दुर्ग। प्रदेश के मुखिया यदि प्रदेश एवं स्थानीय जनता के हित से जुड़े किसी मुद्दे पर चिंता व डर व्यक्त करें तो निश्चित रूप से वह कोई बड़ी बात होगी। मुद्दा जब किसी समय छत्तीसगढ़ की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले भिलाई इस्पात संयंत्र से जुड़ा है तो इसे और भी अहम माना जाना चाहिए ।
दो दिन पूर्व प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने पत्रकारों से जुड़े एक समारोह में ना केवल भिलाई इस्पात संयंत्र की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई वरन संयंत्र को निजी हाथों में सौंपे जाने की सुगबुगाहट पर भी डर जताया। एक मुख्यमंत्री के द्वारा डर जैसे शब्दों का उपयोग वास्तव में पूरे प्रदेश के लिए सोच का विषय है और आज जरूरत इस बात की भी है कि पूरा प्रदेश एक होकर इस पर विचार करें ।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही जिस तरह जनहित के मामलों में ताबड़तोड़ निर्णय लेकर राहत पहुंचाने और प्रदेश को विकास के पथ पर लगातार आगे बढ़ाने का जो प्रयास किया है वह अपने आप में एक मिसाल के रूप में पूरे प्रदेश व देश में चर्चा का विषय सभी वर्गों के लिए बन चुका है। पत्रकारों के जिस समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने डर एवं चिंता का सार्वजनिक रूप से इजहार किया था उस समारोह में भिलाई के सभी वर्गों से जुड़े गणमान्य एवं जिम्मेदार माने जाने वाले लोग उपस्थित थे, ऐसे जिम्मेदार कहे जाने वाले बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जो बातें कही वे वास्तव में गंभीर एवं सोचनीय है ।
भिलाई इस्पात संयंत्र मध्य भारत का प्रथम एवं सबसे बड़ा उद्योग रहा है जिसने संपूर्ण छत्तीसगढ़ के औद्योगिक विकास को गति एवं पहचान दी थी, भिलाई को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा औद्योगिक तीर्थ की संज्ञा तक दी गई थी तो इसे संपूर्ण मध्य भारत की आर्थिक रीढ़ भी माना गया था जिसकी वजह से 12 लाख की आबादी वाला पूरा भिलाई शहर ही बसा था जिसका वैभव पूरे देश में चर्चित रहा था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह की स्थिति एवं परिस्थिति निर्मित होती गई एवं केंद्र शासन की नीतियां बनती गई तथा वैश्विक व्यापार उद्योग की कल्पना की गई उसके बाद भिलाई का यह हुआ वैभव भी शनै शनै कम होता गया है। एक समय स्थाई -अस्थाई ,ठेकेदारी- दैनिक ,कुशल -अकुशल कर्मियों की संख्या इसी भिलाई इस्पात संयंत्र में करीब एक लाख थी जो बीते एक दशक में 25- 30 हजार तक रह गई है ।इसका कारण कुछ तो आधुनिकीकरण रहा तो बहुत कुछ निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा भी रहा है। भिलाई में एक अलग तरह की संस्कृति एवं चरित्र ने जन्म पाया जो विकास एवं प्रगति के मामले में पूरे देश में सराहा भी गया था ,अब जबकि निजीकरण की चर्चा एवं सुगबुगाहट काफी तेज हो चुकी है तब भिलाई की औद्योगिक संस्कृति ,रोजगार- आजीविका के साधनों को बचाने की चिंता भी काफी बलवती हो चुकी है इन्हीं सब बातों को देखते हुए संभवत: प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मन का दर्द उभरकर सामने आ गया है ।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जनता एवं छत्तीसगढ़ के प्रति हर मामले में संवेदनशीलता पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है जो छत्तीसगढ़ के लोगों ने बीते 9 माह के कार्यकाल में स्पष्ट रूप से परख भी लिया है।
प्रदेश का मुखिया जब चिंता व्यक्त करें तब मुद्दा अहम तो होता ही है लेकिन जब मुखिया डर की बात करें तो इसे और भी गंभीर माना जाए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भिलाई इस्पात संयंत्र को निजी हाथों में सौंपे जाने की जिस चर्चा एवं अंदरूनी प्रक्रिया पर अपने डर का सार्वजनिक रूप से इज़हार किया है उस पर पूरे प्रदेश को मिलकर सामने आना चाहिए। मुख्यमंत्री के मन का डर किसी एक विषय से जुड़ा नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे राज्य की औद्योगिक प्रगति रोजी-रोटी आर्थिक विकास के अलावा यहां की संस्कृति, सामाजिक समरसता,धार्मिक सौहार्द ,कार्यप्रणाली से पूरी तरह जुड़ा माना जाना चाहिए। इन बातों पर जरा सा भी ऊंच-नीच पूरे प्रदेश को प्रभावित कर सकता है ।देश के सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रम में कुछ हद तक निजीकरण की प्रक्रिया आ चुकी है जिसके कुप्रभाव भी सामने आए हैं और जो महारत्न की श्रेणी का उद्योग भिलाई उत्पादन की मिसाल था वह पिछड़ता जा रहा है, दुर्घटनाओं का क्रम लगातार जारी है, मानव संसाधन की कमी से बेरोजगारों में कुंठा और गुस्सा बढ़ता जा रहा है। अब पूरे छत्तीसगढ़ बिरादरी का दायित्व है कि मुख्यमंत्री की चिंता एवं डर को हम सब अपनी चिंता बनाएं और इस डर को दूर करने की दिशा में सार्थक एवं सकारात्मक चर्चा का दौर प्रारंभ कर निजीकरण को रोके जाने की दिशा में पहल करें।
वरिष्ठ पत्रकार-योगेश गुप्ता
संयंत्र का निजीकरण होना निश्चित ही चिंता का विषय : भूपेश बघेल…. मुख्यमंत्री ने पहली बार अपने लोगों के बीच अपनी बात रखी….
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