दुर्ग। 27 अगस्त : धान की फसल जिले की मुख्य खरीफ फसल है। वर्तमान में कृषि क्षेत्र में आयी गति को दृष्टिगत रखते हुए कीट प्रबंधन इसका मुख्य हिस्सा है। धान की फसल को बचाने एवं कीट प्रबंधन के संबंध में कृषि विभाग द्वारा रोग प्रबंधन और निदान के उपाय जारी किये गए है। धान की फसल में कीट और रोग प्रबंधन एक आवश्यक कार्य होता है किसानों को अपने द्वारा लगाई गई फसल का लगातार निरीक्षण करते रहना चाहिए। साथ ही कीट एवं रोग प्रबंधन के उपाय समय समय पर करते रहना चाहिए। किसान समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन कर पौधों की संरक्षण कर अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते है। इसके लिए नियमित रूप से फसल का अवलोकन करते रहना चाहिए। जिससे की कीट एवं रोग का प्रारंभिक अवस्था में प्रबंधन व नियंत्रण किया जा सके। भूरा माहो एवं बंकी के नियंत्रण हेतु 24 घंटे के लिए पानी की निकासी करने से कीट नियंत्रण में सहायता मिलती है। खेत के बीच में अलग-अलग जगह ‘टी‘ आकर की खूटियां लगानी चाहिए, जिस पर पक्षी बैठकर हानिकारक कीटों को खा सके। धान की फसल पर रस्सी को दोनों किनारों से पकड़ कर घूमाना चाहिए। कीटों की निगरानी व नियंत्रण हेतु प्रकाश प्रपंच, फेरोमान प्रपंच तथा पीले चिपचिपे प्रपंच करना चाहिए। अनुसंशित मात्रा में रसायनिक खाद उपयोग करना चाहिए। अत्याधिक व अनावश्यक नत्रजन के उपयोग से रसचूचक कीट के आक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। फसलों पर पाए जाने वाले लक्षण के आधार पर कीट एवं रोग प्रबंधन करनी चाहिए।
कीट /रोग, लक्षण के आधार पर रसायनिक दवा की मात्रा
कीट– तना छेदक (5 प्रतिशत प्रभावित कंसा)
लक्षण – इस कीट की सुंडी अंडों से निकालकर मध्य कलकाओं की पत्ती में छेद कर अंदर घुस जाती है तथा तने को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे बालियां नहीं निकलती है। बाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूखकर सफेद हो जाती हैं तथा दाने नहीं बनते हैं।
प्रति एकड़ दवा की मात्रा – करटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी, 8 किलोग्राम, करटॉप हाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी, 200 ग्राम, ट्राईजोफास 25, 400-500 मिली, फ्लूबेनडियामाइड 30-35, एस.सी 70 ग्राम का उपयोग करना चाहिए।
कीट / रोग का नाम – पत्ती लपेटक (चितरी) (2 प्रभावित पत्ती हील)
लक्षण – इस कीट की सुंडियां पहले मुलायम पत्तियों को खाती है तथा अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बनाकर पत्तियों को किनारे से मोड़ देती है यह प्रकोप को सितंबर माह में अधिक देखा जा सकता है।
प्रति एकड़ रासनायिक दवा की मात्रा – फोसालोंन, ट्राईजोफास, लेम्ब्डा साईंलोथ्रिरीन 20 ई.सी, 400 मिली करटॉप हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एसपी, 200 ग्राम ,फ्लूबेनडियामाईड 32-35 प्रतिशत एससी 70 ग्राम का उपयोग करना चाहिए।
कीट /रोग का नाम – भूरा माहो कीट (5-10 कीट प्रति पौधा)
लक्षण – इस कीट के प्रौढ भूरे रंग के होते हैं ये पत्तियां एवं कल्लों के मध्य रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। अधिक प्रकोप होने पर फसल में अलग-अलग पैच में पौधे काले होकर सूखने लगते हैं जिसे हापर बर्न भी कहते हैं।
प्रति एकड़ रासनायिक दवा की मात्रा – इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल, 80-100 मिली बिफेनथ्रिन, 10 प्रतिशत ई.सी. 100 मिली फेनोब्यूकार्न, 50 ई.सी. 400-500 मिली ब्यूप्रोफेजिन 25 प्रतिशत डब्लुपी 120-200 मिली का उपयोग करना चाहिए।
कीट /रोग का नाम – ब्लास्ट रोग (5-10 प्रतिशत ग्रसित पत्ती)
लक्षण – पत्तियों पर आंख के आकार के जंग युक्त भुरे धब्बे इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
प्रति एकड़ रासनायिक दवा की मात्रा – ट्राईसाईक्लोजोल 75 प्रतिशत डब्लूपी 120 ग्राम कीटाजीन 250 मिली हेकजोकोनजोल 5 प्रतिशत ई.सी 500 ग्राम का उपयोग करना चाहिए।
कीट /रोग का नाम – शीथ ब्लास्ट 10 प्रतिशत ग्रसित कंसा
लक्षण – पौधे के आवरण पर अंडाकार स्लेट धब्बा पैदा होता है एवं भूरे रंग के रोगी स्थान बनते हैं। बाद में में ये तनों को चारों और घेर लेते हैं।
प्रति एकड़ रासनायिक दवा की मात्रा – कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्लू पी 500 ग्राम, हेक्जकेनाजोल 5 प्रतिशत ईसी 1 लीटर 500 मिली का उपयोग करना चाहिए।
कीट / रोग का नाम – जीवाणु जनित पर्ण झुलसा रोग
लक्षण – पत्तियों पर पीली या पुआल के रंग का लहरदार धारियाँ बनती है तथा सिरे से शरू होकर नीचे की ओर बढ़ती है और पत्तियां सूख जाती है।
प्रति एकड़ रासनायिक दवा की मात्रा -स्ट्रेटोंमाईसीन सल्फेट 90 प्रतिशत और टेट्रासाईक्लीन हाइड्रोक्लोरोड 10 प्रतिशत 15 ग्राम का उपयोग करना चाहिए।