवं बाहरी मार्गों तथा गंतव्यों के माध्यम से श्वास – प्रश्वास की जागरूकता पैदा करके किया जाता है। आगे चलकर, विनियमित, नियंत्रित एवं पर्यवेक्षित श्वास के माध्यम से इस परिदृश्य को संशोधित किया जाता है जिससे यह जागरूकता पैदा होती है कि शरीर के स्थान भर रहे हैं (पूरक), स्थान भरी हुई अवस्था में बने हुए हैं (कुंभक) और विनियमित, नियंत्रित एवं पर्यवेक्षित प्रश्वास के दौरान यह खाली हो रहा है (रेचक)।
प्रत्याहार : ज्ञानेंद्रियों से अपनी चेतना को अलग करने का प्रतीक है, जो बाहरी वस्तुओं से जुड़े रहने में हमारी मदद करती हैं।
धारणा ध्यान : (शरीर एवं मन के अंदर) के विस्तृत क्षेत्र का द्योतक है, जिसे अक्सर संकेंद्रण के रूप में समझा जाता है। ध्यान शरीर एवं मन के अंदर अपने आप को केंद्रित करना है और समाधि – एकीकरण।
बंध और मुद्राएं : प्राणायाम से संबद्ध साधनाएं हैं। इनको योग की उच्चतर साधना के रूप में देखा जाता है क्योंकि इनमें मुख्य रूप से श्वसन पर नियंत्रण के साथ शरीर (शारीरिक – मानसिक) की कतिपय पद्धतियों को अपनाना शामिल है। इससे मन पर नियंत्रण और सुगम हो जाता है तथा योग की उच्चतर सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
षटकर्म : विषाक्तता दूर करने की प्रक्रियाएं हैं तथा शरीर में संचित विष को निकालने में मदद करते हैं और ये नैदानिक स्वरूप के हैं।
युक्ताहार : (सही भोजन एवं अन्य इनपुट) स्वस्थ जीवन के लिए उपयुक्त आहार एवं खान-पान की आदतों की वकालत करता है। तथापि, आत्मानुभूति, जिसे उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है, में मदद करने वाली ध्यान की साधना को योग साधना के सार के रूप में माना जाता है।
योग साधना की मौलिक बातें :
योग हमारे शरीर, मन, भावना एवं ऊर्जा के स्तर पर काम करता है। इसकी वजह से मोटेतौर पर योग को चार भागों में बांटा गया है : कर्मयोग, जहां हम अपने शरीर का उपयोग करते हैं; भक्तियोग, जहां हम अपनी भावनाओं का उपयोग करते हैं; ज्ञानयोग, जहां हम मन एवं बुद्धि का प्रयोग करते हैं और क्रियायोग, जहां हम अपनी ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
हम योग साधना की जिस किसी पद्धति का उपयोग करें, वे इन श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी या अधिक श्रेणियों के तहत आती हैं। हर व्यक्ति इन चार कारकों का एक अनोखा संयोग होता है। ”योग पर सभी प्राचीन टीकाओं में इस बात पर जोर दिया गया है कि किसी गुरू के मार्गदर्शन में काम करना आवश्यक है।” इसका कारण यह है कि गुरू चार मौलिक मार्गों का उपयुक्त संयोजन तैयार कर सकता है जो हर साधक के लिए आवश्यक होता है।
योग शिक्षा : परंपरागत रूप से, परिवारों में ज्ञानी, अनुभवी एवं बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा (पश्चिम में कंवेंट में प्रदान की जानी वाली शिक्षा से इसकी तुलना की जा सकती है) और फिर आश्रमों में (जिसकी तुलना मठों से की जा सकती है) ऋषियों / मुनियों / आचार्यों द्वारा योग की शिक्षा प्रदान की जाती थी। दूसरी ओर, योग की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति, अस्तित्व का ध्यान रखना है। ऐसा माना जाता है कि अच्छा, संतुलित, एकीकृत, सच पर चलने वाला, स्वच्छ, पारदर्शी व्यक्ति अपने लिए, परिवार, समाज, राष्ट्र, प्रकृति और पूरी मानवता के लिए अधिक उपयोगी होगा। योग की शिक्षा स्व की शिक्षा है। विभिन्न जीवंत परंपराओं तथा पाठों एवं विधियों में स्व के साथ काम करने के व्यौरों को रेखांकित किया गया है जो इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में योगदान कर रहे हैं जिसे योग के नाम से जाना जाता है।
