रायपुर 27 अगस्त(सीजी संदेश)।छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला पोला त्यौहार किसानों से संबंधित है, लेकिन छत्तीसगढ़ का हर वर्ग इस पर्व को हर्षों उल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं। प्रकृति व कृषि संपदा राज्य होने के कारण छत्तीसगढ़ में अधिकांशतः त्यौहार इन्ही पर आधारित होते हैं। भादो अमावस्या को पड़ने वाले पोला त्यौहार छत्तीसगढ़ के ज़्यादातर राज्यों में मनाया जाता है यही कारण है कि छत्तीसगढ़ी भाषा में पोला को पोरा तिहार भी कहते हैं।यह त्यौहार ग्रामीण अंचलों में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है, साथ ही अन्य वर्ग के लोग भी इस त्यौहार का हिस्सा बनते हैं। पोला त्यौहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य किसानों के अन्नगार में अन्न के भंडार, भरने वाले पशुधन को धन्यवाद देना है।इसे छत्तीसगढ़ी में पोटराना (पोर फूटना) कहा जाता है। एक तरह से यह गर्भाधान की स्थिति है। इसलिए पोरा के पूर्वरात्रि ही गर्भही पूजा की जाती है।यह पूजा स्थानीय देवी-देवताओं को समर्पित होता है, जिसमें अच्छी फसल की कामना और गांव को अनिष्ट से बचाने की भावना मुख्य होती है। पोरा के दिन खेत से संबंधित कोई काम नहीं होता है, बल्कि स्थानीय देवी-देवता की पूजा कर घरेलू पशुओं को ‘कांदी’ अर्थात घास खिलाकर त्यौहार की शुरुआत की जाती है। मध्य छत्तीसगढ़ में गेड़ी का विसर्जन इसी दिन होता है।फिर शुरू होता है उत्सव का आनंद। कुम्हार इस मौके पर मिट्टी के रंग बिरंगे नांदिया-बइला और गृहस्थी के उपकरणों दिया, चुकी, जांता, चूल्हा, कड़ाही, चम्मच आदि बर्तनों को बनाकर बाज़ारों में बेचते हैं।हफ्ते भर पहले से यह खिलौनें बाजार में सज कर बिकने आ जाते हैं और पोरा का माहौल बनने लगता है। कृषि और गृहस्थी का परंपरागत संस्कार, इन खिलौनों के माध्यम से बच्चों को दिया जाता है। लड़के मिट्टी के ‘नांदिया बइला’ (बैल) तीरते हैं और लड़कियां ‘दीया-चुकी’ से खेलती हैं। घरों में दादाजी नांदिया बइला का चक्का फिट करने, बांस की काढ़ी चिक्कन करते दिखते हैं। रसोई घर में इस त्यौहार को लेकर ख़ास तैयारियां की जाती है। तिहार में नांदिया बइला (बैल) की पूजा के लिए बड़ा, भजिया, गुलगुला, चौसेला और गुड़ से बने मीठा चीला का प्रसाद बनाया जाता है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में पोरा के दिन हर घर में उड़द का बड़ा, गुलगुला भजिया, ठेठरी-खुरमी, आदि व्यंजन विशेष तौर पर बनाए जाते हैं।पोरा तिहार आनंद प्रदान करने वाला उत्सव है। इस दिन गांवो-कस्बों में बैलों की दौड़ का भी आयोजन होता है। बैलों को ख़ास तरीक़े से सजाया जाता है। इसका आनंद, बच्चे खासतौर पर उठाते हैं। इस त्यौहार के बाद तीजा पर्व के लिए महिलाएं अपने मईके में आ चुकी रहती हैं। इस त्यौहार की समाप्ति पोरा पटकने से होती है। जो मिट्टी के खिलौने होते हैं, वह गौठान के पास पटककर तोड़ दिए जाते हैं। पोरा तिहार की जड़ें बहुत पुरानी हैं।त्यौहार मानव जीवन में उत्साह के साथ साथ नई उमंग पैदा करते हैं। छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला पोरा त्यौहार किसानों के पशुधन के प्रति अटूट प्रेम की मिसाल देता है।
अन्नपूर्णा माता की पूजा का पर्व पोला,,,, बच्चे नदिया बैला,जाता, पोरा के साथ ठेठरी और खुरमी का आनंद ले रहे है
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