बेमेतरा। किसी को यूं ही पहचान नहीं मिल जाती है उसके लिए कुछ करना पड़ता है अपने जीवन के उसूल सहित समाज में अपने कर्म के द्वारा अपना नाम बनाना पड़ता है वह इस धरती पर रहे या ना रहे आम जनमानस के द्वारा हमेशा याद किया जाता है । आज हम उस ऐसे शख्स की बात कर रहे हैं। आपका जन्म शनिवार , 11 जनवरी 1941 को ग्राम मौहाभाठा ( साजा ) वर्तमान जिला बेमेतरा में हुआ। किन्तु दुर्भाग्यवश मात्र सवा साल के अबोधावस्था में ही पिता खेदू सिंह बनाफर (शिक्षक) के साये से वंचित होने के कारण जीवन संघर्षपूर्ण रहा । बाल विधवा माँ श्रीमती बेदूबाई के साथ नाना – नानी के घर ( ग्राम हथौद , जिला-बालोद ) पालन पोषण हुआ और वहीं कक्षा पहली से सातवीं तक शिक्षा ग्रहण किये । आठवीं कक्षा साजा स्कूल से तथा आगे की शिक्षा स्टेट हाईस्कूल राजनांदगाँव से प्राप्त किये । 1958 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही डौण्डीलोहारा विद्यालय में सहायक शिक्षक के रुप में शासकीय सेवा का श्रीगणेश कर धमधा , देवकर , परपोड़ी , चिल्फी , मोहगांव , बोरतरा , ओदरागहन ( पाटन ) आदि विद्यालयों में पदस्थ रहे । इस अवधि में बीए , हिन्दी व अर्थशास्त्र में एम.ए. तथा बी.एड. की उपाधि हासिल करने के साथ ही आपको गाँव मौहाभाठा के प्रथम स्नातक एवं स्नात्तकोत्तर होने का गौरव मिला । 1973 में उच्च श्रेणी शिक्षक के रुप में पदोन्नत होकर हाई स्कूल बेरला और आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय साजा में लगभग दो दशकों तक पदस्थ रहे । पुनः पदोन्नति में प्रधान अध्यापक होकर हाई स्कूल बोरतरा ( दूसरी बार ) आये । संस्था के प्रति आपकी निष्ठा , समर्पणभाव तथा कार्यप्रणाली पर अपने विश्वास का मुहर लगाते हुये शिक्षा व जिला प्रशासन के उच्चाधिकारियों द्वारा प्रभारी प्राचार्य , हाईस्कूल बोरतरा ,परियोजना संयोजक , राष्ट्रीय साक्षरता मिशन , विकासखण्ड-साजाती,परियोजना अधिकारी , औपचारिकेत्तर शिक्षा , विकासखण्ड-साजा बनाया गया। इसमें प्रथम दो पदों का कार्यालय हाई स्कूल बोरतरा एवं निम्न दो पदों का कार्यालय विकासखण्ड साजा जिनमे13 किमी का फासला था। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन भारत सरकार की महती एवं महत्वाकांक्षी योजना होने के कारण इसमें साजा विकासखण्ड के 186 गांवों का सतत् दौरा भ्रमण करना पड़ता था । उक्त चारों उत्तरदायित्वों का आपके द्वारा एक साथ बहुत ही कुशलतापूर्वक निर्वहन किया गया जिसके लिए आपको पुरस्कृत किया गया है । इस बीच एक और पद एडीआईएस ( सहायक जिला शाला निरीक्षक ) के अतिरिक्त प्रभार हेतु आदेश मिला जिसे कार्याधिक्य के कारण विनम्रता पूर्वक अस्वीकार करना पड़ा । शासकीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों के हित संरक्षण हेतु गठित तृतीय वर्ग अधिकारी – कर्मचारी संघ जिला दुर्ग में जिला उपाध्यक्ष के रुप में कई वर्षों तक आपकी सक्रिय एवं सार्थक सहभागिता रही है । युवावस्था में उपन्यास बहुत पढ़ते थे । आपके पास हिन्द पॉकेट बुक्स का सैकड़ों उपन्यासों का संग्रह था । रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित ‘विवेक – ज्योति के भी नियमित पाठक थे । साहित्य में अभिरुचि को देखकर बोरतरा के मकान मालिक श्री तिवारी द्वारा अवलोकनार्थ ‘अखण्ड – ज्योति’ दिया गया जिसे पूरा पढ़ कर तीसरे – चौथे दिन लौटा दिये । उसके पश्चात् अखण्ड ज्योति के पुराने अंकों को पढ़ने का सिलसिला चला और गायत्री परिवार के विचारों से बहुत प्रभावित हुये । इसी समय ( सम्भवतः 1969 में ) महासमुंद में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के पुरोहित्य में सम्पन्न 1008 कुण्डीय गायत्री – यज्ञ में दीक्षा लेकर सदैव के लिये गायत्री परिवार से जुड़ गये । 