आजकल, योग की शिक्षा अनेक मशहूर योग संस्थाओं, योग विश्वविद्यालयों, योग कालेजों, विश्वविद्यालयों के योग विभागों, प्राकृतिक चिकित्सा कालेजों तथा निजी न्यासों एवं समितियों द्वारा प्रदान की जा रही है। अस्पतालों, औषधालयों, चिकित्सा संस्थाओं तथा रोगहर स्थापनाओं में अनेक योग क्लीनिक, योग थेरेपी और योग प्रशिक्षण केंद्र, योग की निवारक स्वास्थ्य देख-रेख यूनिटें, योग अनुसंधान केंद्र आदि स्थापित किए गए हैं।
योग की धरती भारत में विभिन्न सामाजिक रीति-रिवाज एवं अनुष्ठान पारिस्थितिकी संतुलन, दूसरों की चिंतन पद्धति के लिए सहिष्णुता तथा सभी प्राणियों के लिए सहानुभूति के लिए प्रेम प्रदर्शित करते हैं। सभी प्रकार की योग साधना को सार्थक जीवन एवं जीवन-यापन के लिए रामबाण माना जाता है। व्यापक स्वास्थ्य, सामाजिक एवं व्यक्तिगत दोनों, के लिए इसका प्रबोधन सभी धर्मों, नस्लों एवं राष्ट्रीयताओं के लोगों के लिए इसके अभ्यास को उपयोगी बनाता है।
आजकल पूरी दुनिया में योग साधना से लाखों व्यक्तियों को लाभ हो रहा है, जिसे प्राचीन काल से लेकर आजतक योग के महान आचार्यों द्वारा परिरक्षित किया गया है। योग साधना का हर दिन विकास हो रहा है तथा यह अधिक जीवंत होती जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर जानें 10 आसान योगासन जो देंगे आपको हेल्दी लाइफ
योग के फायदे
– दर्द को कम करता है.
– चिंता को कम करता है.
– ब्लड प्रेशर कम करता है.
– फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है.
– श्वसन तंत्र और हार्ट रेट में सुधार लाता है.
– सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है, मांसपेशियों में खिंचाव पैदा करता है.
– संतुलन में सुधार लाता हैं
– ब्लड शुगर को नियन्त्रित करता है.
– हड्डियों के घनत्व यानि बोन डेंसिटी में सुधार लाता है.
– शरीर की क्षमता बढ़ाकर समग्र स्वास्थ्य में सुधार लाता है.
बद्ध कोणासन (तितली मुद्रा)
इस मुद्रा को बद्ध कोणासन कहते हैं क्योंकि इस मुद्रा में दोनों पैर कमर के करीब लाए जाते हैं, इसके बाद हाथों को एक विशेष कोण पर लाकर इनसे पैरों को बांध लिया जाता है. इसे तितली मुद्रा भी कहते हैं क्योंकि मुद्रा के दौरान शरीर की गतियां और रूप, पंख फैलाए हुए तितली जैसा दिखाई देता है. इस मुद्रा को कभी-कभी मोची मुद्रा भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें व्यक्ति ऐसा दिखा देता है जैसे मोची की तरह बैठ कर काम कर रहा हो.
इसे कैसे करें
1. फर्श पर सीधे बैठ जाएं, कमर सीधी रखें.
2. अपने घुटनों को इस तरह से मोड़ें कि पैरों की तलुएं एक दूसरे को छुएं.
3. अब अपने दोनों पैरों को दोनों हाथों से इस तरह पकड़ें कि आपकी अंगुलियां सामने की ओर इंटरलॉक हो जाएं.
