भिलाई। 10 जनवरी : श्री राधाकृष्ण मंदिर प्रांगण, नेहरू नगर में 11 जनवरी तक शाम 4 बजे से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग में ऋषिकेश, उत्तराखंड से पधारे प्रवचनकर्ता स्वामी विजयानन्द गिरी ने कहा कि कोई भी सत्संग, धन या संगठन से नहीं बल्कि ईश्वर की महती कृपा से ही संभव है। सत्संग का लाभ मिल तो समझ लेना कि भगवान की बहुत बड़ी कृपा हम पर है। सबका कल्याण करना वाला, हमेशा साथ रहने वाला केवल ईश्वर है। धन, धान्य जैसे जिन सांसरिक वस्तुओं से हम घिरे हैं वे सब स्वप्न जैसा हो जाएगा। मृत्यु के बाद हमारे पास क्या था, किसी को याद नहीं रहने वाला, सब यही छोड़कर जाना पड़ेगा, कुछ भी साथ नहीं जाने वाला। घर से बाहर अधिक समय तक विचरण करने के पश्चात् घर वापस आने पर अत्याधिक शांति का अनुभव होता है। तो सोचिए जब मानव अपने असली घर अर्थात् परमात्मा के चरणो में चले जाए तो कितनी शांति का अनुभव होगा।
संसार में किसी से सुख की आशा न करें। यदि भाग्य में सुख होगा तो मिलना तय है। आशा पूरी नहीं होने पर वह दुख का कारण बनता है। आशा करनी है तो केवल परमात्मा से करिए। भगवान को भगवान मानने से भगवान से नहीं भगवता से प्रेम होगा, जैसे किसी को धनवान मानकर मित्रता करने से उस व्यक्ति से नही बल्कि उसके धनुता से मित्रता होगी। ईश्वर को जो मानेंगे उसके लिए वह बही बन जाएगा, पिता मानो तो पिता और माता मानो तो माता। जो संबंध आपको संसार में प्रिय लगता है वही संबंध परमात्मा से जोड़ ले, जीवन निहाल हो जाएगा।
जो कभी भी अलग होगा वो अभी भी अलग, जो कभी भी मिलेगा वो अभी भी मिला हुआ है। यही सत्य है, इसे स्वीकार कीजिए। किया हुआ नहीं, स्वीकार्य किया हुआ सदैव रहता है। एक योग और दूसरा सांसरिक संयोग दोनों ही विभाग है। जिनके साथ योग होता है उसका वियोग कभी नहीं होता और परमात्मा के साथ हमारा योग है। जिनके साथ हम सदा नहीं रह सके वह संयोग है। धन, धान्य, जमीन, जायदाद, नाते, रिश्ते सभी संयोग है और संयोग का वियोग सुनिश्चित है। मानव का सांसरिक भविष्य सुनिश्चित नहीं है लेकिन हर मानव का मृत्यु निश्चित है। हम मानव सुख कैसे मिले के चिंतन में लगे हुए है। अगर मानव परहित के चिंतन में लग जाए तो सुख-शांति मिलना शुरू हो जाएगा। जिस प्रकार सरोवर के पानी को साथ रखने से डूबना तय है और पानी को हाथ-पैर से धकेलने पर ही सरोवर से निकल जा सकता है वैसे ही इस सांसरिक सुखों को धकलेने से ही शांति मिल सकती है। किसी जादू-टोने, राशि पत्थर को धारण करने से नहीं परमात्मा के चरणों में जाकर भगवान के नाम जाप से मानव जीवन का निहाल होना तय है। जिस घर से नित्य भगवान का जाप किया जाता है वहीं भगवान का वास होता है। दैनिक सांसरिक कार्यो के बाद रात्रि को सोने के बाद शांति की प्राप्ति होती है, लेकिन ये सुख तमासी होती है। भगवान के चरणों में अर्पित होकर धार्मिक ग्रंथों के पाठ से सात्विक सुख की प्राप्ति होगी। इस सात्विक सुख की अनुभूति तमासी सुख के त्याग के बाद ही संभव है।
समापन श्रीकृष्ण की आरती के साथ हुआ। तत्पश्चात् प्रसाद वितरण किया गया। आयोजक समिति के प्रमुख बृजमोहन उपाध्याय ने कथा स्थल पर गीता प्रेस के स्टाॅल में उपलब्ध धार्मिक साहित्यों के लाभ लेने की अपील की है।