भिलाई तीन। डॉ खूबचंद बघेल शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ‘राष्ट्रीय संविधान दिवस समारोह’ के तहत संविधान की प्रस्तावना का वाचन, संविधान आधारित प्रश्नमंच एवं ‘भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि’ पर व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.के.के.अग्रवाल एवं अध्यक्ष महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.अमृता कस्तूरे थे।
इतिहास एवं राजनीति विज्ञान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रो.अग्रवाल एवं प्राचार्य डॉ. अमृता कस्तूरे द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। दीप प्रज्वलन पश्चात संविधान का शपथ छात्र-छात्राओं एवं उपस्थित प्राध्यापकगणों को प्राचार्य द्वारा दिलाया गया। मुख्य अतिथि का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ कस्तूरे द्वारा किया गया एवं प्राचार्य का स्वागत डॉ. नीलम शर्मा सहा.प्राध्यापक(गणित) द्वारा किया गया। डॉ. कस्तूरे ने छात्रों को संविधान के मूल्यों को जानने अपनाने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि ‘हम केवल मौलिक अधिकारों की बात करते हैं किंतु कर्तव्य के पालन तो दूर, उन्हें जानना भी नहीं चाहते। आज के इस व्याख्यान कार्यक्रम से संविधान के निर्माण के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग, बलिदान, भावनाओं, मूल्यों को जान सकेंगे।’ डॉ.कस्तूरे ने बताया कि ‘हमारे मुख्य अतिथि प्रो.के.के.अग्रवाल अपने आप में इतिहास के चलते फिरते यइनसाइक्लोपीडिया हैं और इनसे आज हम जितना ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं वह कम ही होगा।’
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.के.के.अग्रवाल ने बताया कि “4000 वर्ष पुराने वेदों के मिताक्षरा में पाए जाने वाले शासन के तत्वों को हमने, हमारे आधुनिक संविधान में स्थान दिया है और श्रेय देते हैं ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस के संविधान को। गणतंत्रात्मक व्यवस्था को अमरीकी एवं फ्रांसीसियों की देन मानते हैं, जबकि बुद्ध के समय में 11गणतंत्रात्मक राज्य थे। बनारस के राजा को भी बुद्ध के संघ में शामिल होने के लिए पहले गणतंत्रात्मक तरीके से नए राजा का चुनाव करना पड़ा था। प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र को हम ब्रिटेन की देन मानते हैं जबकि प्राचीन भारत के अनेक सभागारो का वर्णन और उनके अवशेष हमें प्राप्त होते हैं, जहां 7000गण अर्थात जनता द्वारा चुने हुए राजा तब बैठकर राज्य चलाने के संबंध में निर्णय लेते थे। ये सभी व्यवस्थाएं विदेशी आक्रमणों के कारण धीरे-धीरे नष्ट होने लगी और त16वीं सदी से ब्रिटिश शासन का निंव पड़ना प्रारंभ हो गया। अंग्रेज हम पर शासन इसलिए कर पाए क्योंकि हमारी प्राचीन व्यवस्थाएं नष्ट हो गई थी। लोकतंत्र की बात ब्रिटेन के लोग क्या करेंगे, जब प्राचीन छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मुड़िया दरबार चला रहा है।”
व्याख्यान कार्यक्रम के साथ ही राजनीति विज्ञान छात्र परिषद एवं इतिहास विभाग छात्र परिषद के घोषणा करते हुए प्राचार्य डॉ.अमृता कस्तूरे ने पदाधिकारियों को बधाई के बधाई दिया। साथ ही उन्हें अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन कर महाविद्यालय के उत्तरोत्तर विकास में विकास हेतु कार्य करने के लिये प्रेरित किया। संविधान दिवस के अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार
उल्लेखित संवैधानक प्रश्नों पर आधारित प्रश्नमंच के विजेताओं की घोषणा भी प्राचार्य द्वारा किया गया। प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्रिया वर्मा एवं द्वितीय स्थान मनीष कुमार ने प्राप्त किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.अग्रवाल को प्राचार्य डॉ.कस्तूरे, डॉ.एन.गुहा राय, डॉ,एम.दांडेकर एवं डॉ. नीलम शर्मा द्वारा शाल एवं श्रीफल भेंट कर उनके स्वास्थ अच्छे स्वास्थ्य की कामना की। व्याख्यान कार्यक्रम में महा.के सहा.प्राध्यापक डॉ.उमा ऑडील,डॉ.नीलम गुप्ता, श्रीमती रेणु वर्मा, डॉ. ममता सराफ, अतिथि प्राध्यापकगण प्रतिभा,पूजा यादव, मौसमी, गुरजीत कौर एवं अन्य कर्मचारीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम का लाभ महा.के सभी अध्ययन विभागों के स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं एवं एनसीसी कैडेट्स को प्राप्त हुआ। प्रश्न मंच का संचालन डॉ चूड़ामणि वर्मा एवं आभार प्रदर्शन कामून वर्मा द्वारा किया गया।
गणतंत्र एवं लोकतंत्र- विदेशी नहीं प्राचीन भारतीय धरोहर : प्रो. अग्रवाल ,,,, दूसरों की बताना छोड़ अध्ययन करें
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