भिलाई। जमीन मामले में व्यावसायी प्रदीप खंडेलवाल व उनके परिजनों का बयान सामने आया है। उन्होंने पक्ष रखते हुए कहा है कि, न मैंने कोई जमीन बेची है और न ही कोई धोखाधड़ी हुई है। हमारी जमीन हमारे पास ही है। दुर्ग कोतवाली में जो मुकदमा दर्ज हुआ है, उसे हम कोर्ट में चैलेंज करेंगे। हमारे ऊपर जो धारा लगाई गई है, वो गलत है। इस मामले में कुछ लोग राजनीति और द्वेषपूर्ण कृत्य किया जा रहा है। प्रदीप खंडेलवाल व उनके परिजनों ने कहा कि, सुपेला स्थित जिस जमीन की बात कही जा रही है, उसका रजिस्ट्री हमारे परिवार के नाम पर है। जो हमें निगम ने 30 साल की लीज पर दी है। परिवार की सहमति पर पॉवर ऑफ अटॉर्नी लेकर मैंने सुपेला निवासी शरद मिश्रा के साथ जमीन बेचने के लिए सौदा किया था। मगर बाद में परिवार के सदस्यों के साथ समझौता करके उस सौदे को ही हमने निरस्त कर दिया। इसलिए सुपेला स्थित कोई प्लॉट शरद मिश्रा या किसी अन्य को हमने बेचा है और न ही कोई सौदा आगे बढ़ाया है। दुर्ग कोतवाली थाने में दर्ज मामले के विरूद्ध हम कोर्ट जा रहे हैं। जहां हम पूरी बात रखेंगे। कुछ लोग ये प्रचारित कर रहे हैं कि सरकारी जमीन को हमने बेच दिया। जो सरासर गलत है। निगम ने 30 साल के लिए जमीन हमें लीज पर दी है। जिसकी रजिस्ट्री भी हुई है। सारे दस्तावेज हमारे पास है। किसी प्रकार की कोई गलत कार्रवाई भी नहीं हुई है। बता दें कि कोर्ट के आदेश के बाद दुर्ग पुलिस ने प्रदीप खंडेलवाल, पिता हजारीलाल खंडेलवाल, शरद कुमार मिश्रा पिता नागेन्द्र मिश्रा, अशरफ तवर, नागेंद्र मिश्रा के खिलाफ धारा 420,467,468,471,120 बी के तहत जुर्म पंजीबद्ध किया है। परिवाद सुनील कुमार लोढ़ा ने दुर्ग न्यायालय में लगाया था। प्रदीप खंडेलवाल ने सुपेला मार्केट चिंगरी पारा की जमीन भूखंड क्रमांक 13,14,16,17 ब्लॉक 45 को बेचने का सौदा किया था। यह सौदा 26 जून 2020 को शरद मिश्रा के साथ हुआ था। मगर परिजनों ने बाद इन भूखंडों को नहीं बेचने का फैसला किया। इसके बाद 28 दिसंबर 2020 को सौदा निरस्तीकरण किया गया। जिसकी सूचना आम सूचना के माध्यम से सभी को दी गई। इसलिए जमीन बेचने और खरीदने का सवाल ही नहीं उठता।
इस मामले में पुलिस ने शरद के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। जबकि हैरानी की बात तो ये है कि शरद ने प्रदीप खंडेलवाल से कोई जमीन खरीदी ही नहीं है। क्योंकि जो सौदा हुआ था वो 28 दिसंबर 2020 को निरस्त हो गया था। ऐसे में कोई भूखंड खरीदने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए मुकदमे को चैलेंज किया जाएगा। सभी भूखंड लीज पर, सरकार नहीं: मामले में एफआईआर कराने वाले ने कहा है कि ये सभी भूखंड सरकारी यानि कि निगम के हैं। जबकि इन भूखंडों की रजिस्ट्री खंडेलवाल परिवार ने सालों पहले करा ली थी। निगम ने 30 साल के लिए ये जमीन दी है। 2022 में लीज नवीनीकरण होना है। ऐसे में जमीन को सरकारी कहना भी उचित नहीं है। इसलिए किसी सरकारी जमीन को बेचने जैसे शब्दों का उपयोग करना भी गलत है। बेवजह के आरोप खंडेलवाल परिवार पर लगाए गए हैं, जो पूरी तरह अनुचित नहीं है। प्रदीप खंडेलवाल और शरद मिश्रा के बीच में जमीन खरीदी-बिक्री के लिए सौदा हुआ था। इसमें नागेंद्र मिश्रा का कोई कनेक्शन ही नहीं। बावजूद एफआईआर में नागेंद्र मिश्रा का नाम जुड़वाया गया है। क्योंकि नागेंद्र मिश्रा ने न तो कोई सौदा किया है और न ही गवाही में उनका नाम है। बावजूद उनके नाम को घसीटा गया है। इससे यह साबित होता है कि यह मामला द्वेषपूर्ण है। एफआईआर तक में स्टांप वेंडर का नाम, जबकि उनके यहां सिर्फ इकरानामा टाइप हुआ: इस मामले में दुर्ग निवासी स्टांप वेंडर नितिन अग्रवाल तक का नाम का जिक्र है। जबकि उनके यहां सिर्फ एग्रीमेंट टाइप हुआ था। जो बाद में निरस्त भी हो गया। हालांकि दुर्ग कोर्ट ने नितिन अग्रवाल को आरोपी भी नहीं माना है। बावजूद दुर्ग कोतवाली ने भूलवश उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया। यह भी बताया जा रहा है कि नितिन के मामले में दुर्ग पुलिस ने माफीनामा दर्ज कराया है। चूंकि, कोर्ट ने नितिन को आरोपी नहीं माना है।
पूरे प्रकरण में न निगम को आपत्ति और न ही परिजनों को: इस मामले में यह भी सवाल उठ रहा है कि इस पूरे प्रकरण में न तो निगम को आपत्ति है और न ही खंडेलवाल परिवार के किसी अन्य सदस्य को। क्योंकि न तो प्रदीप खंडेलवाल ने कोई बेची है और न ही शरद मिश्रा ने कोई जमीन खरीदी। जबरदस्ती इस मामले को विवादित बनाने के लिए द्वेशपूर्ण कोर्ट में गया। जहां एफआईआर के निर्देश दिए। खंडेलवाल परिवार कोर्ट जा रहा है।
जमीन मामले में खंडेलवाल परिवार का पक्ष आया सामने, कहा- न हमने जमीन बेची और न ही कोई धोखाधड़ी हुई, निरस्त हो हो चुका है सौदा, ,,,,अब कोर्ट में करेंगे मुकदमा को चैलेंज
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