होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व संध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। इस साल होलिका दहन 28 मार्च को है। ऐसे में आइए जानते हैं इस दौरान किस मुहूर्त पर करें पूजा- कब है होलिका दहन, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा।
राष्ट्रीय मिति चैत्र 07, शक संवत् 1943 फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, रविवार विक्रम संवत् 2077। सौर चैत्र मास प्रविष्टे 15, शब्बान 14, हिजरी 1442 (मुस्लिम) तदनुसार अंग्रेजी तारीख 28 मार्च सन् 2020 ई॰। सूर्य उत्तरायण, उत्तर गोल, बसन्त ऋतु।
राहुकाल सायं 04 बजकर 30 मिनट से 06 बजे तक। पूर्णिमा तिथि अर्धरात्रोत्तर 12 बजकर 18 मिनट तक उपरांत प्रतिपदा तिथि का आरंभ। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र सायं 05 बजकर 36 मिनट तक उपरांत हस्त नक्षत्र का आरंभ।
वृद्धि योग रात्रि 09 बजकर 49 मिनट तक उपरांत ध्रुव योग का आरंभ। विष्टि करण अपराह्न 01 बजकर 53 मिनट तक उपरांत बालव करण का आरंभ। चंद्रमा दिन रात कन्या राशि पर संचार करेगा।
आज के व्रत त्योहार : फाल्गुन पूर्णिमा, होलिका दहन (प्रदोषकाल), होलाष्टक समाप्त
सूर्योदय का समय 28 मार्च : सुबह 06 बजकर 16 मिनट पर।
सूर्यास्त का समय 28 मार्च : शाम 06 बजकर 37 मिनट पर।
होलिका दहन के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त
अवधि – 02 घण्टे 20 मिनट्स
भद्रा पूँछ – 10:13 ए एम से 11:16 ए एम
भद्रा मुख – 11:16 ए एम से 01:00 पी एम
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 12:17 ए एम बजे
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 56 मिनट तक।
अमृत काल – सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक।
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 50 मिनट से सुबह 05 बजकर 38 मिनट तक।
सर्वार्थसिद्धि योग – सुबह 06 बजकर 26 मिनट से शाम 05 बजकर 36 मिनट तक। इसके बाद शाम 05 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक।
अमृतसिद्धि योग – सुबह 05 बजकर 36 मिनट से 29 मार्च की सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक
आज का अशुभ मुहूर्तः
राहुकाल शाम को 4 बजकर 30 मिनट से 6 बजे तक। दोपहर 12 बजे से 01 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। दोपहर 3 बजकर 30 मिनट से 4 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल रहेगा। दुर्मुहूर्त काल शाम को 4 बजकर 58 मिनट से 5 बजकर 47 मिनट तक। भद्रा सुबह 6 बजकर 16 मिनट से दोपहर 1 बजकर 54 मिनट तक।
क्रमवार जानिये होली पूजा की विधि
होलिका दहन पूजन के दौरान हमेशा अपना सिर कपड़े से ढककर रखें
नवविवाहित महिलाएं व सास और बहु एक साथ होलिका दहन न देंखे
होली पूजा से पूर्व स्नान जरूर करना चाहिए। इससे आप भीतर से प्रसन्नचित महसूस करेंगे।
होलिका पूजे से पूर्व अक्षत्, गंध, फूल, कच्चा सूत, एक लोटा जल, माला, रोली, गुड़, गुलाल, रंग, नारियल, गेंहू की बालियां, मूंग पहले से एकत्र कर लें
पूजा सामग्री के साथ होलिका के स्थान पर पहुंचे फिर नियमानुसार पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
पूजा करने के क्रम में गंध, धूप, पुष्प आदि से होलिका की पंचोपचार विधि से शुरुआत करें।
पूजा के दौरान अपने पितरों, परिवार के नाम से बड़गुल्ले की एक-एक माला होलिका को समर्पित करें। इसके बाद 3 या 7 बार परिक्रमा करें। इस दौरान कच्चा सूत होलिका में लपेट दें।
पूजा के क्रम में अब लोटे का जल तथा अन्य पूजा सामग्री होलिका को समर्पित कर दें। इसी के साथ होली की पूजा पूर्ण हो जाएगी।
होली पूजा के बाद बताए गए मुहूर्त में परिजनों के साथ सार्वजनिक स्थान पर बनी होलिका के पास एकत्र हो जाएं।
विधि के अंतिम चरण में कपूर या उप्पलों की मदद से होलिका में आग प्रज्जवलित कर दें।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती. किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं.होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है।