रायपुर। देश की बिजली वितरण कंपनियों पर उत्पादकों की देनदारी 54705 करोड़ स्र्पये तक पहुंच गई है। यह बकाया बीते दो से ढ़ाई साल से लगातार बना हुआ है। सबसे ज्यादा बकाया 19857 करोड़ राजस्थान की वितरण कंपनी पर है। इस सूची में तमिलनाडु दूसरे और उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है। इन सब के बीच छत्तीसगढ़ पर एक निजी उत्पादन कंपनी का सिर्फ 12 करोड़ स्र्पये का बकाया है। छत्तीसगढ़ से बेहतर स्थिति में देश के केवल दो ही राज्य हैं। इनमें चंडीगढ़ पर कोई बकाया नहीं है, जबकि बंगाल पर केवल नौ करोड़ स्र्पये की देनदारी है।
बिजली अफसरों के अनुसार एक देश एक ग्रिड व्यवस्था लागू होने के बाद से पूरे देश में बिजली की भरपूर उपलब्धता है। कोई भी राज्य महज कुछ घंटें की नोटिस पर जितनी चाहे उतनी बिजली हासिल कर सकता है।
केंद्र सरकार ने एक देश एक ग्रिड का सिस्टम लागू करने के साथ इसके माध्यम से होने वाली बिजली की खरीद- बिक्री के लिए कुछ नियम भी तय किए हैं। इसके तहत बिजली खरीदने वाली कंपनियों को 60 दिन की अवधि (ग्रेस पीरियड) उपलब्ध कराती हैं। 54705 करोड़ की यह राशि 60 दिन के ग्रेड पीरियड के बाद की है।
हर महीने दो से सवा दो सौ करोड़ की खरीद
छत्तीसगढ़ की सरकारी बिजली वितरण कंपनी चालू वित्तीय वर्ष के शुस्र्आत चार महीनों में हर माह दो सौ से सवा दौ सौ करोड़ स्र्पये की बिजली की खरीद की है। कंपनी इसके एवज में हर महीने मोटी रकम अदा भी करती है। इसके बावजूद राज्य की वितरण कंपनी पर 443 करोड़ स्र्पये का बकाया है। इसमें से 12 करोड़ की राशि ही 60 दिन से अधिक समय से बकाया है।
जून में छह करोड़ था बकाया
राज्य की बिजली वितरण कंपनी पर जून के अंत में कुल बकाया राशि में केवल छह करोड़ स्र्पये ही ऐसा था, जो 60 दिन से अधिक पुराना था। जुलाई के अंत में यह राशि बढ़कर 12 करोड़ स्र्पये हो गई है। बिजली अफसरों के अनुसार यह उतार-चढ़ाव लगा रहता है। इससे क्रेडिट पर कोई असर नहीं पड़ता।