दुर्ग। 10 मार्च 2022 (सीजी संदेश) : जलसंकट वाले क्षेत्र में तालाबों के माध्यम से जल संरक्षण किस तरह किया जाता है। इसकी ऐतिहासिक विरासत धमधा शहर के रूप में छत्तीसगढ़ में रही है। छह कोरी छह आगर वाले इस नगर में तालाबों के किनारे अतिक्रमण हो गये थे। कुछ तालाब अस्तित्व में ही नहीं रह गये। अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत की संरक्षण के लिए सजग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार सरोवरों के संरक्षण की दिशा में काम कर रही है। इसी कड़ी में कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने तालाबों की नगरी धमधा को इसके मूल रूप में लाने की दिशा में कार्य शुरू कर दिया है। कल उन्होंने महामाया मंदिर के चारों ओर स्थित बूढ़ा तालाब का निरीक्षण किया। यह तालाब राजा किले की सुरक्षा के लिये खोदा गया था और यहीं से तालाबों की श्रृंखला शुरू होती है। उन्होंने एसडीएम बृजेश क्षत्रिय को तालाबों को मूल स्वरूप में लाने अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिये। एसडीएम बृजेश क्षत्रिय ने बताया कि पहले चरण में 12 तालाबों को चिन्हांकित किया गया है। यहां सीमांकन कर अतिक्रमणकारियों को विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। श्री क्षत्रिय ने बताया कि धमधा के नागरिक बहुत खुश हैं कि उनकी नगरी को अपनी पुरानी पहचान मिल सकेगी।
विलक्षण है जल संरक्षण का धमधा मॉडल- धमधा के नागरिक और धर्मधाम गौरव गाथा समिति के पदाधिकारी वीरेंद्र देवांगन ने बताया कि धमधा में 126 सरोवरों की श्रृंखला है। यह सरोवर अपने भरने के लिए केवल बारिश के पानी पर निर्भर नहीं करते। इन्हें भरने के लिए नजदीकी गाँवों के खेतों से लंबी नहर श्रृंखला बनाई गई थी। खेतों का अतिरिक्त पानी इनमें आता था और यह सरोवर साल भर भरे रहते थे। इस नहर श्रृंखला का लाभ यह भी था कि इसके माध्यम से आने वाले पानी से भूमिगत जल भी रिचार्ज होता था। नहरों की श्रृंखला लंबी है और खुशी की बात यह है कि इनमें सुधार कार्य नई सरकार ने आरंभ कर दिया है। जलसंसाधन मंत्री रविंद्र चौबे के निर्देश पर नहर लाइनिंग में सुधार किया गया, इससे धमधा के कुछ तालाबों में पानी पहुंचाने में मदद मिली।
हर वर्ग ने खोदे तालाब, विलक्षण सामूहिक प्रयासों से बन पाई बड़ी श्रृंखला- धमधा का पहला तालाब चौखड़िया कुंड ग्यारहवीं शताब्दी के पहले किसी अज्ञात राजवंश ने बनवाया था। राजवंश समाप्त होने के बाद यह स्थान वीरान हो गया। इसके बाद गोंड राजाओं ने यहां मंदिर की मरम्मत की और किला बनवाया और उसकी सुरक्षा के लिए तालाब बनवाये। फिर हर जाति-वर्ग के नागरिकों के धार्मिक मान्यता, पेयजल, निस्तारी और सिंचाई सुविधाओं के लिए तालाब बनवाये। रोचक बात यह है कि यहां विभिन्न जातियों और वर्गों के लोगों ने सार्वजनिक तालाब बनवाये। उदाहरण के लिए पान की खेती करने वालों ने 16 बावली खुदवाये और यहीं पास में बरेज बाड़ी लगवाई। हर तालाब का अपना और विलक्षण इतिहास है।
वैज्ञानिक सोच का यह नमूना- श्री देवांगन ने बताया कि उस जमाने में लोगों के इंजीनियरिंग प्रतिभा का नमूना इन तालाबों के निर्माण में दिखता है। तालाबों के कैचमेंट एरिया की सुंदर व्यवस्था की गई। मुख्य तालाबों में पानी छोटे तालाबों के माध्यम से जिन्हें पैठू कहा जाता है भेजा जाता था। इसका मकसद होता था खेतों के माध्यम से आये सिल्ट (मिट्टी) को मुख्य सरोवर में जाने से रोकना और तालाब में साफ पानी भेजना। उन्होंने बताया कि तालाबों के बिल्कुल बगल से आम, इमली, छिंद के बगीचे लगाये गये थे। पर्यावरणविद मानते हैं कि इनकी जड़ों से जल शुद्ध होता है। उस जमाने में आधुनिक उपकरणों के बगैर लोगों ने इस तरह की प्रामाणिक रिसर्च की थी जो अद्भुत है।
तालाबों को बचाने की अनोखी परंपरा- पहले जब तालाब खोदे जाते थे तो बीचोंबीच स्तंभ गाड़ दिया जाता था। स्तंभ लगाने से जलस्तर का पता चलता था। कई बार इसमें तालाब खुदवाने का विवरण भी लिख दिया जाता था जैसे किरारी (बिलासपुर) के ऐतिहासिक तालाब की खुदाई में मिले स्तंभ से प्राप्त हुआ था और छत्तीसगढ़ के इतिहास को सातवाहन वंश तक जोड़ पाने की कड़ी प्राप्त हुई थी। तालाबों में जलभराव के समय भारतवर्ष की सभी नदियों का आह्वान किया जाता था और तालाबों का आपस में विवाह भी कराया जाता था। लोक विश्वास था कि तालाब खुदवाने से पुण्यवृद्धि होती है और इन्हें नष्ट करने संचित पुण्यों का भी नाश हो जाता है।