गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) की अपने घर में 10 दिनों तक यथाशक्ति सत्कार, सेवा और पूजा के बाद गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) की परंपरा है. वैसे तो गणेश चतुर्थी के दिन भी विसर्जन किया जाता है, लेकिन ज्यादातर लोग 10 दिनों तक बप्पा की सेवा करने के बाद उन्हें विसर्जित करना पसंद करते हैं. कई लोग गणेश चतुर्थी के अगले दिन भी गणेश विसर्जन करते है, जिसे डेढ़ दिन के गणपति का विसर्जन कहा जाता है. लेकिन अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन गणपति विजर्सन (Ganpati Visarjan) की परंपरा सबसे ज्यादा प्रचलित है. गणेश चतुर्थी के 10 दिन बाद यानी कि 11वें दिन अनंत चतुर्दशी आती है और इस दिन पूरे धूमधाम से गणपति विसर्जन किया जाता है.
कब है अनंत चतुर्दशी?
हिन्दू पंचांग के मुतबिक अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) हर साल भादो माह शुक्ल पक्ष की चौदस यानी कि 14वें दिन मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह सितंबर के महीने में पड़ती है. गणेश चतुर्थी के 10 दिन बाद 11वें दिन अनंत चतुर्दशी आती है और इसी दिन विधि-विधान से गणेश विसर्जन किया जाता है. इस साल अनंत चतुर्दशी 12 सितंबर को है.
गणेश विसर्जन की तिथि और शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि: 12 सितंबर 2019
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 12 सितंबर 2019 को सुबह 05 बजकर 06 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 13 सितंबर को सुबह 07 बजकर 35 मिनट तक.
गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) के लिए चौघड़िया मुहूर्त
सुबह का मुहूर्त (शुभ): 12 सितंबर 2019 को सुबह 06 बजकर 08 मिनट से सुबह 07 बजकर 40 मिनट तक.
सुबह का मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत): सुबह 10 बजकर 45 मिनट से दोपहर 03 बजकर 22 मिनट तक.
दोपहर का मुहूर्त (शुभ): शाम 04 बजकर 54 मिनट से शाम 06 बजकर 27 मिनट तक.
शाम का मुहूर्त (अमृत, चर): शाम 06 बजकर 27 मिनट से रात 09 बजकर 22 मिनट तक
रात का मुहूर्त (लाभ): 13 सितंबर 2019 को रात 12 बजकर 18 मिनट से रात 01 बजकर 45 मिनट तक
गणपति विसर्जनका महत्व
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का विशेष स्थान है. कोई भी पूजा, हवन या मांगलिक कार्य उनकी स्तुति के बिना अधूरा है. हिन्दुओं में गणेश वंदना के साथ ही किसी नए काम की शुरुआत होती है. यही वजह है कि गणेश चतुर्थी यानी कि भगवान गणेश के जन्मदिवस को देश भर में पूरे विधि-विधान और उत्साह के साथ मनाया जाता है. भगवान गणेश का जन्म उत्सव पूरे 10 दिन तक मनाया जाता है और 11वें दिन उन्हें गाजे-बाजे, धूम-धड़ाके के साथ विदा कर विसर्जित किया जाता है.
गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) का सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है. छत्रपति शिवाजी महाराज ने तो अपने शासन काल में राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक रूप से गणेश पूजन शुरू किया था. लोकमान्य तिलक ने 1857 की असफल क्रांति के बाद देश को एक सूत्र में बांधने के मकसद से इस पर्व को सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाए जाने की परंपरा फिर से शुरू की.
10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव ने अंग्रेजी शासन की जड़ों को हिलाने का काम बखूबी किया. गणपति का विसर्जन करते वक्त भक्त एक ओर बेहद खुश होते हैं वहीं भगवान की विदाई के क्षण में भावुक भी हो जाते हैं. विसर्जन के दौरान पूरा माहौल ‘गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आना…’ की ध्वनि से गूंज उठता है.
क्यों किया जाता है गणेश विसर्जन
गणपति या गणेश विसर्जन को लेकर कई धामिर्क और सामाजिक मान्ताएं प्रचलित हैं. ब्रिटिश काल में लोगों में एकता और सौहार्द बढ़ाने के लिए गणेश स्थापना और विसर्जन की परंपरा को फिर से शुरू किया गया. वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की कथा सुनाने के बाद भगवान गणेश का तेज शांत करने के लिए उन्हें सरोवर में डुबोया था. कहा जाता है कि वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन से भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी. लगातार 10 दिन तक वेदव्यास गणपति को कथा सुनाते रहे और गणेश जी कथा लिखते रहे. जब कथा पूरी हो गई तब वेदव्यास ने आंखें खोली तो देखा कि अत्यधिक मेहनत की वजह से गणेश जी का तापमान बढ़ा हुआ है.
उनका तपामान कम करने के लिए वेदव्यास उन्हें पास के सरोवर में ले गए और स्नान कराया. उस दिन अनंत चर्तुदशी थी और तब से गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने की परंपरा शुरू हो गई.
कैसे करें गणपति विसर्जन
गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की स्थापना के बाद 10 दिनों तक उनकी खूब सेवा की जाती है. उन्हें नाना प्रकार के व्यंजन, फल और फूल अर्पित किए जाते हैं. साथ ही 10 दिन तक लगातार हर दिन उनके मनपसंद मोदकों का भोग लगाया जाता है. 10 दिन के बाद 11वें दिन यानी कि अनंत चर्तुदशी को बप्पा को गाजे-बाजे के साथ विदा किया जाता है. कहते हैं कि गणपति को ठीक वैसे ही विदा करना चाहिए जैसे हम अपने किसी सगे-संबंधी या रिश्तेदार को यात्रा पर निकलने से पहले विदा करते हैं. यहां पर हम आपको गणेश विसर्जन की पूरी विधि बता रहे हैं:
– विदा करने से पहले गणेश जी को भोग लगाएं.
– आरती करने के बाद पवित्र मंत्रों से उनका स्वास्तिवाचन करें.
– लकड़ी का एक पटरा लें. उसे गंगाजल या गौमूत्र से पवित्र करें.
– घर की महिला इस पटरे पर स्वास्तिक बनाए.
– अब इस पटरे पर अक्षत रखने के बाद पीला, गुलाबी या लाल रंग का वस्त्र बिछाएं.
– अब वस्त्र के ऊपर गुलाब की पंखुड़ियां बिखेरें.
– पटरे के हर कोने पर एक-एक सुपारी रखें.
– अब आपने जिस जगह पर गणपति की स्थापना की हैं वहां से उन्हें उठाकर इस पटरे पर रखें.
– गणेश जी को विराजमान करने के बाद पटरे पर फल, फूल, वस्त्र, दक्षिणा और पांच मोदक रखें.
– अब एक छोटी लकड़ी लेकर उसमें चावल, गेहूं और पंच मेवा की पोटली बनाकर बांधें. साथ ही सिक्के भी रखें. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यात्रा के दौरान गणपति को किसी तरह की परेशानी न हो.
– नदी या तालाब में गणपति का विसर्जन करने से पहले फिर से उनकी आरती करें.
– आरती के बाद गणपति से प्रार्थना करें और आपकी जो भी मनोकामना उसे पूर्ण करने का अनुरोध करें. साथ ही 10 दिन तक जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगें.
– विजर्सन के समय ध्यान रहे कि गणेश प्रतिमा व अन्य चीजों को फेंके नहीं, बल्कि पूरे मान-सम्मान के साथ धीरे-धीरे एक-एक चीज विसर्जित करें.