भिलाई। डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय की काव्यकृति ‘अपना- अपना चांद” का लोकार्पण समारोह विट्ठलपुरम उमदा रोड़ के सभागार में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार श्रीमती जया जादवानी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रेमकुमार कविताएं हमारे आसपास के जीवंन संसार से उद्भूत होती हैं । यह नर्म नाजुक किस्म का संसार है जो अपनी मौजूदगी से हमें समृद्ध करता है। कविता समय की जरूरत बताते हुए बाजारवाद की चमक-दमक में खोए हुए आदमी की जड़ों की तलाश की कविता कहा। शहडोल मध्यप्रदेश से पधारे डॉ. विनोद कुमार जायसवाल विशिष्ट अतिथि ने सम्पूर्ण कृति को कवि के व्यक्तित्व से जोड़ते हुए ईमानदार और संवेदंशील कविता कहा । विमोचन समारोह की अध्यक्षता कर रहे शासकीय विज्ञान महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ जयप्रकाश जी ने संग्रह की कविताओं को स्मृतियों का पुनर्वास कहते हुए मामर्मिकता और भावुकता को रेखांकित किया । उनका कहना था कि भाषा के स्तर पर यह कृति लोक को संजोने का काम करती है । लोकजीवन के कुछ ऐसे शब्दों के दर्शन होते हैं जो साहित्य में कहीं दिखते ही नहीं जैसे- सरगनसेनी। शासकीय महाविद्यालय मचांदुर से पधारे अम्बरीश त्रिपाठी ने बीज-वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए इस बात को प्रमुखता से रेखांकित किया कि संग्रह की सभी कविताएं भले ही आकार ने छोटी हैं लेकिन कविता की भाषा कविता को नए आयम देती है। कविता की भाषा और संवेदना की ईमानदारी कवि को स्थापित कवियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। एक-एक पंक्ति गागर में सागर हैं ।राजनीति, समाज और संघर्ष जहां से कवि बरक कर निकल जाना चाहता है ,वहां बारीक भाषा के सहारे अपनी बात कहता है। श्री छगनलाल सोनी ने आलेख प्रस्तुत करते हुए कविता को रोजमर्रा के अनुभव कहा । सम्बंधों को जी लेने का मतलब होगा जीवन को उसके उच्चतम मानदण्डों के अनुसार जीना । कार्यक्रम के बीच-बीच में डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय ने संग्रह से कविताओं का पाठ करके श्रोताओं का मनमोह लिया । सम्पूर्ण कार्यक्रम का सफल संचालन सुश्री पारूल पाण्डेय ने किया।
अपना- अपना चांद का लोकार्पण ,,,,,,, बाजारवाद की चमक दमक में खोए हुए आदमी की जड़ों को तलाशते कविताओं ने समा बांधा

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