4. अब गहरी सांस लें. जब आप सांस बाहर छोड़ेंगे, अपने घुटनों को फर्श की ओर लेकर आएं, साथ ही अपनी कोहनियों से घुटनों पर दबाव बनाएं.
5. अपने आंखें बंद कर लें, सांस लेते समय अपने भौहों के बीच ध्यान केन्द्रित करें.
6. 5 मिनट तक इसी मुद्रा में रहें.
7. अब अपनी आंखें खोलें और अपने हाथों एवं पैरों को ढीला छोड़ दें.
बद्ध कोणासन के फायदे
– यह योग पेट के अंगों, अंडाश्य (ओवरीज़), प्रोस्टेट ग्लैण्ड, ब्लैडर और किडनी (गुर्दों) के लिए फायदेमंद है.
– दिल के लिए फायदेमंद हैं और सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है.
– जांघों के भीतरी हिस्से, कमर और घुटनों में खिंचाव पैदा करता है.
– हल्के अवसाद, तनाव और थकान में राहत देता है.
– माहवारी के दौरान होने वाली असहजता और साइटिका के दर्द में आराम देता है.
– मेनोपॉज़ के लक्षणों में आराम देता है.
इस योग को करते समय विशेष ध्यान दें:
अगर आप साइटिका के मरीज़ हैं या हाल ही में आपके घुटने में चोट लगी है तो आपको बद्ध कोणासन नहीं करना चाहिए.
बालासन (चाइल्ड पोज़)
चाइल्ड पोज़ (बालासन) योग की सबसे महत्वपूर्ण आरामदायक मुद्रा है और यह धीरे-धीरे आपके शरीर के विभिन्न हिस्सों में खिंचाव लाने का अच्छा तरीका है. इससे आप अपनी पॉज़िशन बदल सकते हैं, अपनी सांस के साथ रीकनेक्ट कर सकते हैं या एक मुद्रा के बाद अगली मुद्रा के लिए तैयारी कर सकते हैं.
बालासन (चाइल्ड पोज़) कैसे करें
1. फर्श पर वज्रासन में बैठ जाएं.
2. आगे की ओर मुड़ें जब तक कि आपका माथा घुटनों के सामने फर्श पर न छुने लगे.
3. अब अपनी भुजाओं को सामने की ओर लेकर जाएं, हथेलियां नीचे की ओर हों.
4. धीरे धीरे छाती से जांघों पर दबाव डालें. अब सांस अंदर खींचें, नाभि को रीढ़ की हड्डी की ओर खीचें और इसके बाद सांस छोड़ दें, पेट को रिलेक्स करें.
5. इसी योग मुद्रा में 5 बार गहरी सांस लें.
6. धीरे-धीरे अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को उठाकर सामान्य मुद्रा में ले आएं और रिलेक्स हो जाएं.
बालासन (चाइल्ड पोज़) के फायदे
– पीठ को बहुत अधिक आराम मिलता है.
– कब्ज़ में राहत मिलती है.
– यह योग आपके तंत्रिका तंत्र को आराम देता है.
इस योग को करते समय विशेष ध्यान दें: अगर आप डायरिया से पीड़ित हैं या गर्भवती महिला हैं तो बालासन न करें.
सेतुबंधासन (ब्रिज पोज़)
सेतु बंध, संस्कृत भाषा का शब्द है. ‘सेतु’ का अर्थ है पुल और बंध का अर्थ है बांधना यानि लॉक करना और आसन का अर्थ है मुद्रा या पोज़, यानि बैठने का तरीका.
सेतुबंधासन (ब्रिज पोज़) कैसे करें
– ज़मीन पर सीधे लेट जाएं.
– अपने घुटनों को मोड़ें और पैरों एवं कूल्हों के बीच दूरी बनाएं. इस दौरान आपकी भुजाएं जमीन पर टिकी हों और हथेलियां ऊपर की ओर हों.
