भिलाई। 09 मार्च : हिदुस्तान इस्पात ठेका श्रमिक यूनियन सीटू की महिला नेत्री वाय वेंकट सुबलु ने कहा कि महिला श्रमिकों के, अपने शोषणकारी कामकाजी हालातों के खिलाफ, और अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए हुए संघर्षों से ही अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस की उत्पत्ति हुई, और ये संघर्ष आज भी जारी हैं। अपने संघर्षों से महिलाओं ने कुछ अधिकार जरूर जीते हैं, और अपनी कामकाजी परिस्थितियों में भी कुछ सुधार किया है। मगर पितृसत्तात्मक रवैया, महिलाओं के श्रम को कम करके आंकना, वेतन और अवसर की असमानता, और अन्य कई प्रकार के भेदभाव दुनियाभर में आज भी हावी हैं।
विरिष्ठ लीडर पी के मुखर्जी ने कहा कि भारत में महिलाओं के हालात में गिरावट भाजपा के केंद्र में आने के बाद से और तेज हुई है। भाजपा शासन उन पिछड़े और पितृसत्तात्मक नजरियों को बढ़ावा दे रहा है जो महिलाओं को बच्चे पालने और परिवार सम्भालने तक सीमित करना चाहते हैं। महिलाओं के अपनी पसंद से दोस्ती करने, शादी करने, कपड़े पहनने या यूँ कहें कि अपनी मर्जी से अपनी जिन्दगी जीने के हर हक पर दक्षिणपंथी ताकतें हमला कर रही हैं। महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
ठेका यूनियन सीटू के अध्यक्ष जमील अहमद ने बताया कि 2019-20 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 2018 से चार अंक घट कर 153 देशों में 112 वें स्थान पर है। केवल चैदह सालों में भारत, वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के इकनॉमिक जेंडर गैप में 2006 के अपने 110 वें स्थान से 39 अंक पीछे, 2020 में, 149 वें स्थान पर पहुँच गया है। आज भारतीय महिलाओं के पास जो आर्थिक अवसर हैं, वो दुनिया में सबसे न्यूनतम हैं। जून 2020 में वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी डाटा के अनुसार भारत की महिला श्रम शक्ति में भागीदारी दक्षिण एशिया में सबसे कम है। 1990 के 30.3 प्रतिशत से घट कर 2020 में ये पाकिस्तान (22.2 प्रतिशत) और अफगानिस्तान (21.8 प्रतिशत) से भी कम, केवल 20.3 प्रतिशत रह गया है।
यूनियन की महिला नेत्री सबिना ने कहा कि भारत सरकार देश की लाखों महिलाओं को अपनी परियोजनाओं में काम देती है, जैसे आँगनवाड़ी कर्मी, या संयुक्त बाल विकास सेवाओं में सहायक, या राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की आशा या उषा कर्मी, या मिड डे मील योजना की कर्मचारी। ये कर्मी बच्चों और महिलाओं के लिए खाना बनाते-खिलते हैं, और उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं। इस सब के लिए इन्हें पूरी तरह से कर्मी भी नहीं माना जाता और वेतन की जगह मानदेय या प्रोत्साहन राशि के नाम पर बहुत ही कम पैसा मिलता है। साथ ही, भारत उन देशों में से है जहाँ एक ही काम कर रहे पुरुष और महिलाओं के वेतन का अंतर बहुत अधिक है। आम तौर पर महिलाओं को पुरुषों के समान काम का केवल दो तिहाई वेतन मिलता है।
महिला लीडर दुर्गा ने बताया कि आज, महिलाऐं अपने काम को काम का दर्जा दिलाने के लिए, समान अवसरों के लिए, समान वेतन के लिए और नागरिकों के नाते समान अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। महिला कर्मी, खास तौर पर सरकारी परियोजनाओं में कार्यरत महिला कर्मी, अपने कर्मी होने की मान्यता मानदेय नहीं, वेतन की लड़ाई लड़ रहीं हैं। महिला कर्मी, समान वेतन की, क्रेच युक्त और यौन उत्पीड़न से मुक्त कार्यस्थल की और कार्यस्थल और समाज में अपने मान की लड़ाई लड़ रहीं हैं। कर्मियों के खून पसीने से कमाए संगठन और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों पर शासक वर्गों के लेबर कोड रूपी हमलों के खिलाफ संघर्ष में भी वे लगातार जुड़ रहीं हैं। आज विभिन्न क्षेत्रों की सैंकड़ों हजारों महिला कर्मी और कर्मचारी ट्रेड यूनियन आन्दोलन के धरना-प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही हैं।
आज लगातार देश में महिलाओं के ऊपर हो रहे बलात्कार व अत्याचार में वृद्धि हुई है हमारे सामने उत्तर प्रदेश हाथरस में जो घटना घटी है वह बहुत ही शर्मनाक है एनसीआरबी डाटा 2019 के आंकड़ों के साथ देश में सबसे आगे है हाथरस बलात्कार मामले के हम सब गवाह बने जिसमें संविधान की धज्जियां उड़ाई गई आज हमारे संविधान और लोकतंत्र दोनों पर जबरदस्त हमले हो रहे हैं।
प्रधान मंत्री को 12 सूत्रीय मांग पत्र सौपा
1. महिलाओं को मजदूरों और किसानों के रूप में काम को मान्यता दी जाए महिलाओं के अवैतनिक या कम वेतन वाले काम को जीडीपी में शामिल किया जाए।
२. योजना कर्मियों का मजदूरों कर्मचारियों के रूप में नियमितीकरण 45 वे आईएलसी की सिफारिशों के अनुसार तुरंत न्यूनतम वेतन और सामाजिक लाभ दिया जाए।
3. महिलाओं के लिए सभी क्षेत्रों में समान काम का समान वेतन सुनिश्चित करें ।
4. सभी कार्य स्थलों पर पी ओ एस एच का कड़ा कार्यान्वयन
5. महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाएं। न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशों को लागू करें
6. सभी निर्वाचित निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के लिए एक्ट बनाएं ।
7. श्रम संहिताओं कृषि कानूनों को रद्द करें और बिजली संशोधन बिल वापस लें।
8. सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों और सेवाओं का निजीकरण बंद करें।
9. सभी के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करें ।
10. मूल्य वृद्धि पर रोक लगाएं रसोई गैस व अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ी कीमतों को वापस ले सभी के लिए मुफ्त राशन सहित सभी आवश्यक वस्तुएं और गैर आयकर दाता परिवारों को ₹7500 प्रति माह की आर्थिक सहायता सुनिश्चित करें।
11. महिलाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करें नौकरी खोने वालो को आर्थिक सहायता देने के लिए विशेष योजना तैयार की जाए ।
12. मनरेगा के अंतर्गत 200 दिन ₹600 प्रतिदिन रोजगार सुनिश्चित करें इसका शहरी क्षेत्रों में विस्तार करें।
इस कार्यक्रम में दुर्गा साहू ,वाई वेंकटसुब्बलू, सबीना ,अनु मेरी ,ज्योति, यशोदा ,बारीक, निर्मला पटेल, गंगोत्री, लक्ष्मी कौर, नैन बाई, आमिनी के साथ लगभग 105 महिलाए शामिल थे।