भिलाई नगर 04 जनवरी 2020। श्री राधाकृष्ण मंदिर प्रांगण, नेहरू नगर में 11 जनवरी तक शाम 4 बजे से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग के दूसरे दिन ऋषिकेश, उत्तराखंड से पधारे प्रवचनकर्ता श्रद्वेय स्वामी विजयानन्द गिरी ने कहा कि नातों, रिश्तों, जमीन, जायदाद, धन आदि को महत्व देना ही मोह है। इनसें सीधे संबंध जोड़कर ही मानव बहुत बड़ी गलती करता है। इनके बीच में परमात्मा को ले आइए, और सोचे कि ये नाते, रिश्ते, जमीन, जायदाद, धन आदि मेरे नहीं बल्कि परमात्मा के है, तभी मानव मोह से मुक्त हो पाएगा और उसे मोह नहीं बल्कि परमात्मा से प्रेम हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस सत्संग के व्यासपीठ पर रूपयें, पैसे चढ़ाना मना है, यदि चढ़ाना ही है तो मन का दुख चढ़ाना, अशांति चढाना, श्रद्वा और विश्वास चढ़ाना। मैं दौलत लेने नहीं आया हूं, सत्संग का उद्वेश्य आप लोगों को सुख देना है। सुख पैसे से नहीं बल्कि भगवान, परमात्मा की चर्चा, सत्संग में है। संसार के सभी प्राणी एक ही सामाग्री से बने है लेकिन मानव ही एक ऐसा प्राणी है जिन्हानें विवेक की शक्ति मिली है। इसलिए मानव योनी इतना महत्वपूर्ण है। यदि मानव संतोष करना सीख जाए तो अल्प में ही संतुष्ट होकर सुखी रहेगा और यदि संतोष की भावना नहीं रहीं तो अरबों धन कमा लेने के बाद भी दुखी रहेगा। धन कमाना में कोई बुराई नहीं है। इन कमायों धनों का सदुपयोग गरीबों की मदद में, सत्संग, पूजा आदि धार्मिक आयोजनों में करे। जब कोई घर परिवार का व्यक्ति बड़े पद को पर्याप्त कर लेता है तो हमें बड़ा गर्व महसूस होता है। आप स्वयं पर गर्व करिए और ध्यान लगाईयें कि हम भगवान के बेटे है, हम भगवान के अंश है। इसलिए नाच, गाएं क्योंकि हम साधारण नहीं है, हम भगवान के है। ये शरीर मां-बाप का है बेटा, लेकिन हम भगवान के है। इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती। श्री शंकराचार्य जी कहते है कि गंध, स्पर्श, रूप, रस, स्वाद पांच विषय है, इनमें से केवल विषय ही है, क्रमशः हिरण, हाथी, पतंगा, भौरा, मछली मृत्यु का कारण बनते हैं। फिर मानव तो इन पांचों विषयों से ग्रसित है। इन सांसरिक सुखों को भोगने से कष्ट मिलना तय है। सांसरिक सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि बांटने के लिए है। वास्तविक सुख परमात्मा में ही है, जो इन 9 दिनों में ही हम अनुभव करेंगे। भगवान कण-कण में है, इन्हें प्राप्त करना मुश्किल नहीं है। केवल हमारे प्रयास में तेजी होनी चाहिए। भगवान का अपना मानकर नित प्रतिदिन विनती करें कि हे नाथ, हे मेरे नाथ, मैं आपको भूलू नहीं, इतनी कृपा मुझ पर करना। भला होना तय है।
स्वयं पर गर्व करें, हम साधारण नहीं है, हम भगवान के हैः स्वामी विजयानंद गिरी,,,,,,, राधाकृष्ण मंदिर, नेहरू नगर में दुर्लभ सत्संग का दूसरा दिन

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