1970-71 में गायत्री तपोभूमि मथुरा में आयोजित विभिन्न शिविरों में आचार्य जी के पावन सान्निध्य में प्रशिक्षण और आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला । सत्तर के दशक में ग्राम मोहगांव में 9 कुण्डीय तथा ग्राम देवकर में सम्पन्न अभूतपूर्व 108 कुण्डीय विराट गायत्री – यज्ञ से धमधा , साजा और बेमेतरा क्षेत्र के लोगों में गायत्री – मंत्र की महत्ता और विचार – क्रांति का बीजारोपण हुआ । बाद में अंचल के अनेक गांवों के हजारों लोग गायत्री – यज्ञ और अखण्ड – ज्योति के माध्यम से आचार्य जी के विचारों से जुड़े । 1971 में आचार्य जी द्वारा ( मथुरा के स्थान पर ) शांतिकुञ्ज हरिद्वार को अपनी तपस्थली बनाये जाने के साथ ही तीन दशक तक प्रतिवर्ष 25 दिनों का दशहरा – दीपावली अवकाश , 7 दिनों का शीतकालीन अवकाश तथा 60 दिनों का ग्रीष्मकालीन अवकाश ( कई बार अवैतनिक अवकाश भी ) हरिद्वार में ही विभिन्न शिविरों में शामिल होने तथा केन्द्रीय प्रतिनिधि के रूप में विभिन्न राज्यों में गायत्री – यज्ञ व प्रवचन के माध्यम से आचार्य जी के विचारों को जन – जन तक पहुंचाने में नियोजित होता था । साथ ही , इस अवधि में जिन – जिन गांवों के विद्यालयों में पदस्थ रहे , वहाँ लोगों को संगठित कर अखण्ड – ज्योति का पाठक तैयार करने तथा गायत्री – यज्ञ के माध्यम से जन – चेतना जागृत करने का अभिनव कार्य भी निरन्तर जारी रहा । आपके जीवन में बोरतरा गांव का विशेष महत्व रहा क्योंकि युवावस्था में यहीं आप गायत्री परिवार से जुड़े और यहीं से अपनी शेष आयु गुरुसत्ता को समर्पित करते हुये निर्धारित सेवा अवधि से तीन वर्ष पूर्व ( मार्च 2001 ) प्रधान अध्यापक पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर शान्तिकुञ्ज हरिद्वार गये जहाँ लगभग 16 वर्षों तक पूर्णकालिक समयदानी के रूप में रहे । इस अवधि में नागपुर सन्त जगनाडे चौक , शहादरा दिल्ली , टाटानगर, और बिलासपुर आदि शहरों में स्थित गायत्री शक्तिपीठों में एवं भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों विशेषतः पूर्वोत्तर क्षेत्र में शान्तिकुञ्ज के प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में युग निर्माण योजना मिशन के विस्तार हेतु अपनी सेवायें दी । लगभग 9-10 वर्ष की बाल्य अवस्था से ही आप नित्य एक घंटा कसरत और योगाभ्यास करते थे । आपकी हस्तलिपि बहुत सुन्दर थी । कोरे कागज में भी पंक्तियाँ सीधे और समान दूरी पर होती थी । आप गायत्री परिवार के साथ – साथ अन्य समसामयिक विषयों पर दो घंटे धाराप्रवाह बोलने की अद्भुत क्षमता रखते थे । हिन्दी, अंग्रेजी एवं संस्कृत तीनो भाषा मे आपकी समान पकड़ थी। 2016 में अस्वस्थ होने के कारण हरिद्वार नहीं जा सकने से अपने जन्मस्थली गांव में ही निवासरत रहे । विगत 11 जनवरी 2021 को अपने जन्म – दिवस की 80 वीं वर्षगाँठ हर्सोल्लास पूर्वक मनाने के तीन माह पश्चात् मंगलवार , 13 अप्रैल 2021 को आपका स्वर्गारोहण हुआ ।
विचार क्रांति की अलख जगाते,,,, आम जनमानस की जीवन भर की सेवा,,,ठाकुर विद्यानन्द बनाफर ने
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