– अब सांस भीतर की ओर खीचें, धीरे-धीरे अपने पीठ को फ़र्श से ऊपर उठाएं जब तक आपकी छाती ठुड्डी को न छुने लगे. इस दौरान आपके नितंबों में खिंचाव बना रहे.
– अपने दोनों हाथों को आगे की ओर धकेल कर पैरों को पकड़ें. इस दौरान आपके कंधे, भुजाएं और पैर ज़मीन पर मजबूती से टिके रहें.
– इस योग मुद्रा में 5 बार गहरी सांस लें.
– अब सांस छोडें और धीरें-धीरे सामान्य मुद्रा में आ जाएं.
सेतुबंधासन (ब्रिज पोज़) के फायदे
– यह योग आपकी पीठ की मांसपेशियों को मजबूती देता हैं
– पीठ की थकान में तुरंत आराम देता है.
– छाती, गर्दन और रीढ़ में अच्छा खिंचाव पैदा करता है.
– दिमाग को शांत कर, चिंता, तनाव एवं अवसाद में राहत देता है.
– फेफड़ों को खोलता है और थॉयरोइड की समस्या में आराम देता है.
– पाचन तंत्र में सुधार लाता है.
– मेनोपॉज़ के लक्षणों और माहवारी के दर्द में आराम देता है.
– अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, ऑस्टियोपोरोसिस और साइनुसाइटिस में फायदेमंद है.
इस योग को करते समय विशेष ध्यान दें: अगर आपकी पीठ या कंघे में चोट है तो सेतुबंधासन न करें.
वज्रासन (एडमेंटाईन मुद्रा)
‘वज्र’ का अर्थ है हीरे जैसा आकार या बिजली गिरना; ‘आसन’ का अर्थ है मुद्रा. वज्रासन का नाम इसके हीरे या बिजली जैसे आकार को ध्यान में रखते हुए दिया है.
वज्रासन (एडमेंटाईन मुद्रा) कैसे करें
– टांगों को सामने की ओर सीधा रखते हुए सीधे बैठ जाएं.
– अब दोनों टांगों को मोड़ें और घुटनो के बल बैठें, इस दौरान कूल्हें आपकी एड़ियां पर टिके हों; पैरों की अंगुलियां पीछे की ओर हों और आपके पैरों की दोनों बड़ी अंगुलियां एक दूसरे को छुएं. अगर आप शुरूआत कर रहे हैं तो आप अपने पैरों के नीचे कुशन रख सकते हैं, इससे टखनों में दर्द नहीं होगा. अगर आपको घुटनो में दर्द होता है तो घुटनां के नीचे भी कंबल या कुशन रख सकते हैं.
– एड़ियों के बीच बने गड्ढे में आराम से बैठ जाएं.
– आपका सिर, गर्दन और रीढ़ एक सीधी रेखा में हों. हथेलियों को जांघों पर रखें, चेहरा सामने की ओर हो.
– अगर आप लम्बे समय से योग कर रहे हैं तो आप इस मुद्रा में 15 मिनट बैठ सकते हैं, इस दौरान गहरी सांसें लें. अगर आपने योग करना अभी शुरू ही किया है तो अपने आराम को ध्यान में रखते हुए 30 सैकण्ड इस मुद्रा में बैठें.
– अब सांस छोड़ें और रिलेक्स करें.
– अपनी टांगों को सीधा कर लें.
वज्रासन (एडमेंटाईन मुद्रा) के फायदे
– इससे पीट के नीचले हिस्से में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार होता है, पाचन तंत्र में सुधार आता है.
– पेट में दर्द और गैस में राहत मिलती है.
– घुटने और टखने की जोड़ों में प्रत्यास्थता आती है, र्युमेटिक रोगां की संभावना कम हो जाती है.
– गर्दन और रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है, पीठ की नाड़ियों (एनर्जी चैनलों) में एनर्जी का प्रवाह आसानी से होता है.
– कमर और कूल्हों को आराम मिलता है, माहवारी के दर्द में आराम मिलता है.
– यह प्राणायाम के लिए मूल मुद्रा है, साथ ही मनन की तैयारी के लिए भी इसी मुद्रा को अपनाया जाता है.
