भिलाई। 05 जनवरी : श्रीराम, जय राम, जय जय राम के जाप से श्री राधाकृष्ण मंदिर प्रांगण, नेहरू नगर में 11 जनवरी तक शाम 4 बजे से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग के तीसरे दिन का शुभारंभ हुआ।
ऋषिकेश, उत्तराखंड से पधारे प्रवचनकर्ता स्वामी विजयानन्द गिरी ने कहा कि संसार रंगमंच और हम सबको अभिनय करना है। यह अभिनय सच्चा नहीं होता। जब कोई कलाकार अच्छा अभिनय करता है तो उसे शाबासी मिलती है। ठीक उसी प्रकार इस संसाररूपी रंगमंच मेे भगवान से मिले अपने-अपने पात्र का अभिनय अच्छे से निभाएं, चाहे वाह गृहस्थ का हो या साधु का, अच्छे से निभाएं। अच्छा कर दिया तो भगवान से हमें वैसे ही सबासी मिलेगी। अपने अभिनय को सच्चा मानना मान लेना और अभिनय को सच्चे से नहीं निभाना दोनों की गलत है।
संसार में सभी सेवा चाहते हैं। सेवा से सभी प्रसन्न होते हैं, इसलिए सेवा कीजिए। भगवान ने मनुष्य को सेवा का दायित्व दिया है। संसार में केवल मानव ही ऐसा प्राणी है जो सभी की सेवा कर सकता है। सेवा से ईश्वर मिलेंगे। संसार सेवा का पात्र है विश्वास का नहीं। विश्वास का पात्र केवल ईश्वर है। दुनिया का सबसे बड़ा आस्तिक प्रहलाद थे, जिन्होंने पत्थर से ईश्वर को बाहर निकाल दिया और सबसे बड़ा नास्तिक हिरणकश्यप थे जो ईश्वर को पूरी दुनिया में ढूंढते रह गए, जबकि दोनों एक ही घर में रहते थे। प्रहलाद ने गर्भ में ही स्वीकार कर लिया था कि वे ईश्वर के अंश है और इसी विश्वास से ही प्रहलाद को ईश्वर का मिलना संभव हो पाया।
जब तक किसी वस्तु की महिमा को नही जानेंगे तक तब उससे आकर्षण नहीं हो सकता, इसलिए भगवान की महिमा को सत्संग से जाने, आकर्षण हो जाएगा। कामनावशीभूत होकर मनुष्य पाप करता है, ईश्वर इतना निर्दयी नहीं है कि वो मनुष्य से पाप कराए। करना अर्थात् कार्य मनुष्य के हाथ में और होना ईश्वर के हाथ में, इसलिए करने में सावधान और होने में प्रसन्न रहे।
उन्होंने कहा कि परमात्मा कण-कण में है, सभी के हृदय में है। तीर्थ करने से, जगह-जगह घूमने से भगवान नहीं मिलेंगंे। भगवान जब भी मिलेंगे खुद में ही मिलेंगे। धन मिलने से अधिक प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है, वह्म है। धन का मिलना कोई मिलना नहीं है, भगवान का मिलना ही वास्तविक मिलना है। क्योंकि धन तो चला जाएगा लेकिन ईश्वर नही। भगवान की प्राप्ति के लिए कोई अनाधिकारी नहीं है। भगवान से मिलने की व्याकुलता, लालसा और उसे पूरा करने की धुन से ही भगवान का इसी जन्म में मिलना तय है। जिस प्रकार मां से मिलने के लिए व्याकुल छोटा बच्चा रो-रोकर मां को आने में विवश कर देता है, ठीक उसी छोटे बच्चे की व्याकुलता की तरह के व्याकुलता से भगवान को आना ही पड़ेगा। भगवान कदम-कदम में एक मां की तरह रक्षा करते हैं, केवल जरूरत है मन से उन्हें याद करने की। भगवान के बिना जीव की सत्ता नहीं है। भगवान को अकेले मन नहीं लगा तो सृष्टि की रचना की और खेल करने के लिए जीव को अपने जैसे स्वतंत्र बनाया। किन्तु जीव ने इस स्वतंत्रता का दुरूपयोग किया और जो भगवान ने वस्तु दिया उनका स्वयं मालिक बनकर असल मालिका को भूल गया। अपने असली मालिक को नहीं भूलने के लिए मालिक बनकर न रहे। संसार में दुर्गति से बचने के लिए प्रतिदिन गीता जी का पाठ और थोड़े मात्रा में ही सही गंगाजल का सेवन अवश्य करें। गंगाजल के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है। ईश्वर का मनुष्य का अनादिकाल से रिश्ता है। ईश्वर परदेश में रह रहे संतान की तरह मनुष्य से मिलने के लिए इंतजार में है। हम मनुष्य ही ईश्वर से विमुख है। मनुष्य भगवान के सम्मुख हो जाए तो वे नर से नारायण हो जाए।