
भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली अब हमारे बीच नहीं रहे। लंबे समय से बीमार चल रहे जेटली ने शनिवार 24 अगस्त को अंतिम सांस ली। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का सबसे भरोसेमंद साथी माना जाता था। मोदी जब प्रधानमंत्री बने और गुजरात से दिल्ली आए तो उन्होंने एक इंटरव्यू में खुद कहा था कि दिल्ली के लिए वो नए हैं। कहा जाता है कि इस वक्त अगर मोदी की सबसे ज्यादा मदद किसी ने की तो वो जेटली ही थे। 2013-14 लोकसभा चुनाव के पहले मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। कहा जाता है कि पार्टी में मोदी के नाम पर सर्वसम्मति बनाने में जेटली का योगदान सबसे महत्वपूर्ण था।
मोदी-शाह के सबसे बड़े कानूनी सलाहकार
2014 के लोकसभा चुनाव के पहले जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर विचार किया तो यह बहुत आसान काम नहीं था। कहा जाता है कि जेटली ही वो चेहरा थे जिन्होंने वरिष्ठ और कनिष्ठ नेताओं को मोदी के नाम पर राजी किया। इतना ही नहीं, 2002 के गुजरात दंगों के बाद मोदी की कानूनी दिक्कतें दूर करने की जिम्मेदारी भी जेटली ने ही संभालीं। 2010 में सोहराबुद्धीन शेख मामले में जमानत मिलने के बाद कोर्ट ने अमित शाह के गुजरात प्रवेश पर जब रोक लगा दी, तो शाह सबसे पहले जेटली के घर गए और उनसे मदद मांगी। बाद में ये रोक हटा ली गई थी।
मंत्रिमंडल बनाने में अहम भूमिका
2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो कुछ नए चेहरे उनकी कैबिनेट में नजर आए। इनमें पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और धर्मेंद्र प्रधान शामिल थे। कहा जाता है कि जेटली ने ही अमित शाह और प्रधानमंत्री को इनके नाम और विशेषताओं के बारे में बताया था। मुकुल रोहतगी और जेटली अच्छे मित्र माने जाते हैं। रोहतगी को जब सॉलिसिटर बनाने की बात चली तो कुछ दिक्कतें भी आईं लेकिन जेटली ने ये रास्ता भी साफ कर दिया।
अटल जी से की थी मोदी को न हटाने की गुजारिश
2002 में गुजरात दंगे हुए। मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन पर सवाल उठाए गए। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तब मोदी को हटाना चाहते थे। जेटली तब अटल और आडवाणी के काफी करीबी थे। कहा जाता है कि जेटली ने अटल जी को सलाह दी और ये निवेदन किया कि मोदी को हटाना सही नहीं होगा।
हर पार्टी में दोस्त
जेटली को भाजपा के सबसे सौम्य और मिलनसार नेताओं में से एक माना जाता है। उनके संबंध दूसरे दलों में भी मधुर रहे। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा, वामपंथी नेता जैसे सीताराम येचुरी और प्रकाश करात, समाजवादी पार्टी में राम गोपाल यादव और तमिलनाडु की पूर्व सीएम जयललिता भी उनके पार्टी के बाहर अच्छे दोस्त रहे।