इस योग को करते समय विशेष ध्यान दें:
– जिन लोगों को पैर, टखने और घुटने में अकड़न की परेशानी या एक्यूट बीमारियां हैं तो उन्हें यह योग नहीं करना चाहिए.
– स्लिप डिस्क के मरीज़ों को यह योग नहीं करना चाहिए.
– जिन्हें हाथ-पैर हिलाने में परेशानी होती है, वे इस योग को ध्यानपूर्वक करें.
– – यह एक मात्र योगासन है जिसे आप खाने के बाद कर सकते हैं. अगर आप खाने के बाद वज्रासन में बैठ जाएं जो खाना जल्दी पचता है.
– इस आसन से शरीर के नीचे हिस्सों में रक्त का प्रवाह कम होता है और ऊपरी हिस्से यानि पाचन तंत्र, फेफड़ों और दिमाग में सर्कुलेशन बढ़ता है.
अर्द्धमत्येन्द्रासन (मछली मुद्रा)
यह मुद्रा पेट के अंगों के लिए फायदेमंद है, जिससे ब्लड शुगर कम करने में मदद मिलती है. पाचन तंत्र में सुधार होता है और शरीर में एनर्जी का स्तर बढ़ता है.
अर्द्धमत्येन्द्रासन (मछली मुद्रा) कैसे करें:
– क्रॉस-लैग्ड स्थिति में बैठ जाएं. दाएं पैर बाएं कूल्हे के बाहर की ओर ले जाएं.
– बाईं टांग को दाई टांग के ऊपर क्रॉस करें, ताकि बायां पैर दाएं कूल्हे के बाहर की ओर टिक जाए.
– नितम्बों में खिंचाव लाएं और अपनी रीढ़ को सीधा करें.
– शरीर को बाईं ओर मोड़ें.
– बाएं हाथ को पीछे की ओर फर्श पर टिकाएं.
– दायीं ऊपरी भुजा को बाएं कूल्हे के बाहर की ओर लाएं. आप अपने हाथों को कूल्हे पर रख सकते हैं और बाजु को आगे की ओर हवा में सीधा भी कर सकते हैं.
– हर बार सांस भीतर की ओर लेते समय ऊपर की ओर खिंचाव बनाएं.
– हर बार सांस बाहर की ओर लेते हुए नीचे की ओर रिलेक्स करने की कोशिश करें.
– इस दौरान किसी एक कंधे की ओर देखें.
– 1 मिनट के लिए इसी मुद्रा में रहें.
– इसके बाद दूसरी तरफ़ दोहराएं.
अर्द्धमत्येन्द्रासन (मछली मुद्रा) के फायदे
– लिवर और किडनी के लिए फायदेमंद है.
– कंधा, कूल्हों और गर्दन में खिंचाव लाता है.
– रीढ़ को एनर्जी देता है.
– पेट में पाचन अग्नि को उत्तेजित करता है.
– माहवारी के दौरान होने वाले दर्द, थकान, साइटिका, पीठ दर्द में आराम देता हैं
– अस्थमा और बांझपन में फायदेमंद है.
– पारम्परिक ग्रंथों क अनुसार अर्द्धमत्सयासन से भूख बढ़ती है, डायबिटीज़ जैसी बीमारियां दूर होती हैं और कुंडलिनी जागती है.
इस योग को करते समय विशेष ध्यान देंः अगर आपकी पीठ में चोट है तो अनुभवी योग गुरू की निगरानी में ही यह व्यायाम करें.
धनुरासन (धनुष मुद्रा)
यह मुद्रा आपकी छाती में खिंचाव लाती है और पेट के अंगों को आराम देती है. इससे ब्लड शुगर कम होता है और कब्ज़ में राहत मिलती है. साथ ही श्वसन तंत्र को आराम मिलता है.
धनुरासन (धनुष मुद्रा) कैसे करें:
1. पेट के बल लेट जाएं.
2. बाजुओं को शरीर के साइड में आराम से रखेंं, हथेलियां ऊपर की ओर हों.
3. घुटनों को मोड़ें और हाथों को टखने के बाहर की ओर लेकर जाएं.
4. अपने सिर, छाती और घुटनों को ऊपर की ओर उठाएं.
5. गहरी सांस लें और आगे की ओर देखें.
6. इस म्रदा में 30 सैकण्ड तक रूकें.
7. अब गहरी सांस लें और मुद्रा को छोड़ें.
8. एक हाथ को दूसरे हाथ पर रखकर अपने माथे के लिए तकिया बनाएं.
9. धीरे-धीरे अपने कूल्हों को साईड में लाकर पीठ के नीचले हिस्से को रिलेक्स करें.
10. आप एक या दो बार यह योग कर सकते हैं.
धनुरासन (धनुष मुद्रा) के फायदे
– पेट और गर्दन के अंगों को आराम देता हैं
– शरीर के सामने वाले हिस्से, टखने, जांघां और कमर में खिंचाव पैदा करता हैं
– पेट, छाती, गर्दन एवं कूल्हों के लिए फायदेमंद है.
– पीठ की मांसपेशियों को मजबूती देता है.
– शरीर के पोस्चर में सुधार लाता है.
इन मरीज़ों को यह योग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए
– हाई या लो ब्लड प्रेशर
– माइग्रेन
– इन्सोमनियां
– पीठ में गंभीर दर्द या गर्दन में चोट
पश्चिमोत्तसान (बैठ कर आगे की ओर झुकना)
इस योग में व्यक्ति बैठ कर आगे की ओर झुकता है. इससे ब्लड प्रेशर कम करने, वज़न कम करने में मदद मिलती है. साथ ही चिंता, सिरदर्द और थकान में आराम मिलता है.
पश्चिमोत्तसान कैसे करेंः
1. तह किए कंबल पर बैठें, टांगें की ओर फैलाएं.
2. आप चाहे तो घुटनों के नीचे सपोर्ट के लिए कुछ आरामदायक चीज़ रख सकते हैं.
3. कल्पना कीजिए कि आप पैरों के तलुओं से दीवार पर दबाव बना रहे हैं, ताकि आपके पैरों की अंगुलियां पीछे की ओर खिंचें.
4. नितम्बों पर नीचे की ओर दबाव बनाएं, रीढ़ की हड्डी में खिंचाव बनाएं और हार्ट सेंटर को खोलें.
5. आगे की ओर मुड़ कर अपने कूल्हों पर झुक जाएं.
6. आपके हाथों को पैरो के नीचे की ओर ले जाएं, आरामदायक स्थिति पर आने पर रूक जाएं. इस दौरान आपका धड़ पैरों के समानांतर मुड़ा हो.
7. अपनी ठुड्डी को छाती के साथ चिपकाएं.
8. इस मुद्रा में 3 मिनट के लिए रूकें.
पश्चिमोत्तसान के फायदे
दिमाग को शांत करता है, तनाव और हल्के अवसाद में आराम देता है.
रीढ़, कंधे और नाड़ी में खिंचाव पैदा करता है.
लिवर, किडनी, ओवरीज़ और यूट्रस के लिए फायदेमंद है.
पाचन तंत्र में सुधार लाता है.
मेनोपॉज़ के लक्षणों और माहवारी के दर्द में आराम देता है.
सिरदर्द, चिंता और थकान को कम करता हैं
हाई ब्लड प्रेशर, बांझपन, इनसोमनिया (नींद की समस्या) और साइनुसाइटिस में फायदेमंद हैं
पारम्परिक ग्रंथों के मुताबिक पश्चिमोत्तासन से भूख बढ़ती है, मोटापा कम होता है और कई बीमारियां ठीक होती हैं.
इन मरीज़ों को यह योग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए
– अस्थमा
– डायरिया
– पीठ की चोटः इन लोगों को अनुभवी योग गुरू के मार्गदर्शन में ही यह व्यायाम करना चाहिए.
विपरितकरणी (टांगे दीवार पर ऊपर की ओर)
यह योग शरीर को आराम देता है. इससे तनाव का स्तर कम हो जाता है. यह लो ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर को नियन्त्रित करने में मददगार है. यह सिर दर्द में आराम देता है, शरीर में एनर्जी और सर्कुलेशन बढ़ाता है.
विपरितकरणी कैसे करें:
– एक कंबल या तौलिया बिछाएं, इस पर बैठ जाएं.
– आपका चेहरा दीवार के सामने की ओर हों.
– टांगों को ऊपर लेजाकर दीवार के समांतर टिकाएं, पीठ जमीन पर टिकी हो. आपका शरीर दीवार के साथ 90 डिग्री के कोण पर हो.
– नितंबों को जहां तक हो सके, दीवार के पास सटा कर रखें.
– गर्दन, ठुड्डी और गले को रिलेक्स करें.
– बाजुओं को फैलाएं, हथेलियां ऊपर की ओर हों.
– 5 से 15 मिनट तक इस मुद्रा में रहें.
– धीरे-धीरे खिसकाते हुए टांगों को नीचे की ओर ले आएं.
विपरितकरणी के फायदे
थकान, पैरों में ऐंठन (क्रैम्प्स) में आराम देता है.
पीठ, टांगों, धड़ के सामने वाले हिस्से और गर्दन के पिछले हिस्से में हल्का खिंचाव पैदा करता है.
पीठ के हल्के दर्द में आराम देता है.
दिमाग को शांत करता है और ब्लड प्रेशर कम करता है.
श्वासन (मृत शरीर जैसी मुद्रा)
यह योग ब्लड प्रेशर कम करने, शरीर को रिलेक्स करने और मंन को शांति देने में बेहद फायदेमंद है. इससे सिरदर्द, थकान और नींद की समस्याओं में आराम मिलता है. आमतौर पर इसे योग के बाद किया जाता है.
श्वासन कैसे करें:
– पीठ के बल लेट जाएं, अपने टांगों को थोड़ा खोल कर फैला लें.
– बाजुओं को धड़ के पास फैलाएं, हथेलियां ऊपर की ओर हों.
– धड़ सीधी रेखा में रहे. इस दौरान आपका शरीर का अंग्रेज़ी के अक्षर ‘वाय’ का आकार बनाए.
– शरीर से फर्श पर दबाव बनाएं. अपने शरीर को रिलेक्स करें, इस समय अपने मन में किसी तरह का तनाव न रखें.
– इसी मुद्रा में 10-20 मिनट तक रहें.
श्वासन के फायदे
दिमाग को शांत करता है तथा तनाव एवं अवसाद में आराम देता हैं
शरीर को रिलेक्स करता है.
सिरदर्द, थकान और नींद की समस्याओं में आराम देता है.
ब्लड प्रेशर कम करने में मदद करता है.
प्राणायाम और मनन
योग आसन के अलावा, प्राणायाम यानी सांस के व्यायाम भी क्रोनिक बीमारियों में बेहद फायदेमंद होते हैं.
1. भस्त्रिका प्राणायाम (अग्नि की सांस)
2. कपालभाति प्राणायाम (खोपड़ी में चमक लाने वाली सांस की तकनीक)
3. भ्रामरी प्राणायाम (मक्खी जैसी सांस)
4. नाड़ीशोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम)
5. पूर्ण योगिक श्वासन
हम रोज़ाना मनन की सलाह देते हैं. आपको आसन के बाद या किसी अन्य समय में प्राणायाम करना चाहिए. आप अपनी सुविधानुसार दिन का कोई भी समय चुन सकते हैं. शुरूआत में ही बहुत ज़्यादा व्यायाम न करें, इससे आपको थकान होगी और आपका उत्साह कम होगा. आप व्यायाम बीच में ही बंद कर देंगे.
ध्यान रहे : नियमित रूप से योग करने से आपके स्वास्थ्य में सुधार होता है और डायबिटीज़ यानि मधुमेह के प्रबन्धन में मदद मिलती है.